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MP News: मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में बदलाव, विशेषज्ञ बोले- MBBS जैसे कोर्स को भेलपुरी बनाने का काम है - राष्ट्रीय शिक्षा नीति

उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव किया जा रहा है इसी के चलते NMC ने मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में भी बडे़ बदलाव करना शुरू कर दिया है. नए पाठ्यक्रम को लेकर कई सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि विज्ञान पर जबरन धार्मिक मान्यताओं को थोपा जा रहा है.

Medical education in india
पाठ्यक्रम में बदलाव पर विशेषज्ञ
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Published : Jun 29, 2023, 10:01 PM IST

पाठ्यक्रम में बदलाव पर विशेषज्ञ

सागर। केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बडे़ पैमाने पर स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव किया जा रहा है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) ने मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में भी बडे़ बदलाव करना शुरू कर दिया है. इन बदलावों को लेकर चिकित्सा जगत के जानकार और मेडिकल टीचर विरोध कर रहे हैं. चिकित्सा शिक्षा से जुडे़ विशेषज्ञों का मानना है कि विज्ञान पर जबरन धार्मिक मान्यताओं को थोपा जा रहा है. एमबीबीएस जैसे पाठ्यक्रम में आयुर्वेद, योग, नैतिक शिक्षा, मंत्र चिकित्सा और महापुरूषों की जीवनी को पाठ्यक्रम में जोड़ दिया गया है, जबकि ऐलौपेथी एक अलग विधा है. NMC पाठ्यक्रम में इस तरह के बदलाव कर एमबीबीएस जैसे प्रतिष्ठित कोर्स को भेलपुरी बनाने का काम कर रही है. इससे जहां मेडिकल के छात्रों का नुकसान होगा, वहीं सबसे ज्यादा नुकसान पब्लिक हेल्थ सेक्टर को होगा.

क्या बदलाव किए जा रहे है मेडिकल एजुकेशन में: मेडिकल एजुकेशन में तेजी से बदलाव किए जा रहे हैं. पहले हिंदी में मेडिकल की शिक्षा शुरू कराए जाने को लेकर सवाल खडे़ हो रहे थे. अब मेडिकल एजुकेशन में बडे़ पैमाने पर पाठ्यक्रम में बदलाव शुरू कर दिया गया है. इन बदलाव के तहत (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) ने एमबीबीएस के प्रथम वर्ष में योग, मंत्र चिकित्सा, गर्भ संस्कार में मंत्रों का प्रयोग, महापुरूषों की जीवनी पढ़ाना शुरू कर रहे हैं. इसके अलावा मेडिकल काॅलेज खोलने के लिए कठिन शर्तों को लगातार शिथिल किया जा रहा है. जो मेडिकल एजुकेशन को स्तर को गिराने का काम करेगी.

मेडिकल एजुकेशन के टीचर्स कर रहे विरोध: NMC द्वारा मेडिकल एजुकेशन में किए जा रहे ऐसे बदलाव के मेडिकल एजुकेशन से जुडे़ जानकारों ने विरोध शुरू कर दिया है. बुंदेलखंड मेडिकल कालेज में एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर और मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सर्वेश जैन कहते हैं कि NMC जो मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में बदलाव कर रही है. वो देशभक्ति, राष्ट्रीयता, वैदिक धर्म और संस्कृति के नजरिए से भले ठीक हों, लेकिन विज्ञान के नजरिए से उचित नहीं कहा जा सकता है. क्योकि जो चीजें पाठ्यक्रम में शामिल की जा रही है, वो लोगों को भावुक करने के लिए अच्छी है, लेकिन उनका वैज्ञानिक आधार नहीं है.

आपरेशन मुहुर्त देखकर किया जाना, महिलाओं के गर्भस्थ शिशु को मंत्र चिकित्सा से तेजस्वी बनाना, नैतिक शिक्षा के अंतर्गत वीर सावरकर और हेडगेवार की जीवनी पढ़ाई जाना. इसके साथ एमबीबीएस में योग और आयुर्वेद का प्रशिक्षण देने की जिद है. जब योग के लिए अलग, आयुर्वेद के लिए बीएएमएस, होम्योपैथी के लिए बीएचएमएस और यूनानी चिकित्सा के लिए बीयूएमएस होता है. तो इनको एमबीबीएस में मिलाकर भेलपुरी बनाने की जरूरत क्या है. विज्ञान को अलग रखिए और धार्मिक और सांस्कृतिक लगाव अलग रखिए. हिंदुस्तान में आप गर्भस्थ शिशु को मंत्र चिकित्सा से तेजस्वी बना लोगे, लेकिन उसकी मां को आयरन और फोलिक एसिड की दवा तक सरकार नहीं दे पा रही है.

तालिबान की तरह जिद कर रहा है NMC: इन बदलावों को लेकर डाॅ. सर्वेश जैन कहते हैं कि ऐसे बदलाव के पहले NMC को विशेषज्ञों और मेडिकल एजुकेशन के विद्वानों से सलाह लेना थी लेकिन ये तालिबान की तरह धार्मिक विश्वास और धार्मिक जिद लागू करने का काम कर रहे हैं. आप चाहते हैं कि भारत उत्तर कोरिया, सऊदी अरब या अफगानिस्तान बन जाए. आप अपने धर्म के त्यौहार मनाइए, मंदिर जाइये, भजन करिए, जुलूस निकालिए और सड़क जाम करिए, लेकिन विज्ञान को प्रदूषित मत करिए.

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NCERT की किताब से चार्ल्स डारविन की थ्योरी हटाना चिंताजनक: डॉ. सर्वेश जैन कहते हैं कि कुछ दिन पहले एनसीईआरटी की किताब से चार्ल्स डारविन की थ्योरी आफ इवोल्यूशन हटा दिया गया. थ्योरी आफ इवोल्यूशन के जरिए मेडिकल स्टूडेन्ट को बताया जाता है कि मानव का क्रमिक विकास कैसे हुआ. इंसान छोटे जानवर से बंदर और बंदर से आदमी कैसे बना. डारविन की थ्योरी पढ़कर डॉक्टर अपेंडिक्स या एपेंडिसाइटिस की बीमारी के इलाज को समझता है क्योकिं अपेंडिक्स एक अवशेषी अंग है, जो 50 लाख साल पहले मानव के जानवर होने की निशानी है. आप अगर अपेंडिक्स या एपेंडिसाइटिस का इलाज और ऑपरेशन सिखाना चाहते हो, तो जरूरी है कि स्टूडेन्ट्स अपेंडिक्स का अस्तित्व स्वीकार करें. वो कब स्वीकार होगा, जब मेडिकल स्टूडेंट को डारविन की थ्योरी को पढ़ाया जाएगा.

डॉ. सर्वेश जैन ने कहा कि आप किताबों से डारविन की थ्योरी को हटा देंगे और उसकी जगह थ्योरी आफ क्रियेशन पढाएंगे कि सबकुछ भगवान ने पैदा किया है. ये धार्मिक जिद ठीक है, लेकिन धर्म का काम शांति कायम करना और सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना है. आप हर चीज में धर्म को मिलाएंगे, तो कन्फ्यूज डाक्टर पैदा होगें. अभी स्टूडेन्ट्स को बताया जाता है अगर पेटदर्द की शिकायत है, तो अपेंडिक्स का परीक्षण करें और अगर उसी वजह से दर्द है, तो ऑपरेशन कर अपेंडिक्स हटा दीजिए. आप मंत्र चिकित्सा, योग और आयुर्वेद से इलाज करोगे, तो क्या आप मरीज को इमरजेंसी में कपालभारती कराएगें.

दुनिया मानती है भारत की मेडिकल एजुकेशन का लोहा: प्रोफेसर डॉ सर्वेश जैन कहते हैं कि हमारे देश के डाक्टर अपने इलाज की गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. क्योकिं हमारी अस्पतालों में मरीजों का काफी दबाब होता है और हमारे डाक्टर्स को इलाज में महारथ हासिल हो जाती है. दूसरी तरफ हमारे देश में मेडिकल एजुकेशन के सिलेक्शन की प्रोसेस इतनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा वाली है कि डेढ़ अरब लोगों में लोगों में से कडी प्रतिस्पर्धा से एमबीबीएस के स्टूडेन्ट चयनित होते हैं लेकिन दस साल बाद क्या हाल होगा,आप समझ सकते हैं.

सबसे ज्यादा नुकसान पब्लिक हेल्थ सेक्टर को: डॉ सर्वेश जैन कहते हैं कि इन बदलावों को दूरगामी परिणाम हमें देखने को मिलेंगे. जितना असर मेडिकल एजुकेशन का होगा और कन्फयूज डाक्टर तैयार होगें. इसका सबसे ज्यादा असर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पडे़गा और पब्लिक हेल्थ सेक्टर धराशायी हो जाएगा. जो बडे़ आदमी सक्षम हैं, नीति निर्माता है, जो धर्म और राष्ट्रवाद की बातें करते हैं, वो अपने इलाज कराने बाहर चले जाएंगे. ऐसे नीम हकीम और आधे अधूरे ज्ञान वाले कन्फ्यूज्ड डॉक्टर जिनको थोडी ऐलौपेथी, थोडा आयुर्वेद, थोड़ा यूनानी और थोड़ा योग की जानकारी है, वो गरीब जनता का इलाज करेंगे. मेरे हिसाब से धार्मिक आस्थाएं अपनी जगह हैं. उनको विज्ञान से मिलाकर खिचड़ी तैयार नहीं करना चाहिए. आपको आने वाला भविष्य माफ नहीं करेगा, कि आपने विज्ञान को प्रूदषित किया है.

