मुंबई : राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एक अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक कंपनी की उस रिपोर्ट का खंडन किया है जिसमें कहा गया था कि कोरेगांव-भीमा मामले के कुछ प्रमुख आरोपियों में से एक के लैपटॉप में कथित रूप से कुछ हानिकारक सामग्री डाली गई थी.
एनआईए का यह खंडन बंबई हाईकोर्ट में दायर एक हलफनामे में सामने आया है. दरअसल, अमेरिकी कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने दावा किया था कि उस मामले में, जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या करने और सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश करने की बात सामने आई थी, उसके संबंध में आरोपी रोना जे विल्सन के लैपटॉप में सेंध लगाई गई थी और मालवेयर का इस्तेमाल करके संदिग्ध सामग्री डाली गई थी.
यह हलफनामा फरवरी में विल्सन की याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जिसमें उसके लैपटॉप में फर्जी दस्तावेजों के कथित रोपण की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, कानूनी और डिजिटल विशेषज्ञों की एक विशेष जांच टीम गठित करने की मांग की गई थी. आरोपी ने अपने खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने के साथ ही उसकी तत्काल रिहाई की मांग भी की थी.
हालांकि एनआईए ने दलील दी कि विल्सन की याचिका गौर करने लायक नहीं है और आर्सेनल कंसल्टिंग के पास अदालत की अनुमति के बिना ऐसी स्थिति में इस तरह की राय रखने का कोई अधिकार नहीं है, जब विल्सन और 15 अन्य एक्टिविस्ट, शिक्षाविदों, दलितों आदि के खिलाफ मुकदमा लंबित है.
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गौरतलब है कि पुणे के शनिवार वड़ा में 31 दिसंबर 2017 को यलगार परिषद कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसके बाद 1 जनवरी को कोरेगांव-भीमा गांव में जुलूस निकाल रहे दलित समुदाय के लोगों पर कथित अगड़ी जाति के लोगों ने हमला कर दिया, जिसके बाद दंगा भड़क गया और फिर इसके बाद हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
इसके बाद भी अगले साल यानी 2018 में मामले के संबंध में हिंसा देखने को मिली थी. इस मामले में विल्सन के अलावा 15 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें पी. वरवारा राव, सुधीर धवले, सुरेंद्र गडलिंग, आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, ज्योति जगताप, रमेश गायचर, शोना सेन, अरुण फरेरा, सागर गोरखे, महेश राउत, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्विस, स्टेन स्वामी और हनी बाबू शामिल थे. इनके खिलाफ यूएपीए अधिनियम, 1967 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं.