नई दिल्ली : एनसीएटी की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन के दौरान डकैती और चोरी की घटनाओं में काफी गिरावट आई है. हालांकि, इसमें अधिकांश देशों में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) पर किए गए अध्ययन के अनुसार सख्त लॉकडाउन वाले देशों में चोरी आदि की घटनाओं में खासी कमी आई है.
हालांकि, भारत में पुलिस हिरासत में हुई मौत की संख्या में इजाफा हुआ है. 17 सितंबर 2020 को गृह मंत्रालय ने लोक सभा को सूचित किया कि 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 तक पुलिस हिरासत में 113 लोगों की मौत हुई. एनसीएटी ने पुलिस हिरासत में 111 लोगों की मौतें दर्ज की हैं. एनसीएटी के समन्वयक सुहास चकमा ने कहा कि 2020 में भारत में दुनिया में सबसे सख्त तालाबंदी की गई थी.
सभी राज्यों में हुई मौतें
गुजरात और उत्तर प्रदेश से हिरासत में सबसे ज्यादा 11 मौतें हुईं. वहीं मध्य प्रदेश में 10, पश्चिम बंगाल में नौ, तमिलनाडु में आठ, ओडिशा, पंजाब और राजस्थान में प्रत्येक छह, आंध्र प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में चार-चार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर और कर्नाटक में तीन, अरुणाचल प्रदेश, असम, उत्तराखंड में दो और बिहार, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मिजोरम, तेलंगाना व त्रिपुरा में एक-एक मौतें रिपोर्ट की गई हैं.
पुलिस हिरासत में प्रताड़ना
चकमा ने कहा कि पुलिस स्टेशन कथित यातना के कारण आत्महत्या के केंद्र बन रहे हैं. कथित पुलिस अत्याचार के कारण हर सप्ताह कम से कम एक व्यक्ति आत्महत्या करता है. पुलिस हिरासत में यातना के कारण 2020 में एनसीएटी ने आत्महत्या से 55 मौतें दर्ज की हैं. यानी पुलिस हिरासत में यातना के कारण प्रति सप्ताह एक से अधिक आत्महत्याएं हुईं. चकमा ने कहा कि उत्तर प्रदेश से नौ मामलों के साथ आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए. इसके बाद आंध्र प्रदेश के सात मामले और मध्य प्रदेश के चार मामले आए हैं.
वन विभाग भी मौतों का जिम्मेदार
एनसीएटी ने 25 मार्च से 31 मई 2020 तक कोविड-19 लॉकडाउन को लागू करने के दौरान पुलिस द्वारा यातना और पिटाई के परिणामस्वरूप 18 पीड़ितों की मौत को दर्ज किया है. पुलिस के अलावा वन विभाग के अधिकारी भी यातना के लिए जिम्मेदार थे. एनसीएटी ने 2020 में वन विभाग के अधिकारियों के हाथों कम से कम तीन मौतों का दस्तावेजीकरण किया है. इसमें 19 जुलाई 2020 को मध्य प्रदेश में मनिराम गोंड, 23 जुलाई 2020 को तमिलनाडु में 70 वर्षीय अनिकारई मुथु और 13 अक्टूबर 2020 को ओडिशा में बलभद्र बेहरा की मौत शामिल है. एनसीएटी ने 2020 में पुलिस हिरासत में दलित और आदिवासी लोगों की मौत सहित यातना के कई मामलों का दस्तावेजीकरण किया.
बच्चों व महिलाओं पर अत्याचार
दो नाबालिगों की हिरासत में मौत सहित महिला से सामूहिक बलात्कार जो कि पुलिस के पास पहुंची थी, की रिपोर्ट दर्ज की गई है. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के घोर उल्लंघन में बच्चों की अवैध हिरासत और यातना को दर्ज किया गया. जबकि एनसीएटी ने पुलिस हिरासत में यातना के कारण चार बच्चों की मौत का दस्तावेजीकरण किया. एनसीएटी ने किशोर घरों में कथित यातना के कारण नाबालिगों की मौत के दो मामलों का भी दस्तावेजीकरण किया है.
जेल में मौतों में हुई वृद्धि
2020 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने देशभर में न्यायिक हिरासत में 1,569 मौतें दर्ज की हैं. एनसीएटी ने यातना के परिणामस्वरूप जेल की हिरासत में कम से कम 18 मौतें दर्ज की हैं. कैदियों को समय पर और उचित चिकित्सा उपचार से कथित तौर पर इनकार करने और जेलों में आत्महत्या के 34 मामलों के कारण मृत्यु के 51 मामले दर्ज किए गए हैं. दिल्ली के साथ जेल की स्थिति अत्यधिक खराब बनी हुई है और क्षमता से अधिक कैदी रखे गए हैं. दिल्ली के बाद उत्तर प्रदेश (177.9%), उत्तराखंड (159%), छत्तीसगढ़ (153.3%), उत्तराखंड (150%), मेघालय (157.4%), मध्य प्रदेश (155.3) के साथ सबसे अधिक है. वहीं 31 दिसंबर 2019 को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार सिक्किम में (153.8%), महाराष्ट्र (152.7%) और छत्तीसगढ़ की जेलों में क्षमता से (150.1%) कैदी रखे गए हैं.
सशस्त बल भी नहीं रहे पीछे
सशस्त्र संघर्ष स्थितियों में भारतीय सेना और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) से युक्त सशस्त्र बल व्यक्तियों को हिरासत में ले सकते हैं और 2020 में सशस्त्र बलों के हाथों अत्याचार और यौन हिंसा की खबरें थीं. जम्मू-कश्मीर और नक्सलियों के सशस्त्र विरोध समूह, अत्याचार और अप्राकृतिक फांसी के कई मामलों के लिए भी जिम्मेदार थे. दलितों और आदिवासियों की हत्या, यातना और अपमानजनक उपचार सहित यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ा. हाथरस में सामूहिक बलात्कार का मामला 14 सितंबर 2020 का है. जिसमें उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गांव में 20 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया.
पुलिस तकनीकी प्रयोग में पीछे
एनसीएटी ने सर्वोच्च न्यायालय के दो महत्वपूर्ण निर्णयों का स्वागत किया. जिसमें तमिलनाडु के तुफान सिंह बनाम राज्य का निर्णय जिसने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत अधिकारियों ने एक बयान दिया जो सबूत के रूप में अस्वीकार्य है. प्रत्येक पुलिस स्टेशन में नाइट विजन कैमरों के साथ सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और केंद्रीय जांच एजेंसियों की पूछताछ सुविधाएं जैसे दोनों निर्णय अत्याचार को काफी हद तक कम कर सकते हैं.
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हालांकि, जिस तरह से भारत और राज्य सरकारें सीसीटीवी कैमरे को स्थापित करने से अपने पैर खींच रही हैं, उससे पता चलता है कि यातना वास्तव में आपराधिक जांच और न्याय के प्रशासन का एक अभिन्न अंग है. चकमा ने दोहराया कि यातनाओं को कम करने के लिए कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई.