देहरादून: उत्तराखंड में भारत-नेपाल सीमा पर नो मेंस लैंड (जब किन्हीं दो देशों के बीच सीमा निर्धारित करने के लिए कुछ जमीन छोड़ दी जाती है तो उस जगह को नो मेंस लैंड कहा जाता है) में नेपाल की तरफ से अतिक्रमण का मामला सामने आया है. इतना ही नहीं, नेपाल के लोगों की तरफ से भारत की जमीन के कुछ हिस्से पर भी अतिक्रमण किया गया है, जहां नेपाली लोग खेती कर रहे हैं, जिसका भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार ने संज्ञान लिया है. उत्तराखंड के स्थानीय प्रशासन (उधमसिंह नगर) ने नेपाल और भारत की तरफ से संयुक्त सर्वे करवाकर अतिक्रमण हटाने का काम शुरू कर दिया है.
उत्तराखंड के चार जिलों की सीमा नेपाल से लगती है: उत्तराखंड का बड़ा हिस्सा नेपाल और चीन की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगता है. प्रदेश के चार जिलों उधमसिंह नगर, चंपावत, बागेश्वर और पिथौरागढ़ की सीमा नेपाल से लगती है. फिलहाल भारत के जिसे हिस्से पर नेपाल की तरफ से अतिक्रमण किया गया है, यानी जहां पर अवैध रूप से नेपाल के लोग खेती कर रहे हैं, वो उधमसिंह नगर जिले के खटीमा के नागराज तराई और चंपावत जिले के मेलघाट का एरिया है.
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साल 2021 में भारत ने कराई थी जांच: बता दें कि, चंपावत जिले के टनकपुर में नेपाल ने भारत की करीब 5 हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर रखा है, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच 13 साल के विवाद चल रहा है, लेकिन इसका अभीतक कोई हल नहीं निकला है. इससे पहले अप्रैल 2022 में ही चंपावत के टनकपुर में भारत-नेपाल सीमा पर बने पिलरों को क्षतिग्रस्त करने का मामला भी सामने आया था. भारत की तरफ से इसको लेकर साल 2021 में जांच भी कराई गई थी, लेकिन वो जांच कितनी आगे बड़ी वो अभी साफ नहीं हो पाया है.
नो मेंस लैंड में की जा रही अवैध रूप से खेती: बताया जा रहा है कि ये पूरा क्षेत्र नो मेंस लैंड में आता है. यहां किसी भी तरह का कोई भी मानवीय दखल नहीं हो सकता है. बावजूद इसके नेपाल की तरफ से इस क्षेत्र में लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है. नेपाल के कुछ लोग इस इलाके में अवैध रूप से खेती कर रहे हैं, जो सामरिक दृष्टि से भारत के लिए सही नहीं है. क्योंकि भारत और नेपाल की अधिकांश सीमा पूरी तरह के खुली हुई है.
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क्या कहते हैं अधिकारी: उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों की मानें तो उधमसिंह नगर जिले के खटीमा और चंपावत जिले के सीमावर्ती इलाके में नेपाल के लोग अवैध रूप से भारत की जमीन पर खेती कर रहे हैं, जबकि दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर जो समझौता है, उसमें इस क्षेत्र में किसी भी तरह की मानवीय गतिविधि नहीं हो सकती है, फिर भी नेपाल की तरफ से 21 जगहों पर खेती की जा रही है, जिसे उत्तराखंड के अधिकारियों ने सरासर गलत बताया है.
अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा: उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों की मानें तो उत्तराखंड और नेपाल की सीमा पर सुंदर नगर में मादेशी जाति के लोग खेती कर रहे हैं. इसको लेकर खटीमा के एसडीम रविंद्र सिंह बिष्ट ने बताया कि जल्द ही नेपाल सीमा पर अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा. इस अभियान में वन विभाग, एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) और सिंचाई विभाग के साथ-साथ अन्य विभागों का भी सहयोग लिया जा रहा है. यह मामला दो देशों की सीमा से जुड़ा हुआ है, इसलिए सभी पहलुओं की ध्यान में रखकर कार्रवाई की जा रही है.
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संयुक्त सर्वे कराया जा रहा है: इस पूरे मसले पर ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने फोन पर बातचीत की. उनका कहना है कि ये मामले दो देशों के बीच का है. नेपाल की सीमा उत्तराखंड से लगती है और नेपाल भारत का मित्र राष्ट्र भी है, इसलिए दोनों देश के अधिकारी संयुक्त रूप से सर्वे करेंगे, जिसका काम जल्द शुरू हो जाएगा. जहां भी अतिक्रमण होगा उसे हटा दिया जाएगा. भारत की जमीन किसी को नहीं दी जा सकती है. इस मामले का संज्ञान भारत सरकार को भी है. पहले भी इसको लेकर पत्रचार हुए हैं.
भारत-नेपाल की सीमा पर बनेंगे दो पुल: भारत का नेपाल से रोटी-बेटी का रिश्ता है, यही कारण है कि भारत ने हाल ही में नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दो मोटर पुलों की अनुमति दी है. एक पुल पिथौरागढ़ के झूलाघाट और दूसरा पुल सिर्खा (धारचूला) में बनेगा. इन पुलों के निर्माण में जो भी खर्च आएगा, वो भारत सरकार का विदेश मंत्रालय उत्तराखंड सरकार को देगा. दोनों पुलों की जल्द ही डीपीआर (DPR) तैयार होने वाली है. ये दोनों मोटर पुल महाकाली नदी पर बनेंगे. झूलाघाट में बनने वाला मोटर पुल काफी विस्तृत होगा. बताया जा रहा है कि इसकी लंबाई 500 मीटर और चौड़ाई करीब 10 मीटर होगी. इसे टिहरी के डोबरा चांठी पुल की तहर डबल लेन बनाया जाएगा. वहीं, सिर्खा में बनने वाले मोटर पुल की लंबाई 400 मीटर है और चौड़ाई 10 मीटर रहेगी. बता दें कि, वर्तमान में बनबसा में स्थित मोटर पुल भी महाकाली नदी पर ही बना है. वहीं, धारचूला के छारछुम में भी साल 2024 तक एक मोटर पुल का कार्य पूरा होने की उम्मीद है. बता दें कि, वर्तमान में दोनों देशों के बीच चंपावत जिले में स्थित बनबसा के शारदा बैराज से ही वाहनों की आवाजाही हो सकती है.
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उत्तराखंड लोक निर्माण विभाग के सचिव पंकज पांडेय की मानें तो दोनों पुलों को लेकर उच्च अधिकारियों से पत्राचार हो चुका है. इन पुलों के बनाने का रास्ता पहले तब ही साफ हो गया था, जब नेपाल के पीएम भारत आए थे और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस विषय पर चर्चा की थी. इन पुलों के बनने से दोनों देशों की जनता और व्यापारियों को काफी फायदा होगा.
बता दें कि, मौजूदा समय में पिथौरागढ़ में धारचूला और झूलाघाट से नेपाल को जोड़ने का पैदल मार्ग पुल (झूला पुल) है, जबकि चंपावत के टनकपुर-बनबसा से होते हुए महेंद्रनगर को जोड़ने वाला मोटर पुल है, जिससे छोटी-बड़ी गाड़ियों का आना-जाना होता है. अब जो दो नए मोटर पुल स्वीकृत हुए हैं उसमें एक बड़ा मोटर पुल और एक छोटा मोटर पुल बन रहा है. इन दो पुलों के बनने से सभी प्रकार के वाहनों (मालवाहक भी) की आवाजाही आसानी से हो सकेगी.