छिंदवाड़ा। ग्रामीण इलाकों में गिलकी और तोरई के सूखने के बाद उसके भीतर निकलने वाले स्क्रबर को आदिवासी अंचल के लोग शरीर की सफाई और रूखी त्वचा को हटाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, यही प्राकृतिक स्क्रबर अब ऑनलाइन मार्केट में धूम मचा रहा है. प्राकृतिक स्क्रबर की डिमांड विदेश तक में है, जानिए क्या है प्राकृतिक स्क्रबर.
आदिवासियों का कुचड़ा विदेश में मचा रहा धूम: गांव देहात में गिलकी, तोरई सब्जी के लिए उपयोगी फल से मिलने वला कुचड़ा (लूफा) बर्तन साफ करने के साथ ही हाथ-पैर घिसने के काम में आता है. आधुनिक बाजारवाद में अब यही नेचुरल लूफा के नाम पर ऑनलाइन मार्केट में जमकर बिक रहा है, इसे आदिवासी अंचल में कुचड़ा नाम से पहचाना जाता है.
मप्र के आदिवासी इलाकों में गिलकी और तोरई जैसी सब्जियों से निकलने वाले प्राकृतिक स्क्रबर को ग्रामीण इलाकों में कुचड़ा कहा जाता है, विदेशों में और ऑनलाइन मार्केट में इसकी काफी डिमांड है. दरअसल गिलकी, तोरई के सूखने के बाद उसके अंदर से जो हिस्सा निकलता है, वह एक स्क्रबर की तरह होता है. जिसका इस्तेमाल ज्यादातर रूखी त्वचा को साफ करने में किया जाता है, चूंकि यह प्राकृतिक है इसलिए आदिवासी इलाकों में इस स्क्रबर की मांग विदेशों से भी बढ़ी है.
ऐसे तैयार होता है नेचुरल लूफा: नेचुरल लूफा नाम से विदेशों में महंगी कीमत पर बिकने वाला कुचड़ा जिले के लगभग किसानी वाले घर या गांव में जब गिलकी, नेनुआ या तोरई समय से नहीं तोड़ी जाती थी, तब वह कड़ी हो जाती है और सब्जी बनाने योग्य नहीं रहती थी, तब उसे उसकी बेला में ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, जो अगले वर्ष पककर बीज का इंतजाम कर देती है. गिलकी, तोरई नेनुआ दोनों की ही बेल होती है जो की छप्पर, खेतों की मेढ़ परया खेत में ही लकड़ी के बाढ़ के सहारे उगाई जाती है, इसलिए अक्सर पत्तों व बेल में छिपी तोरई तोड़ते समय छूट जाती थी, इसे बीज के लिए लता में ही पकने के लिए रहने दिया जाता था. सब्जी का सीजन खत्म होने के बाद जब बेल सूख जाती हैं, तब इन तोराई को तोड़कर कहीं लटका दिया जाता था, जिससे बीज संग्रह किया जा सके. इसी से प्राकृतिक स्क्रबर निकलता है.
पहले स्कॉच ब्राइट अब बना नेचुरल लूफा: वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ. नवीन वर्मा बताया कि "आवश्यकता से अधिक तोरई या गिलकी जब कड़ी हो जाती है तो अंदर के तंत्र इनके बीज संभाल लेते हैं, लेकिन इनकी खोल कहिए या गूदा निकलने के बाद बचा आवरण से ग्रामीण बर्तन मांजते थे. उस समय चूल्हे पर भोजन बनता था और मिट्टी व राख की मदद से तोरई के लूफे से रगड़ कर बर्तन साफ किया जाता था, ये विदेशी लूफा ही हमारा स्कॉच ब्राइट हुआ करता था. बर्तन बार की टिकिया की जगह पर राख में ही डिटर्जेन्ट पाउडर मिलाकर बर्तन धोकर चमका देते थे. इसके अलावा लूफा शरीर का मैल व रूखी त्वचा को रगड़कर साफ करने के काम आता है."
नेचुरल लूफा बन सकता है आमदनी का जरिया: आदिवासियों के खेतों और घरों के आसपास काफी मात्रा में गिलकी और तोरई के फल सूखे हुए लटके नजर आते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव के चलते ये सिर्फ उनके लिए कूड़े से ज्यादा कुछ नहीं है. आदिवासियों और वनस्पति में शोध करने वाले डॉक्टर विकास शर्मा का कहना है कि "कृषि विभाग और प्रशासन अगर पहल करे तो नेचुरल लूफा ग्रामीण आदिवासियों के लिए आमदनी का एक अच्छा जरिया बन सकता है, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए आदिवासी भी इसे सेल कर सकते हैं."