क्या कहना है डीन का: बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के डीन डॉ आर एस वर्मा कहते हैं कि एनएमसी जो पाठ्यक्रम में बदलाव करने जा रहा है, अभी तक उस बारे में मुझे कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली है. जहां तक विरोध की बात है और टीचर्स को एतराज है, तो उन्हें सार्वजनिक बयानबाजी से बचना चाहिए और अधिकारिक स्तर पर बात करनी चाहिए. हालांकि इस मामले में हकीकत ये है कि पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर भोपाल में बाकायदा वर्कशाप आयोजित हो चुकी है और बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के प्रोफेसर प्रशिक्षण में शामिल हो चुके हैं जिन्हें इन बदलाव की जानकारी दी गयी है.

क्या कहना है राजनीतिक दलों का: भाजपा नेता श्याम तिवारी कहते हैं कि दुनिया भर के लिए हमारे देश ने ज्ञान का रास्ता दिखाया है. हमारे पूर्वजों ने अपने ज्ञान के आधार पर विज्ञान से बढ़कर ऐसे चमत्कारिक काम किए हैं, कि सारी दुनिया उनका लोहा मानती है. अगर किसी को एतराज है, तो वह हमारी संस्कृति का विरोधी है. हमारे महर्षियों और पूर्वजों ने ऐसे काम सदियों पहले कर दिखाए है, जिन पर दुनिया के वैज्ञानिक आज तक काम नहीं कर पाए हैं.

वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप सबलोक कहते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए सामान्य शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और चिकित्सा विज्ञान में ऐसे कई बदलाव हो रहे हैं, जिनका उद्देश्य नई पीढ़ी को उत्कृष्ट और क्षमतावान बनाना नहीं बना रहे हैं, बल्कि कमजोर कर रहे हैं. आज हमारी शिक्षा पद्धति का पूरा दुनिया में लोहा माना जाता है, लेकिन इस तरह के बदलाव एक विशेष विचारधारा को बढावा देने के लिए हैं.

पाठ्यक्रम में बदलाव पर विशेषज्ञ

सागर। केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बडे़ पैमाने पर स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव किया जा रहा है. इसी कड़ी में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) ने मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में भी बडे़ बदलाव करना शुरू कर दिया है. इन बदलावों को लेकर चिकित्सा जगत के जानकार और मेडिकल टीचर विरोध कर रहे हैं. चिकित्सा शिक्षा से जुडे़ विशेषज्ञों का मानना है कि विज्ञान पर जबरन धार्मिक मान्यताओं को थोपा जा रहा है. एमबीबीएस जैसे पाठ्यक्रम में आयुर्वेद, योग, नैतिक शिक्षा, मंत्र चिकित्सा और महापुरूषों की जीवनी को पाठ्यक्रम में जोड़ दिया गया है, जबकि ऐलौपेथी एक अलग विधा है. NMC पाठ्यक्रम में इस तरह के बदलाव कर एमबीबीएस जैसे प्रतिष्ठित कोर्स को भेलपुरी बनाने का काम कर रही है. इससे जहां मेडिकल के छात्रों का नुकसान होगा, वहीं सबसे ज्यादा नुकसान पब्लिक हेल्थ सेक्टर को होगा.

क्या बदलाव किए जा रहे है मेडिकल एजुकेशन में: मेडिकल एजुकेशन में तेजी से बदलाव किए जा रहे हैं. पहले हिंदी में मेडिकल की शिक्षा शुरू कराए जाने को लेकर सवाल खडे़ हो रहे थे. अब मेडिकल एजुकेशन में बडे़ पैमाने पर पाठ्यक्रम में बदलाव शुरू कर दिया गया है. इन बदलाव के तहत (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) ने एमबीबीएस के प्रथम वर्ष में योग, मंत्र चिकित्सा, गर्भ संस्कार में मंत्रों का प्रयोग, महापुरूषों की जीवनी पढ़ाना शुरू कर रहे हैं. इसके अलावा मेडिकल काॅलेज खोलने के लिए कठिन शर्तों को लगातार शिथिल किया जा रहा है. जो मेडिकल एजुकेशन को स्तर को गिराने का काम करेगी.

