मुंबई : भारतीय कानून व्यवस्था की फैसला सुनाने में लगने वाले लंबे समय को लेकर आलोचना का शिकार होती रही है. इसके बावजूद कुछ मामले ऐसी टीस बन जाते हैं, जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता. खास तौर से जब कोर्ट अपने फैसले में कहे कि अभियोजन पक्ष दोष सिद्ध नहीं कर सका और आरोपी बरी किया जाता है. महाराष्ट्र के एक शख्स ऐसे हैं, जिन्होंने खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए आधी से ज्यादा उम्र अदालतों के चक्कर काटने में बीता दी. 35 साल तक सुनवाई चली. बाद में बंबई हाई कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दे दिया.
यह मामला महाराष्ट्र का है . वेस्टर्न कोल लिमिटेड के पूर्व मुख्य प्रबंध निदेशक रामधिराज राय पर 35 साल पहले भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. वकोली (WECOLI) के पूर्व मुख्य प्रबंध निदेशक और ठेकेदार कंपनी के मालिक रामधिराज राय पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था. उसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई सालों तक चलती रही. दरअसल, 1987 में कामठी क्षेत्र में 25 बिस्तरों वाले अस्पताल के निर्माण के लिए WECOLI द्वारा एक निविदा प्रक्रिया शुरू की गई थी. ठेका एक निजी कंपनी को मिला, लेकिन तभी अचानक ठेकेदार बदल गया. ठेका इंडस इंजीनियरिंग कंपनी को दिया गया था. भ्रष्टाचार के इस मामले में वकोली के तत्कालीन मुख्य वित्त एवं लेखा अधिकारी डी जनार्दन राव ने गवाही दी थी. तत्कालीन प्रबंध निदेशक रामधिराज राय का दावा था कि जनार्दन राव ने इंडस इंजीनियरिंग कंपनी पर ठेका देने के लिए दबाव डाला था, इसलिए उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. 76 साल के रामधिराज राय की आधी उम्र कोर्ट में पेश होते-होते समाप्त हो गई. हालांकि, अंत में दोष साबित नहीं होने पर कोर्ट ने 35 साल की अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें बरी कर दिया.
इंसाफ मिला या हुई नाइंसाफी
बहरहाल, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने भले ही 35 साल के बाद रामधिराज राय को बरी कर दिया, लेकिन रामधिराज के बीते हुए वर्षों की कोई भरपाई नहीं. वैसे भी कानून की दुनिया से जुड़ा सबसे आम कथन है कि जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डिनायड (justice delayed is justice denied), यानी देर से मिलने वाला इंसाफ नाइंसाफी के समान ही है.
लंबित मामलों पर चिंता जता चुके हैं न्यायविद
बता दें कि हाल ही में सेवानिवृत्त हुए जस्टिस आर सुभाष रेड्डी ने न्याय मिलने में होने वाली देरी पर चिंता जाहिर की थी. चार जनवरी को सेवानिवृत्त हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुभाष रेड्डी (sc justice subhash reddy retirement) ने वर्चुअल फेयरवेल के दौरान कहा था कि न्याय की दक्षता और गुणवत्ता में गिरावट आई है क्योंकि मूल्यों और नैतिकता में तेजी से बदलाव आया है. वह तेलंगाना से उच्चतम न्यायालय में नियुक्त होने वाले प्रथम न्यायाधीश थे.
न्यायाधीश जस्टिस सुभाष रेड्डी ने कहा था कि जरूरत को लालच से बदल दिया गया है. जस्टिस सुभाष के रिटायरमेंट के मौके पर चीफ जस्टिस एनवी रमना ने उनके योगदान की सराहना की. रमना ने कहा कि न्यायमूर्ति सुभाष ने लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा की. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति रेड्डी दो नवंबर 2018 में शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किये गए थे.
इसके अलावा अदालत में पेंडिंग केस को लेकर संसद के शीतकालीन सत्र में भी चिंता जताई गई थी. इस दौरान देशभर की अदालतों में लंबित मामलों का जिक्र कर केरल से निर्वाचित कांग्रेस सांसद के कोडिकुन्नील ने पूर्व चीफ जस्टिस मार्कंडेय काटजू के बयान का जिक्र किया था. उन्होंने कहा कि देशभर में चार करोड़ से अधिक केस लंबित हैं. कांग्रेस सांसद ने कहा कि 2019 में पूर्व चीफ जस्टिस काटजू ने कहा था कि अगर कोई नया मामला अदालतों के सामने नहीं भी आए, तो मामलों को निष्पादित करने में कम से कम 300 साल लगेंगे.
