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उत्तराखंड : तपोवन के ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी के गोताखोरों की टीम

उत्तराखंड में चमोली जिले के तपोवन-रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से बनी झील की जांच भारतीय नौसेना के गोताखोरों की एक टीम कर रही है. नेवी के गोताखोरों को इंडियन एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर की मदद से झील का डेटा लेने के लिए उतारा गया.

ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी टीम
ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी टीम
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Published : Feb 21, 2021, 3:59 PM IST

नई दिल्ली : उत्तराखंड के तपोवन में बनी ग्लेशियल-लेक (हिमखंडों से बनी झील) की जांच भारतीय नौसेना के गोताखोरों की एक टीम कर रही है. तपोवन में करीब पांच किमी ऊंचाई पर बनी इस झील का निरीक्षण करने के लिए नेवी के गोताखोरों को इंडियन एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर की मदद से समुद्र तल से 14,000 फीट की ऊंचाई पर उतारा गया है.

यहां से जो भी डेटा जमा किया जाएगा उसका अध्ययन वैज्ञानिक करेंगे. अब इस अहम डेटा का उपयोग वैज्ञानिक बांध की मिट्टी की दीवार पर दबाव का निर्धारण करने के लिए करेंगे.

नेवी ने बताया , 'नेवी के गोताखोरों ने झील की गहराई नापने का काम ईको साउंडर इक्व पमेंट के जरिए जमे हुए पानी के पास किया. इस बेहद मुश्किल काम के दौरान भारतीय वायु सेना के पायलटों ने कठिन इलाके में भी अपनी स्थिति स्थिर बनाए रखी. '

ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी की टीम
ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी की टीम

हिमस्खलन के कारण 14,000 फीट की ऊंचाई पर ऋषि गंगा नदी पर बने इस झील के कारण प्रशासन के लिए जरूरी था कि वे गहराई मापकर जलग्रहण की स्थिति का आकलन करें. सड़क के रास्ते वहां पहुंचना मुश्किल था, लिहाजा इस काम में नेवी के गोताखोंरो को वहां तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली गई.

ग्लेशियर टूटने से बनी झील

7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से चमोली जिले के तपोवन-रैणी क्षेत्र में आई भीषण बाढ़ के कारण 67 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं कई लोग अब भी लापता हैं.

पढ़ें- पथरीला रास्ता और बीमार को डंडी-कंडी का सहारा, आखिर कब खत्म होगा पहाड़ का 'दर्द'

क्षेत्र में अभी भी बचाव कार्य चल रहा है. इस आपदा के बाद रैणी गांव से दूर ऋषिगंगा नदी में एक झील बन गई है. ये वही जगह है जो बाढ़ का एपिसेंटर थी.

नई दिल्ली : उत्तराखंड के तपोवन में बनी ग्लेशियल-लेक (हिमखंडों से बनी झील) की जांच भारतीय नौसेना के गोताखोरों की एक टीम कर रही है. तपोवन में करीब पांच किमी ऊंचाई पर बनी इस झील का निरीक्षण करने के लिए नेवी के गोताखोरों को इंडियन एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर की मदद से समुद्र तल से 14,000 फीट की ऊंचाई पर उतारा गया है.

यहां से जो भी डेटा जमा किया जाएगा उसका अध्ययन वैज्ञानिक करेंगे. अब इस अहम डेटा का उपयोग वैज्ञानिक बांध की मिट्टी की दीवार पर दबाव का निर्धारण करने के लिए करेंगे.

नेवी ने बताया , 'नेवी के गोताखोरों ने झील की गहराई नापने का काम ईको साउंडर इक्व पमेंट के जरिए जमे हुए पानी के पास किया. इस बेहद मुश्किल काम के दौरान भारतीय वायु सेना के पायलटों ने कठिन इलाके में भी अपनी स्थिति स्थिर बनाए रखी. '

ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी की टीम
ग्लेशियल लेक की जांच करने उतरी नेवी की टीम

हिमस्खलन के कारण 14,000 फीट की ऊंचाई पर ऋषि गंगा नदी पर बने इस झील के कारण प्रशासन के लिए जरूरी था कि वे गहराई मापकर जलग्रहण की स्थिति का आकलन करें. सड़क के रास्ते वहां पहुंचना मुश्किल था, लिहाजा इस काम में नेवी के गोताखोंरो को वहां तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली गई.

ग्लेशियर टूटने से बनी झील

7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से चमोली जिले के तपोवन-रैणी क्षेत्र में आई भीषण बाढ़ के कारण 67 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं कई लोग अब भी लापता हैं.

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क्षेत्र में अभी भी बचाव कार्य चल रहा है. इस आपदा के बाद रैणी गांव से दूर ऋषिगंगा नदी में एक झील बन गई है. ये वही जगह है जो बाढ़ का एपिसेंटर थी.

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