मेडिकल एजुकेशन के टीचर्स कर रहे विरोध: NMC द्वारा मेडिकल एजुकेशन में किए जा रहे ऐसे बदलाव के मेडिकल एजुकेशन से जुडे़ जानकारों ने विरोध शुरू कर दिया है. बुंदेलखंड मेडिकल कालेज में एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर और मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सर्वेश जैन कहते हैं कि NMC जो मेडिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में बदलाव कर रही है. वो देशभक्ति, राष्ट्रीयता, वैदिक धर्म और संस्कृति के नजरिए से भले ठीक हों, लेकिन विज्ञान के नजरिए से उचित नहीं कहा जा सकता है. क्योकि जो चीजें पाठ्यक्रम में शामिल की जा रही है, वो लोगों को भावुक करने के लिए अच्छी है, लेकिन उनका वैज्ञानिक आधार नहीं है.

आपरेशन मुहुर्त देखकर किया जाना, महिलाओं के गर्भस्थ शिशु को मंत्र चिकित्सा से तेजस्वी बनाना, नैतिक शिक्षा के अंतर्गत वीर सावरकर और हेडगेवार की जीवनी पढ़ाई जाना. इसके साथ एमबीबीएस में योग और आयुर्वेद का प्रशिक्षण देने की जिद है. जब योग के लिए अलग, आयुर्वेद के लिए बीएएमएस, होम्योपैथी के लिए बीएचएमएस और यूनानी चिकित्सा के लिए बीयूएमएस होता है. तो इनको एमबीबीएस में मिलाकर भेलपुरी बनाने की जरूरत क्या है. विज्ञान को अलग रखिए और धार्मिक और सांस्कृतिक लगाव अलग रखिए. हिंदुस्तान में आप गर्भस्थ शिशु को मंत्र चिकित्सा से तेजस्वी बना लोगे, लेकिन उसकी मां को आयरन और फोलिक एसिड की दवा तक सरकार नहीं दे पा रही है.

तालिबान की तरह जिद कर रहा है NMC: इन बदलावों को लेकर डाॅ. सर्वेश जैन कहते हैं कि ऐसे बदलाव के पहले NMC को विशेषज्ञों और मेडिकल एजुकेशन के विद्वानों से सलाह लेना थी लेकिन ये तालिबान की तरह धार्मिक विश्वास और धार्मिक जिद लागू करने का काम कर रहे हैं. आप चाहते हैं कि भारत उत्तर कोरिया, सऊदी अरब या अफगानिस्तान बन जाए. आप अपने धर्म के त्यौहार मनाइए, मंदिर जाइये, भजन करिए, जुलूस निकालिए और सड़क जाम करिए, लेकिन विज्ञान को प्रदूषित मत करिए.

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NCERT की किताब से चार्ल्स डारविन की थ्योरी हटाना चिंताजनक: डॉ. सर्वेश जैन कहते हैं कि कुछ दिन पहले एनसीईआरटी की किताब से चार्ल्स डारविन की थ्योरी आफ इवोल्यूशन हटा दिया गया. थ्योरी आफ इवोल्यूशन के जरिए मेडिकल स्टूडेन्ट को बताया जाता है कि मानव का क्रमिक विकास कैसे हुआ. इंसान छोटे जानवर से बंदर और बंदर से आदमी कैसे बना. डारविन की थ्योरी पढ़कर डॉक्टर अपेंडिक्स या एपेंडिसाइटिस की बीमारी के इलाज को समझता है क्योकिं अपेंडिक्स एक अवशेषी अंग है, जो 50 लाख साल पहले मानव के जानवर होने की निशानी है. आप अगर अपेंडिक्स या एपेंडिसाइटिस का इलाज और ऑपरेशन सिखाना चाहते हो, तो जरूरी है कि स्टूडेन्ट्स अपेंडिक्स का अस्तित्व स्वीकार करें. वो कब स्वीकार होगा, जब मेडिकल स्टूडेंट को डारविन की थ्योरी को पढ़ाया जाएगा.

