मुंगेर : हर किसी के जीवन में रंगों का खास महत्व होता है. रंगों के बिना जिंदगी बेरंग सी हो जाती है. रंगों की खूबसूरती होली (Holi 2022) में देखते ही बनती है. पूरे देश के साथ ही बिहार में भी अभी से ही इसका रंग चढ़ने लगा है. 18 मार्च को होली है और इसे खास बनाने की तैयारियों में सभी जुटे हैं, लेकिन मुंगेर का एक गांव ऐसा भी है जहां होली नहीं मनाई (No Holi Celebration In Satisthan Village In Munger) जाती. लोग खुदको रंगों से दूर रखते हैं. यह सुनकर आप हैरान हो गए होंगे लेकिन उससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि लगभग 200 सालों से इस परंपरा को गांव वाले निभा रहे हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसके पीछे का कारण क्या है? गांव में होली न मनाने की वजह और भी ज्यादा आश्चर्यचकित करने वाली है. कुछ लोग इसे अफवाह करार देते हैं लेकिन ग्रामीण इसे अपने जीवन की सच्चाई मान चुके हैं.
सतीस्थान गांव के लिए होली अभिशाप: बिहार का ये गांव मुंगेर जिला (Munger Holi Ban Village) में है जहां 200 सालों से होली नहीं मनाने परंपरा को निभाया जा रहा है. इस विचित्र परंपरा के बारे में लोगों का कहना है कि होली मानने पर गांव में विपदा आती है. इस कारण लोग होली नहीं मानते हैं. प्रखंड कार्यालय के समीप सतीस्थान गांव (In which village of Bihar Holi is not celebrated) है, जहां होली अभिशाप (Holi curse in Munger Satisthan Village) मानी जाती है. ग्रामीण ना तो एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाते हैं न पकवान बनाते हैं. यहां तक कि दूसरे गांव के लोग भी इन लोगों पर रंग नहीं डालते हैं. होली के दिन गांव में सन्नाटा पसरा रहता है.
इस कारण से नहीं मनती होली: इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि गांव में एक वृद्ध दंपति रहते थे. पतिव्रता नारी की चर्चा चारों ओर होती थी. समय बीतने के साथ फागुन महीने में पति की मौत हो जाती है. इस घटना से आहत पत्नी ने पति के साथ सती होने की इच्छा जाहिर की. लेकिन गांव वालों ने पत्नी को घर में बंद कर दिया. पति की अर्थी श्मशान ले जाने के दौरान उनका शव गांव से बाहर जाने के पहले ही बार -बार गिर जाता था. अंत में ग्रामीण लाचार होकर पत्नी को घर से बुलाते हैं. पत्नी अपने पति के शव के पास पहुंचती है. और गांव के समीप चिता पर पत्नी की अंगुली से आग की लपटें निकलती हैं. देखते ही देखते दोनों पति पत्नी जलकर भस्म हो जाते हैं.
बुजुर्ग महिला हुई थी सती: ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर मंदिर का निर्माण किया गया है. जहां मां सती की पूजा अर्चना आज भी की जाती है. गांव के बुजुर्ग महेश सिंह ने बताया कि फागुन महीने में मां सती हुई थी, इसलिए गांव में होली नहीं मनाई जाती है, न पकवान बनाए जाते हैं. गोपाल सिंह एवं जलधर सिंह सहित अन्य ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव के कई लोगों ने दूसरे गांव और शहर में जाकर घर बनाए हैं. वे वहां भी होली नहीं मनाते हैं. जिसने भी इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया है, उसके घर में आग लग जाती है.
होली मनाने पर भुगतना पड़ता है अंजाम: ग्रामीण सुरेंद्र ने बताया कि लगभग 50 साल पहले गांव के मंडल टोली एवं यादव टोली में दो परिवारों ने होली मनाई थी. दोनों का पक्का मकान था. बगल में फूस का भी मकान था. पक्के मकान वालों ने होली मनाई तो उनके मकान में आग लग गई और सब कुछ जलकर खाक हो गया. जबकि बगल में जिसने होली नहीं मनाई थी उसका घर फूस का होने के बाद भी उसमें आग नहीं लगी.
रंगों और पकवानों से दूर रहते हैं ग्रामीण: ग्रामीणों की मानें तो होली के पकवान फागुन मास शुरू होने के साथ ही गांव में कोई नहीं बनाता है. होली खत्म हो जाने के अगले महीने हम लोग पुआ पूरी बनाते हैं. सती स्थान और बड़ी कोरियन के ग्रामीण चैत राम नवमी के अवसर पर पकवान बनाते हैं. होली में किसी के घर में पुआ पूरी नहीं बनती है, ना हीं यहां के ग्रामीण दूसरे गांव में जाकर पकवान खाते हैं. जो कोई भी इस पूरे माह में पुआ या छानकर बनाया जाने वाला पकवान बनाने की कोशिश करता है तो उसके घर में खुद ब खुद आग लग जाती है. इस तरह की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं.
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