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जमीन अधिग्रहण के खिलाफ तेज होगा भूमि अधिकार आंदोलन, 10 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का आह्वान - तेज होगा भूमि अधिकार आंदोलन

CPIM की किसान इकाई ऑल इंडिया किसान सभा का दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ. सम्मेलन में तय किया गया कि संगठन 10 दिसंबर को 'भूमि अधिकार आंदोलन' के तहत विरोध प्रदर्शन करेगा.

bhoomi adhikar andolan
भूमि अधिकार आंदोलन
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Published : Sep 27, 2022, 8:50 PM IST

नई दिल्ली : देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर किए जा रहे जमीन अधिग्रहण के विरोध में वामपंथी दलों से समर्थित संगठन 'भूमि अधिकार आंदोलन' (bhoomi adhikar andolan) शुरू करने जा रहा है. 26 और 27 सितंबर को दिल्ली में संगठन का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें 20 राज्यों से लगभग 200 प्रतिनिधि पहुंचे. अधिवेशन के बाद नेताओं ने जानकारी दी है कि केंद्र के भूमि अधिग्रहण के असंवैधानिक तरीकों के खिआफ 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया है.

सुनिए किसान नेताओं ने क्या कहा

इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी विरोध जारी रखने के लिए जिला, तहसील और पंचायत स्तर पर इकाइयों को सक्रिय करने की योजना बनाई गई है. भूमि अधिकार आंदोलन से 25 राज्यों के अन्य गैर सरकारी संगठन भी जुड़े हुए हैं. इनका दावा है कि देश के अलग अलग राज्यों में कुल 80 जगहों पर केंद्र ने बड़े स्तर पर जमीन अधिग्रहण की योजना बना रखी है. इसमें से कई जगह इस पर काम भी शुरू कर दिया गया है.

संगठन के मुताबिक ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ के बस्तर का है जहां नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा 1980 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है. यहां पर 24000 करोड़ के निवेश से स्टील प्लांट लगाने की योजना है लेकिन स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि चेत्र में रह रहे आदिवासी समुदाय को इसके लिए भरोसे में नहीं लिया गया. इसके अलावा जमीन को अधिग्रहित करने से पहले ग्रामसभा की मंजूरी भी कथित तौर पर नहीं ली गई.

मीडिया से बातचीत में CPIM की किसान इकाई ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक धावले ने कहा कि आज़ादी के बाद पहली बार एक ऐसी सरकार आई है जो कॉर्पोरेट की मदद करने के लिए आम जनता के खिलाफ काम कर रही है. कई पुराने कानून बदले जा रहे हैं. इसी क्रम में देश का भूमि कानून, वन संरक्षण कानून और कुछ अन्य कानून भी है जिसमें बदलाव कर सरकार लोगों से सीधे सीधे जमीन लेकर बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथ में देना चाहती है. जिन क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण की योजना है वह ज्यादातर आदिवासी और जनजातीय लोगों का क्षेत्र है. जंगलों को भी प्राइवेट कंपनियों के हाथ में देने की योजना है. छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, असम इत्यादि जैसे राज्यों में जगह-जगह भूमि अधिग्रहण का विरोध भी होता रहा है. उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शन के बाद 30 जनवरी को भी दिल्ली समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आवाह्न किया गया है.

भूमि अधिकार आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने बताया कि इसकी शुरुआत सबसे पहले 2014 में हुई थी जब मोदी सरकार ने अध्यादेश के जरिये भूमि सुधार कानून में बदलाव का प्रयास किया था. जबरदस्त विरोध के कारण तब केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा था और वह 2013 के कानून में बदलाव नहीं कर सके थे. संगठन का उद्देश्य मूल रूप से जल जंगल और जमीन का संरक्षण है.

पढ़ें- किसान आत्महत्याएं चिंता का विषय, सरकार नहीं दे रही ध्यान : AIKS

नई दिल्ली : देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर किए जा रहे जमीन अधिग्रहण के विरोध में वामपंथी दलों से समर्थित संगठन 'भूमि अधिकार आंदोलन' (bhoomi adhikar andolan) शुरू करने जा रहा है. 26 और 27 सितंबर को दिल्ली में संगठन का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें 20 राज्यों से लगभग 200 प्रतिनिधि पहुंचे. अधिवेशन के बाद नेताओं ने जानकारी दी है कि केंद्र के भूमि अधिग्रहण के असंवैधानिक तरीकों के खिआफ 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया है.

सुनिए किसान नेताओं ने क्या कहा

इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी विरोध जारी रखने के लिए जिला, तहसील और पंचायत स्तर पर इकाइयों को सक्रिय करने की योजना बनाई गई है. भूमि अधिकार आंदोलन से 25 राज्यों के अन्य गैर सरकारी संगठन भी जुड़े हुए हैं. इनका दावा है कि देश के अलग अलग राज्यों में कुल 80 जगहों पर केंद्र ने बड़े स्तर पर जमीन अधिग्रहण की योजना बना रखी है. इसमें से कई जगह इस पर काम भी शुरू कर दिया गया है.

संगठन के मुताबिक ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ के बस्तर का है जहां नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा 1980 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है. यहां पर 24000 करोड़ के निवेश से स्टील प्लांट लगाने की योजना है लेकिन स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि चेत्र में रह रहे आदिवासी समुदाय को इसके लिए भरोसे में नहीं लिया गया. इसके अलावा जमीन को अधिग्रहित करने से पहले ग्रामसभा की मंजूरी भी कथित तौर पर नहीं ली गई.

मीडिया से बातचीत में CPIM की किसान इकाई ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक धावले ने कहा कि आज़ादी के बाद पहली बार एक ऐसी सरकार आई है जो कॉर्पोरेट की मदद करने के लिए आम जनता के खिलाफ काम कर रही है. कई पुराने कानून बदले जा रहे हैं. इसी क्रम में देश का भूमि कानून, वन संरक्षण कानून और कुछ अन्य कानून भी है जिसमें बदलाव कर सरकार लोगों से सीधे सीधे जमीन लेकर बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथ में देना चाहती है. जिन क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण की योजना है वह ज्यादातर आदिवासी और जनजातीय लोगों का क्षेत्र है. जंगलों को भी प्राइवेट कंपनियों के हाथ में देने की योजना है. छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, असम इत्यादि जैसे राज्यों में जगह-जगह भूमि अधिग्रहण का विरोध भी होता रहा है. उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शन के बाद 30 जनवरी को भी दिल्ली समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आवाह्न किया गया है.

भूमि अधिकार आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने बताया कि इसकी शुरुआत सबसे पहले 2014 में हुई थी जब मोदी सरकार ने अध्यादेश के जरिये भूमि सुधार कानून में बदलाव का प्रयास किया था. जबरदस्त विरोध के कारण तब केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा था और वह 2013 के कानून में बदलाव नहीं कर सके थे. संगठन का उद्देश्य मूल रूप से जल जंगल और जमीन का संरक्षण है.

पढ़ें- किसान आत्महत्याएं चिंता का विषय, सरकार नहीं दे रही ध्यान : AIKS

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