डॉ. सर्वेश जैन ने कहा कि आप किताबों से डारविन की थ्योरी को हटा देंगे और उसकी जगह थ्योरी आफ क्रियेशन पढाएंगे कि सबकुछ भगवान ने पैदा किया है. ये धार्मिक जिद ठीक है, लेकिन धर्म का काम शांति कायम करना और सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना है. आप हर चीज में धर्म को मिलाएंगे, तो कन्फ्यूज डाक्टर पैदा होगें. अभी स्टूडेन्ट्स को बताया जाता है अगर पेटदर्द की शिकायत है, तो अपेंडिक्स का परीक्षण करें और अगर उसी वजह से दर्द है, तो ऑपरेशन कर अपेंडिक्स हटा दीजिए. आप मंत्र चिकित्सा, योग और आयुर्वेद से इलाज करोगे, तो क्या आप मरीज को इमरजेंसी में कपालभारती कराएगें.

दुनिया मानती है भारत की मेडिकल एजुकेशन का लोहा: प्रोफेसर डॉ सर्वेश जैन कहते हैं कि हमारे देश के डाक्टर अपने इलाज की गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं. क्योकिं हमारी अस्पतालों में मरीजों का काफी दबाब होता है और हमारे डाक्टर्स को इलाज में महारथ हासिल हो जाती है. दूसरी तरफ हमारे देश में मेडिकल एजुकेशन के सिलेक्शन की प्रोसेस इतनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा वाली है कि डेढ़ अरब लोगों में लोगों में से कडी प्रतिस्पर्धा से एमबीबीएस के स्टूडेन्ट चयनित होते हैं लेकिन दस साल बाद क्या हाल होगा,आप समझ सकते हैं.

सबसे ज्यादा नुकसान पब्लिक हेल्थ सेक्टर को: डॉ सर्वेश जैन कहते हैं कि इन बदलावों को दूरगामी परिणाम हमें देखने को मिलेंगे. जितना असर मेडिकल एजुकेशन का होगा और कन्फयूज डाक्टर तैयार होगें. इसका सबसे ज्यादा असर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पडे़गा और पब्लिक हेल्थ सेक्टर धराशायी हो जाएगा. जो बडे़ आदमी सक्षम हैं, नीति निर्माता है, जो धर्म और राष्ट्रवाद की बातें करते हैं, वो अपने इलाज कराने बाहर चले जाएंगे. ऐसे नीम हकीम और आधे अधूरे ज्ञान वाले कन्फ्यूज्ड डॉक्टर जिनको थोडी ऐलौपेथी, थोडा आयुर्वेद, थोड़ा यूनानी और थोड़ा योग की जानकारी है, वो गरीब जनता का इलाज करेंगे. मेरे हिसाब से धार्मिक आस्थाएं अपनी जगह हैं. उनको विज्ञान से मिलाकर खिचड़ी तैयार नहीं करना चाहिए. आपको आने वाला भविष्य माफ नहीं करेगा, कि आपने विज्ञान को प्रूदषित किया है.

क्या कहना है डीन का: बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के डीन डॉ आर एस वर्मा कहते हैं कि एनएमसी जो पाठ्यक्रम में बदलाव करने जा रहा है, अभी तक उस बारे में मुझे कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली है. जहां तक विरोध की बात है और टीचर्स को एतराज है, तो उन्हें सार्वजनिक बयानबाजी से बचना चाहिए और अधिकारिक स्तर पर बात करनी चाहिए. हालांकि इस मामले में हकीकत ये है कि पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर भोपाल में बाकायदा वर्कशाप आयोजित हो चुकी है और बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज के प्रोफेसर प्रशिक्षण में शामिल हो चुके हैं जिन्हें इन बदलाव की जानकारी दी गयी है.

क्या कहना है राजनीतिक दलों का: भाजपा नेता श्याम तिवारी कहते हैं कि दुनिया भर के लिए हमारे देश ने ज्ञान का रास्ता दिखाया है. हमारे पूर्वजों ने अपने ज्ञान के आधार पर विज्ञान से बढ़कर ऐसे चमत्कारिक काम किए हैं, कि सारी दुनिया उनका लोहा मानती है. अगर किसी को एतराज है, तो वह हमारी संस्कृति का विरोधी है. हमारे महर्षियों और पूर्वजों ने ऐसे काम सदियों पहले कर दिखाए है, जिन पर दुनिया के वैज्ञानिक आज तक काम नहीं कर पाए हैं.

वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप सबलोक कहते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए सामान्य शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा और चिकित्सा विज्ञान में ऐसे कई बदलाव हो रहे हैं, जिनका उद्देश्य नई पीढ़ी को उत्कृष्ट और क्षमतावान बनाना नहीं बना रहे हैं, बल्कि कमजोर कर रहे हैं. आज हमारी शिक्षा पद्धति का पूरा दुनिया में लोहा माना जाता है, लेकिन इस तरह के बदलाव एक विशेष विचारधारा को बढावा देने के लिए हैं.

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