कानून बनाने में दूरदर्शिता को लेकर चीफ जस्टिस की चिंता
गत 26 दिसंबर को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमना ने कहा कि यह एक मिथक है कि 'न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे (Judges appointing judges propagated myth) हैं', क्योंकि न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है. उन्होंने कहा कि सरकारों को कानून बनाने की प्रक्रिया में कानून की वजह से उत्पन्न समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे नजरअंदाज किया जा रहा है. उन्होंने बिहार के मद्य निषेध कानून का भी उल्लेख किया.
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चीफ जस्टिस रमना ने एक अन्य मौके पर कहा था कि विवाद हल करने के लिए अदालतों में जाने के विकल्प का इस्तेमाल मध्यस्थता जैसी वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) व्यवस्थाओं को टटोलने के बाद ही अंतिम उपाय’के तौर पर किया जाना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि अलग-अलग क्षमताओं से 40 वर्षों से अधिक के अपने कानूनी पेशे के अनुभव के बाद मेरी सलाह है कि आपको अदालतों में जाने का विकल्प अंतिम उपाय के तौर पर रखना चाहिए. मध्यस्थता और सुलह के एडीआर विकल्पों पर गौर करने के बाद ही इस अंतिम उपाय का इस्तेमाल कीजिए.
20 दिसंबर को एक अन्य कार्यक्रम में सीजेआई जस्टिस रमना ने कहा था कि देश की न्यायिक प्रणाली के समक्ष तीन मुख्य मुद्दे हैं. उन्होंने कहा, बुनियादी ढांचे की कमी है, न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और योग्य वकीलों को वित्तीय सहायता दिए जाने की भी जरूरत है. उन्होंने कहा कि जब हम इन समस्याओं को दूर करेंगे केवल तभी हम लोगों तक पहुंच सकेंगे. उन्होंने कहा कि ऐसा होने के बाद ही 'न्याय तक पहुंच' (access to justice) सही मायनों में चरितार्थ होगा.
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उन्होंने कहा कि लाखों मामले लंबित होने का कारण न्यायाधीशों की कमी के अलावा, आवश्यक बुनियादी ढांचे का न होना भी है. सीजेआई रमना ने कहा कि आवश्यक आधारभूत संरचना प्रदान किये बिना जर्जर न्यायालय भवनों में बैठे न्यायाधीशों एवं वकीलों से न्याय की अपेक्षा करना उचित नहीं है.
नवंबर में भी एक कार्यक्रम के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि कानून में शिक्षित छात्र समाज के कमजोर और वंचित वर्गों की आवाज बनने के लिए सशक्त हैं. न्यायमूर्ति रमना ने कहा था, 'कानूनी सहायता आंदोलन में शामिल होने का आपका निर्णय एक महान करियर का मार्ग प्रशस्त करेगा. इससे आपको सहानुभूति, समझ और नि:स्वार्थ होने की भावना पैदा करने में मदद मिलेगी. याद रखें, अन्य व्यवसायों के विपरीत, कानूनी पेशा मुनाफे में वृद्धि का नहीं, बल्कि समाज की सेवा के लिए है.'
इसके अलावा न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर भी सीजेआई रमना मुखर रहे हैं. उन्होंने सितंबर, 2021 में कहा था, न्यायपालिका में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश ने इस मांग को अपना पूरा समर्थन जताते हुए कहा कि मैं नहीं चाहता कि आप रोएं, बल्कि आपको गुस्से के साथ चिल्लाना होगा और मांग करनी होगी कि हम 50 प्रतिशत आरक्षण चाहती हैं.
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सीजेआई जस्टिस रमना ने कहा कि यह हजारों सालों के दमन का विषय है और महिलाओं को आरक्षण का अधिकार है. न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि यह अधिकार का विषय है, दया का नहीं. उन्होंने कहा कि मैं देश के सभी विधि संस्थानों में महिलाओं के लिए एक निश्चित प्रतिशत आरक्षण की मांग की पुरजोर सिफारिश और समर्थन करता हूं ताकि वे न्यायपालिका में शामिल हो सकें.