नई दिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान परिषद, इसरो, दो सितंबर को अपना सन-मिशन लॉन्च करेगा. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सूर्य के बारे में और अधिक जानकारी जुटाना है. इस मिशन को 'आदित्य एल-1' नाम दिया गया है. सूर्य की सबसे बाहरी परत, जिसे कोरोना कहा जाता है, उसका अध्ययन किया जाएगा. इसके लिए मिशन में सात पेलोड शामिल होंगे.
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ISRO to launch Aditya-L1, the first space-based Indian observatory to study the Sun, on September 2, 2023, at 11:50 Hrs IST from Sriharikota. pic.twitter.com/UYZ1EnPJV5
— ANI (@ANI) August 28, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य की ऊपरी सतह पर एक्सप्लोजन होते रहते हैं. पर इनके बारे में बहुत कुछ पता नहीं है. साथ ही यह भी नहीं पता है कि ये एक्सप्लोजन कब होते हैं. इस मिशन में इसका अध्ययन किया जाएगा. हमारा टेलीस्कोप इसे कैप्चर करेगा, उसके बाद इन आंकड़ों का अध्ययन किया जाएगा.
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🚨 India's first Sun mission, 'Aditya L1' to travel 1.5 million km from Earth, about 4 times father than the Moon. pic.twitter.com/7Wbr9vXFEh
— Indian Tech & Infra (@IndianTechGuide) August 27, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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इसरो ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार हमारा मिशन सूर्य के कोरोना, बाहरी सतह, की स्थिति मापेगा. इसके बाद ओजोन परत पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा. साथ ही धरती पर पड़ने वाले अल्ट्रावायलेट-रे के बारे में जानकारी जुटाएगा. इस तरह का अध्ययन इससे पहले नहीं हुआ है. 2000-4000 एंगस्ट्रॉम के वेबलैंथ का अध्ययन किया जाएगा. आप अंदाजा लगाइए, कि इसरो का चंद्रयान-3 मिशन तीन लाख 84 हजार किलोमीटर की दूरी पर सफलतापूर्वक उतरा, जबकि एल-वन मिशन 15 लाख किलोमीटर से भी अधिक की दूरी तय करने वाला है.
इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मिशन कितना महत्वाकांक्षी है. उससे भी बड़ी बात ये है कि मिशन का पूरा प्रयास स्वदेशी है. स्वदेश में विकसित यंत्रों का इस्तेमाल किया गया है. मिशन के लिए खास पेलोड बनाए गए हैं. इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स में तैयार किया गया है. इसमें सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप लगा होगा. इस टेलीस्कोप को इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स ने तैयार किया है.
यूवी पेलोड और एक्स-रे पेलोड दोनों का काम अलग-अलग है. यूवी पेलोड मुख्य रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का अध्ययन करेगा. एक्स-रे पेलोड का मुख्य काम फ्लेयर्स का ऑबर्जरवेशन करना है. इसमें मैग्नेटोमीटर पेलोड भी लगा होगा. इसका काम एल-वन के के चारों ओर मैग्नेटिक एरिया के बारे में जानकारी जुटाना होगा, इस चुंबकीय क्षेत्र की मदद से ही हेलो ऑर्बिट तक पहुंचा जाता है. इस मिशन में जिस सैटेलाइट का उपयोग किया जाएगा, वह पूरी तरह से तैयार है. इसे इसरो के स्पेसपोर्ट पर पहुंचाया जा चुका है.
एल-वन बिंदु ही क्यों चुना गया. इसके बारे में वैज्ञानिकों ने बताया कि इस बिंदु के नजदीक हेलो ऑर्बिट में रखे गए सैटेलाइट की मदद से सूर्य को लगातार देखा जा सकता है. यहां पर ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. आप सूर्य को रियल टाइम पर देख सकते हैं. उसकी गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. उनके अनुसार चार पेलोड सूरज पर नजर रखेंगे, जबकि तीन पेलोड एल-1 पार्टिकल और एरिया का इन-सीटू स्टडी करेंगे.
हमारे इस मिशन से एल-1 पर कैसा वातावरण है, इससे संबंधित आंकड़े जुटाए जाएंगे. इसकी मदद से प्लाज्मा फिजिक्स के बारे में जानकारी मिल सकेगा. कोरोनल हीटिंग की जानकारी मिलेगी. अभी तक दुनिया के दूसरे देशों द्वारा सूर्य की ओर कुल 22 मिशन भेजे गए हैं. अमेरिका, जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने इसमें भागीदारी की है. इनमें से नासा ने 14 मिशन भेजे हैं. नासा ने 2001 में जेनेसिस मिशन भेजा था, इसका मुख्य उद्देश्य चारों ओर चक्कर लगाते हुए सौर हवाओं का सैंपल जुटाना था.
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