नई दिल्ली: बीते महीने तिलहन की फसलों पर किसानों को एमएसपी (MSP) से ज्यादा भाव मिले और कुछ राज्यों में तो हाथों-हाथ खरीद भी हो गई. किसानों को तिलहन (Oil Seeds) की फसलों को बेचने के लिए न तो सरकारी खरीद का सहारा लेना पड़ा और न ही मंडियों तक पहुंचना पड़ा, क्योंकि व्यापारी उनके घर तक पहुंच कर खरीदारी कर रहे थे. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब तीनों नए कृषि कानून (3 agricultural laws) लागू ही नहीं हुए तो उसका असर धरातल पर कैसे दिखने लगा ?
कई कृषि विशेषज्ञों और किसान नेताओं का कहना है कि तिलहन पर ज्यादा भाव मिलना सरकार की नीतियों के कारण नहीं, बल्कि उसके लिये कई अन्य तथ्य जिम्मेदार हैं. दरअसल, मांग में बढ़त और आपूर्ति में कमी के कारण पिछले एक वर्ष में खाद्य तेलों की कीमतें लगातार बढ़ी है. इसके लिण् अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में खाद्य तेल की बढ़ती कीमतें भी जिम्मेदार है।
साल भर में खूब बढ़ी तिलहन की कीमत
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष और कृषि विशेषज्ञ चौधरी पुष्पेंद्र सिंह (Chaudhary Pushpendra Singh) बताते हैं कि पिछले एक साल में सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, पाम ऑयल इत्यादि की कीमतें काफी बढ़ गई हैं. इसके पीछे मूल कारण हमारे देश में खाद्य तेलों का कम उत्पादन है. देश में खाद्य तेलों का उत्पादन 75 से 80 लाख टन होता है, जबकि खपत 2.25 से 2.5 करोड़ टन के आस पास है.
इस तरह से हर वर्ष 130 से 150 लाख टन हर साल आयात करते हैं. कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण बाहर देशों में भी लॉकडाउन हुआ, लेकिन कई देशों में जब कोरोना महामारी नियंत्रित हुई तो खाद्य तेलों की मांग बढ़ने लगी. जहां तक आने वाले समय में कोरोना की तीसरी लहर आने की बात है, उसके लिए चीन जैसे देशों ने इसके लिए स्ट्रेटेजिक रिजर्व तैयार किया है और अपने यहां भंडारण बढ़ाया है. भंडारण बढ़ने से भी कीमतें बढ़ी हैं.
सरकार की नीति का कोई असर नहीं
तीसरा बड़ा कारण है विश्व में जिन देशों में यह तेलों का उत्पादन होता है, वहां भी कहीं मजदूरों की कमी या कहीं सूखा पड़ने के कारण उत्पादन पर फर्क पड़ा है. ये सब मूल कारण हैं जिनके कारण देश में भी खाद्य तेलों की कीमतें लगातार बढ़ी हैं. इस तरह से जब तिलहन की फसल आई, तो मांग ज्यादा होने के कारण व्यापारियों ने फसल को हाथों-हाथ लिया और किसानों को ज्यादा भाव भी मिला.
पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि इसमें सरकार की किसी भी नीति का कोई असर नहीं है. ऐसे में सरकार के कृषि कानूनों के समर्थक या स्वयं सरकार यदि इस बात का श्रेय लेना चाहते हैं कि उनके कृषि कानूनों के कारण ऐसा हुआ है तो इसमें कोई सच्चाई नहीं है.