नई दिल्ली : कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी कई बंदी लंबे समय तक जेल से नहीं छूट पाते हैं. इसकी वजह है प्रक्रियाएं और जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थता. सुप्रीम कोर्ट ने अब ऐसे मामलों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं.
इसके अनुसार अगर कोर्ट किसी भी व्यक्ति को जमानत प्रदान करता है, तो इसकी कॉपी उसी दिन या फिर अगले दिन उस व्यक्ति को मिल जानी चाहिए. यह सूचना जेल अधीक्षक के जरिए भेजी जाएगी. जरूरी नहीं है कि उसे हार्ड कॉपी मिले, आदेश को ई-मेल के जरिए भेजा जा सकता है. जेल अधीक्षक जिस तिथि को जमानत देगा, उसे ई-जेल सॉफ्टवेयर में उस डेट को मेंशन करना होगा.
अगर किसी भी कारणवश एक सप्ताह के भीतर अमुक व्यक्ति रिलीज नहीं किया गया, तो जेल अधीक्षक इसकी सूचना डीएलएसए या एसएलएसए को देगा. डीएलएसए के सेक्रेट्री लीगल वॉलंटियर को भेजकर पूरे मैटर को समझेंगे. वॉलंटियर कैदी से बात करेगा और उसकी कोशिश होगी कि जल्द से जल्द कैदी की रिहाई सुनिश्चित की जा सके.
डीएलएसए के सचिव की जिम्मेदारी होगी कि वह उस कैदी की आर्थिक स्थिति का पता लगाए, जिसकी वजह से वह रिहा नहीं हो पा रहा है. सचिव उस कैदी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट को सूचित करेंगे. ऐसे मामलों में कोर्ट जमानत की शर्तों में ढिलाई भी बरत सकता है. अगर अमुक व्यक्ति अनुरोध करता है कि जमानत पर बाहर होने के बाद वह बॉन्ड भरने की स्थिति में हो जाएगा, तो अदालत उसे अस्थायी जमानत भी प्रदान कर सकती है.
अगर जमानत मिलने की तारीख के एक महीने के भीतर कैदी की रिहाई नहीं हो पाती है, तो अदालत जमानत की शर्तों पर दोबारा विचार कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका, ने दिशा निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा कि डीएलएसए और एसएलएसए के सचिवों को ई-जेल पोर्टल पर पहुंच दी जा सकती या नहीं, इस पर नालसा चर्चा करे.
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