रांचीः भाकपा माओवादियों के केंद्रीय कमेटी और पूर्वी रीजनल ब्यूरो के सदस्य कामरेड अरुण कुमार भट्टाचार्य उर्फ कबीर उर्फ कंचन दा की गिरफ्तारी के विरोध में नक्सलियों ने 5 अप्रैल को बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम बंद का ऐलान किया है. भाकपा माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता अभय और संकेत ने बंद को लेकर पत्र भी जारी किया है.
क्या है पत्र मेंः माओवादियों ने अपने पत्र में लिखा है कि उनके नेता कामरेड कंचन दा के साथ पुलिस अमानवीय व्यवहार कर रही है. हिरासत में पूछताछ के नाम पर मानसिक यातना, शारीरिक दुर्बलता के बावजूद बेहतर इलाज के लिए समुचित व्यवस्था नहीं दी जा रही है. संगठन यह मांग करता है कि उनका उचित इलाज करवाया जाए. साथ ही उन्हें राजनीतिक बंदी का दर्जा देकर बिना शर्त रिहा किया जाए. कंचन दा की गिरफ्तारी के विरोध में संगठन 5 अप्रैल को एक दिवसीय झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम बंद का ऐलान करता है. साथ ही आम जनों से अपील भी करता है कि वह बंद के समर्थन में आगे आए.
कौन है कंचन दाः भाकपा माओवादियों के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं में शामिल कामरेड कंचन दा को झारखंड पुलिस की निशानदेही पर असम से इसी महीने गिरफ्तार किया गया था. वह मुलत: पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के शिवपुर, शालीमार रोड का रहने वाला है. साल 2004 तक अरूण कुमार भट्टाचार्या उर्फ कबीर उर्फ कंचन उर्फ कंचन दा को सैक सदस्य से सेंट्रल कमिटी सदस्य के तौर पर प्रोन्नति दी गई थी. साल 2019 तक सारंडा इलाके में रह कर कंचन ने कैडरों को जोड़ने का काम किया था. वह पार्टी की विचारधारा से लोगों को जोड़ने का काम करता था. बीते दो सालों से असम और नार्थ ईस्ट रीजन का प्रभारी बनाया गया था. बंगाल, असम के साथ साथ वह झारखंड और बिहार में भी काफी प्रभावी रहा था.
महाराज प्रमाणिक ने दी थी पहली तस्वीरः इसी वर्ष जनवरी महीने में पुलिस के समक्ष सरेंडर करने वाले महाराज प्रमाणिक ने कंचन के खिलाफ पुलिस को बड़ी जानकारी दी थी. पहली बार प्रमाणिक के मोबाइल से ही कंचन की तस्वीर झारखंड पुलिस को हाथ लगी थी. महाराज ने बताया था कि कंचन अब असम में संगठन की जिम्मेदारी संभाल रहा है. महाराज से मिली जानकारी को झारखंड पुलिस ने असम पुलिस के साथ शेयर किया था. जिसके बाद कंचन की गिरफ्तारी असम से हुई थी.
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कई सालों तक सारंडा में रहा सक्रियः कंचन दा भाकपा माओवादियों का काफी गुप्त चेहरा रहा था. पुलिस को कंचन के बारे में सिर्फ इतनी ही जानकारी मिली थी कि वह माओवादी संगठन का बड़ा रणनीतिकार है. पार्टी में नए कैडरों को कैसे जोड़ा जाए, माओवादी पार्टी की दशा- दिशा क्या होगी, इन नीतिगत चीजों में रंजीत की दखल थी. सारंडा में प्रशांत बोस के साथ रंजीत की काफी अच्छी पैठ थी.