चेन्नई: पहले भारतीय गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी (first Indian Governor-General C Rajagopalachari) के परपोते सीआर केसवन (great grandson CR Kesavan) ने नई संसद में ऐतिहासिक सेंगोल (Sengol) स्थापित करने के फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के निर्णय की सराहना की है. उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता, विरासत और परंपराओं की गहरी समझ रखने वाला व्यक्ति ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि इस तरह की महत्वपूर्ण घटना को इतिहास में उचित स्थान दिया जाए.
बता दें कि पीएम मोदी 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर ऐतिहासिक और पवित्र 'सेंगोल' की स्थापना करेंगे, जो अंग्रेजों से भारत में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है. केसवन ने कहा, 'हम में से बहुत से लोग पवित्र राजदंड के साथ सत्ता के हस्तांतरण में इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में नहीं जानते थे जो कि 'सेंगोल' है. एक भारतीय के रूप में, मैं पीएम मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं.'
बता दें कि सेंगोल शब्द संस्कृत के संकु से लिया गया. इस सेंगोल को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात अपने आवास पर कई नेताओं की उपस्थिति में स्वीकार किया था. सेंगोल को अंग्रेजों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सौंप दिया गया था.
केसवन ने कहा कि सी राजपोगलचारी की सलाह पर ही सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में दिया गया था. उन्होंने कहा, 'जब भी हम सत्ता के हस्तांतरण के बारे में सोचते हैं, तो अधिकांश भारतीय 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी स्पीच' और ' द स्ट्रोक ऑफ द मिडानाइट ऑवर' को ही याद करते हैं. केसवन ने कहा कि 1927 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड एरविन द्वारा वर्तमान संसद भवन का उद्घाटन किया गया था. उन्होंने कहा, जब समारोह हुआ तब किसी भी भारतीय मूल्य, संस्कृति या विरासत का कोई निशान नहीं था. उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि पीएम मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. यह सभी भारतीयों के लिए एक उत्सव का अवसर होगा.
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पीएम मोदी ने अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सेंगोल को अपनाने का फैसला किया है. सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया के दौरान, तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से उस समारोह के बारे में पूछा था जिसे इस अवसर का प्रतीक माना जाना चाहिए. नेहरू ने राजगोपालाचारी से परामर्श किया, जिन्हें राजाजी के नाम से भी जाना जाता है साथ ही जिन्हें भारतीय परंपराओं का गहरा ज्ञान था. राजाजी ने उन्हें चोल राजवंश के दौरान किए गए समारोह के बारे में बताया जिसमें एक राजा से एक उत्तराधिकारी को सत्ता का हस्तांतरण पुजारियों द्वारा आशीर्वाद दिया गया था और हैंडओवर के लिए इस्तेमाल किया गया प्रतीक 'सेंगोल' था. ऐतिहासिक वृत्तांतों के अनुसार, राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में धार्मिक मठ - थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया. अधीनम के नेता को 'सेंगोल' तैयार करने का काम सौंपा गया था. सेंगोल शब्द तमिल शब्द 'सेम्मई' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'धार्मिकता'. यह चोल साम्राज्य की एक भारतीय सभ्यतागत प्रथा है जो सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप में अग्रणी राज्यों में से एक था.
14 अगस्त, 1947 को सत्ता हस्तांतरण के समय, तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था- इनमें अधीनम के उप महायाजक, नादस्वरम वादक राजारथिनम पिल्लई और ओडुवर (गायक) - सेंगोल को ले जाने वाले आदि. इस दौरान पुरोहितों ने कार्यवाही का संचालन किया. उन्होंने सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को दे दिया और उसे वापस ले लिया. सेंगोल को पवित्र जल से शुद्ध किया गया था. इसके बाद इसे जुलूस के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू के घर ले जाया गया, जहां इसे उन्हें सौंप दिया गया. वहीं महायाजक के निर्देशानुसार एक विशेष गीत गाया गया.
इसी कड़ी में गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ऐतिहासिक सेंगोल को स्थापित करने के लिए संसद भवन सबसे उपयुक्त और पवित्र स्थान है. उन्होंने कहा कि यह तमिलनाडु में एक प्रमुख धार्मिक मठ के महायाजकों द्वारा आशीर्वादित है. इसमें नंदी, 'न्याय' के दर्शक के रूप में अपनी अदम्य दृष्टि के साथ, शीर्ष पर हाथ से नक्काशी की गई है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल के प्राप्तकर्ता के पास न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने के लिए आदेश (तमिल में 'आनाई') है. यह सबसे आकर्षक है, क्योंकि लोगों की सेवा के लिए चुने गए लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए.
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(ANI)