अहमदाबाद: गुजरात में गोधरा कांड के बाद घटी नरोदा गाम हिंसा की घटना के सभी 67 आरोपियों को बरी करने वाली विशेष अदालत ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच की आलोचना की और कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान विरोधाभासों से भरे हैं और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता. गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाये जाने की घटना के विरोध में दक्षिणपंथी संगठनों ने अगले दिन बंद का आह्वान दिया था और इसी दिन अहमदाबाद जिले के नरोदा गाम इलाके में 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था.
विशेष न्यायाधीश एस. के. बख्शी की अदालत ने 20 अप्रैल को सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया जिनमें प्रदेश की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, विश्व हिंदू परिषद के पूर्व नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं. अदालत के आदेश की एक प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गयी. अदालत ने कहा कि जब मामले की जांच एसआईटी को सौंपी गयी तो इसके जांच अधिकारी की जिम्मेदारी विशेष हो गयी और जांच वैसी ही अपेक्षित थी.
उसने कहा कि 28 फरवरी, 2002 की घटना के सिलसिले में साक्ष्य किसी भी तरह इस ओर इशारा नहीं करते कि किसी आरोपी ने आपराधिक षड्यंत्र के लिए समान मंशा और मकसद से कोई गैरकानूनी समूह बनाया. उसने कहा कि घटना के साढ़े छह साल बाद गवाहों ने आपराधिक साजिश का दावा किया था और एसआईटी ने उनके बयानों को सत्यापित करने की जहमत नहीं उठाई, जो 2008 से पहले गुजरात पुलिस अधिकारियों को दिए गए बयानों के 'विरोधाभासी' थे.
एसआईटी ने 2008 में पुलिस से मामले में जांच अपने हाथ में ली थी. अदालत ने आगे कहा कि इलाके में भीड़ के हमले में अल्पसंख्यक समुदाय का जान-माल का नुकसान हुआ था, लेकिन अभियोजन पक्ष अपने दावे के बावजूद यह स्थापित नहीं कर पाया कि आरोपी इसे अंजाम देने के लिए गैरकानूनी तरके से एकत्र हुए, आपराधिक साजिश रची और यह किया.
पीटीआई-भाषा