रांची: झारखंड के चाईबासा जिले में एक सप्ताह के भीतर नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में झारखंड पुलिस के तीन जांबाज शहीद हो गए. नक्सलियों ने घात लगाकर उनपर हमला किया था. जिसमें सीआरपीएफ के सुशांत कुमार झारखंड पुलिस के सब इंस्पेक्टर अमित तिवारी और झारखंड पुलिस के ही हवलदार गौतम तीनों वीरगति को प्राप्त हो गए. एक तरफ जहां पूरा देश स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा था वहीं दूसरी तरफ झारखंड में सोमवार की देर रात नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया. जिसमें इंस्पेक्टर अमित कुमार तिवारी और हवलदार गौतम शहीद हो गए.
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नक्सलवाद की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है झारखंड पुलिस को: झारखंड में नक्सलवाद की जड़ें खोखली हो चली है, लेकिन नक्सलवाद की जड़े खोखली करने के दौरान झारखंड पुलिस को की कीमत भी चुकानी पड़ी है. अपनी जान देकर झारखंड और केंद्रीय बलों के अधिकारियों और जवानों ने झारखंड को नक्सल मुक्त करने की राह पर खड़ा किया है. एक बार फिर से नक्सली सिर उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
दरअसल झारखंड को अपने गठन के साथ विरासत में नक्सलवाद मिला, जिस समय राज्य बना था यानी साल 2000 में, इसके आठ जिले नक्सल प्रभावित थे, लेकिन जल्द ही ये आंकड़ा दोगुने से भी अधिक हो गया. नतीजा राज्य में नक्सल वारदातें बढ़ीं और इसका सीधा नुकसान झारखंड पुलिस को उठाना पड़ा. झारखंड गठन के इन 22 साल छह महीनों में 551 ( सेंट्रल और राज्य मिलाकर) से अधिक जवानों और अधिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है. वहीं नक्सलवाद का नुकसान सबसे बड़ी कीमत झारखंड के आम नागरिकों को चुकानी पड़ी है. 22 सालों में 1895 आम नागरिक नक्सल हिंसा में अपनी जान गवां चुके हैं.
22 सालों में 551 पुलिसकर्मी और 1895 आम लोग हुए नक्सल हिंसा के शिकार: झारखंड गठन के बाद नक्सली वारदातों में 551 से ज्यादा पुलिसकर्मी और 1887 आम लोग मारे गए हैं. वहीं, झारखंड पुलिस ने साल 2001-22 के बीच 339 नक्सलियों को भी मुठभेड़ों में मार गिराया है. भाकपा माओवादियों के हुए बड़े हमलों में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार, डीएसपी स्तर के अधिकारी डीएसपी प्रमोद कुमार रांची के बुंडू में, पलामू में देवेंद्र राय, चतरा में विनय भारती तक को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया. झारखंड गठन के ठीक एक वर्ष पहले लोहरदगा एसपी रहे अजय कुमार सिंह भी नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. 2002 में सबसे ज्यादा 69 पुलिस वाले हुए थे शहीद झारखंड में साल 2001 में 55 पुलिसकर्मी नक्सलियों के हमले में शहीद हुए थे.
1887 आम लोग मारे गए नक्सल हिंसा में: नक्सलवाद का दंश सबसे ज्यादा झारखंड के आम लोगों को भुगतना पड़ा है. 2001 से लेकर 2022 के अक्टूबर महीने तक नक्सली हिंसा में कुल 1887 आम लोग अपनी जान गवां चुके हैं. साल 2007 में सबसे ज्यादा 175 लोग नक्सली हिंसा के शिकार हुए थे.
319 नक्सली भी मारे गए: साल 2021 से लेकर अक्टूबर 2022 तक पुलिस के साथ मुठभेड़ में 319 नक्सली भी मारे गए हैं। साल 2008 में झारखंड में सबसे ज्यादा 46 नक्सली मारे गए थे. झारखंड के निर्माण के पहले तीन वर्ष में 2001, 02 और 03 में नक्सलियों को कोई क्षति नहीं हुई थी. लेकिन 2001 से 2003 तक नक्सलियों ने 144 पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन साल 2004 से झारखंड पुलिस ने अपने अभियान को धार दिया और 2004 में 18 नक्सलियों को एनकाउंटर में मार गिराया. 2004 से लेकर 2022 तक हर वर्ष पुलिस ने अपने एनकाउंटर में औसतन 07 नक्सली एनकाउंटर में मारे गए.
6265 नक्सली घटनाएं रिपोर्ट हुईं: 2001 से लेकर 2022 तक कुल 6265 नक्सली घटनाएं अलग-अलग थानों में रिपोर्ट की गई, सबसे ज्यादा नक्सली वारदात (512) 2009 में रिपोर्ट की गई.
99 बार पुलिस पर हमला: नक्सलियों ने 2001 से लेकर 2022 तक पुलिस को लक्षित कर यानी पुलिस को निशाना का 99 बार हमले किए. पुलिस को निशाना बनाकर सीधा हमला सबसे ज्यादा 2001, 2003 और 2006 में किया गया, इन वर्षों में एक ही साल में दस बार पुलिस पर सीधे हमला किया गया.
1343 बार हुआ एनकाउंटर: साल 2001 से लेकर 2022 के अक्टूबर महीने तक पुलिस और नक्सलियों के बीच 1343 बार एनकाउंटर हुआ. पुलिस और नक्सलियों के बीच सबसे ज्यादा 119 बार साल 2009 में एनकाउंटर हुआ था.
रेलवे और सरकारी बिल्डिंगों को भी नुकसान पहुंचाया है नक्सलियों ने: साल 2001 से लेकर 2022 तक नक्सलियों ने रेलवे और झारखंड के सरकारी संपत्ति को भी जबरदस्त नुकसान पहुचाया है. हालांकि 2012 से इन घटनाओं पर लगाम लग गई. नक्सलियों ने साल 2001-200 के बीच 170 बार रेलवे के किसी न किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है. वहीं, 2001 से 22 के बीच 177 सरकारी भवनों को भी नक्सलियों के द्वारा नुकसान पहुंचाया गया.