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देश की सुरक्षा और अखंडता सर्वोपरि, ITBP की अग्रिम चौकी के लिए भूमि अधिग्रहण सही: हाईकोर्ट

अगस्त 2015 को राज्य सरकार (Government Of Uttarakhand) ने मिलम गांव तहसील मुनस्यारी की 2.4980 हेक्टेयर भूमि आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की अग्रिम चौकी मुख्यालय बनाने के लिये अधिग्रहित की और इस भूमि का ग्रामीणों को मुआवजा भी दे दिया. लेकिन गांव के हीरा सिंह पांगती सहित कई अन्य ने सरकार की इस अधिसूचना को हाईकोर्ट (High Court Of Uttarakhand) में चुनौती दी थी.

High Court Of Uttarakhand
उत्तराखंड हाईकोर्ट
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Published : Mar 5, 2022, 6:30 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (High Court Of Uttarakhand) ने मिलम जौहार के ग्रामीणों की करीब ढाई हेक्टेयर भूमि को आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की अग्रिम चौकी के निर्माण के लिए सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया है. साथ ही कोर्ट ने अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिका को भी खारिज कर दिया है. अपने आदेश में कोर्ट ने वेदों में लिखे कई बातों का भी जिक्र किया है. जिनमें व्यक्ति, जाति, समाज के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को श्रेष्ठ माना गया है.
बता दें कि 1 अगस्त 2015 को राज्य सरकार ने मिलम गांव तहसील मुनस्यारी की 2.4980 हेक्टेयर भूमि आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की अग्रिम चौकी मुख्यालय बनाने के लिये अधिग्रहित की और इस भूमि का ग्रामीणों को मुआवजा भी दे दिया. लेकिन गांव के हीरा सिंह पांगती सहित कई अन्य ने सरकार की इस अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसमें कहा गया था कि वे लोग 1880 से इस गांव में रहते हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वे भोटिया जनजाति में सूचीबद्ध हैं. जिन्हें सरकार ने विशेष अधिकार दिए हैं.
पढ़ें: भारत-चीन सीमा पर माइनस 40 डिग्री में ड्रैगन से मुकाबले को तैयार हिमवीर

साथ ही सरकार द्वारा उनकी जमीन अधिग्रहित करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है, जबकि सरकार की ओर से बताया गया कि मिलम गांव वास्तविक नियंत्रण रेखा से 20-25 किमी की दूरी पर है. जो चीनी सेना के फायरिंग रेंज में है और मिलम गांव सड़क मार्ग से जुड़ा अंतिम गांव है. जहां पर सेना अथवा अर्धसैनिक बलों की चौकी होना आवश्यक है, ताकि जरूरत समय वहां तक युद्ध सामग्री पहुंचाई जा सके. वहीं, अंतराष्ट्रीय सीमा से सटे दुर्गम क्षेत्र पर्याप्त बुनियादी ढांचे के साथ सुरक्षा प्रदान करना सार्वजनिक उद्देश्य के दायरे में होगा. यह अधिसूचना देश हित में है और राष्ट्र हित के सामने जाति, उपजाति, आरक्षित जाति, जनजाति की धारणा व्यक्तिगत हित की है.

इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट ने 5 अक्टूबर 2021 को पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था. जिस पर 4 मार्च 2022 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया. साथ ही सामरिक दृष्टि से अपने इस महत्वपूर्ण आदेश में हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने वेदों के अलावा संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए राष्ट्र की सुरक्षा व अखंडता के लिये इस अधिसूचना को सही ठहराया और मिलम के ग्रामीणों द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (High Court Of Uttarakhand) ने मिलम जौहार के ग्रामीणों की करीब ढाई हेक्टेयर भूमि को आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की अग्रिम चौकी के निर्माण के लिए सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया है. साथ ही कोर्ट ने अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिका को भी खारिज कर दिया है. अपने आदेश में कोर्ट ने वेदों में लिखे कई बातों का भी जिक्र किया है. जिनमें व्यक्ति, जाति, समाज के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को श्रेष्ठ माना गया है.
बता दें कि 1 अगस्त 2015 को राज्य सरकार ने मिलम गांव तहसील मुनस्यारी की 2.4980 हेक्टेयर भूमि आईटीबीपी (Indo-Tibetan Border Police) की अग्रिम चौकी मुख्यालय बनाने के लिये अधिग्रहित की और इस भूमि का ग्रामीणों को मुआवजा भी दे दिया. लेकिन गांव के हीरा सिंह पांगती सहित कई अन्य ने सरकार की इस अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जिसमें कहा गया था कि वे लोग 1880 से इस गांव में रहते हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वे भोटिया जनजाति में सूचीबद्ध हैं. जिन्हें सरकार ने विशेष अधिकार दिए हैं.
पढ़ें: भारत-चीन सीमा पर माइनस 40 डिग्री में ड्रैगन से मुकाबले को तैयार हिमवीर

साथ ही सरकार द्वारा उनकी जमीन अधिग्रहित करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है, जबकि सरकार की ओर से बताया गया कि मिलम गांव वास्तविक नियंत्रण रेखा से 20-25 किमी की दूरी पर है. जो चीनी सेना के फायरिंग रेंज में है और मिलम गांव सड़क मार्ग से जुड़ा अंतिम गांव है. जहां पर सेना अथवा अर्धसैनिक बलों की चौकी होना आवश्यक है, ताकि जरूरत समय वहां तक युद्ध सामग्री पहुंचाई जा सके. वहीं, अंतराष्ट्रीय सीमा से सटे दुर्गम क्षेत्र पर्याप्त बुनियादी ढांचे के साथ सुरक्षा प्रदान करना सार्वजनिक उद्देश्य के दायरे में होगा. यह अधिसूचना देश हित में है और राष्ट्र हित के सामने जाति, उपजाति, आरक्षित जाति, जनजाति की धारणा व्यक्तिगत हित की है.

इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट ने 5 अक्टूबर 2021 को पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था. जिस पर 4 मार्च 2022 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया. साथ ही सामरिक दृष्टि से अपने इस महत्वपूर्ण आदेश में हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने वेदों के अलावा संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए राष्ट्र की सुरक्षा व अखंडता के लिये इस अधिसूचना को सही ठहराया और मिलम के ग्रामीणों द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी.

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