गुवाहाटी : एनएससीएन (आईएम) और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के बीच चल रही शांति वार्ता में एक और रुकावट आ गई है. नगा संगठन एनएससीएन (आईएम) नगा ध्वज को सिर्फ सांकेतिक तौर पर सांस्कृतिक उद्देश्यों के उपयोग के लिए राजी नहीं है. वह इसे राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकृत करने की मांग कर रहे हैं, जिसे केंद्र सरकार कई बार नामंजूर कर चुकी है.
एनएससीएन (आईएम) की ओर से जारी बयान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नगा राष्ट्रीय ध्वज नागा राजनीतिक पहचान का प्रतीक है और इस पर कोई समझौता संभव नहीं है. 1997 के बाद से केंद्र सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच अब तक 80 दौर की बातचीत हो चुकी है. केंद्र सरकार ने अन्य नगा समूहों के साथ भी इस मुद्दे पर चर्चा की और फिर भी इसका स्थायी समाधान नहीं निकल सका है.
केंद्र सरकार ने 2015 में एनएससीएन गुट के साथ एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते को लेकर चर्चा तो खूब हुई मगर वार्ता आगे नहीं बढ़ सकी क्योंकि एनएससीएन-आईएम एक अलग नगा ध्वज और संविधान पर जोर दे रहा है. उनकी यह डिमांड नागा राजनीतिक मुद्दे को सुलझाने में सबसे बड़ी बाधा बन गई है. नागालैंड के पूर्व राज्यपाल और नगा शांति वार्ता के वार्ताकार आरएन रवि ने भी कई मौकों पर इन मांगों को खारिज कर दिया था.
एनएससीएन-आईएम के मुखपत्र नागालिम वॉयस के संपादकीय में इस मुद्दे पर लिखा गया है. संपादकीय में लिखा है कि जैसा कि भारत सरकार चाहती है, नगा राष्ट्रीय ध्वज को सांस्कृतिक ध्वज के रूप में स्वीकार करना मुश्किल है. नगा राष्ट्रीय ध्वज जो नागा राजनीतिक पहचान का प्रतीक है, जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता है. 3 अगस्त, 2015 को साइन किए गए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट का जिक्र करते हुए नागालिम वॉयस के मई अंक के संपादकीय में कहा गया है कि एनएससीएन देख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनएससीएन और नगा लोगों के साथ किए गए इस समझौते को कैसे संभालने जा रहे हैं, क्योंकि इसके लिए उन्होंने क्रेडिट लिया था.
जब हाई प्रोफाइल फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए, तो पीएम मोदी ने इसे ऐतिहासिक करार दिया था. पीएम ने घोषणा की थी कि उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले उग्रवाद समस्या को समाधान कर लिया है. हालांकि उनकी घोषणा से बड़े पैमाने पर दुनिया प्रभावित नहीं हुई थी. दुनिया इंतजार कर रही थी कि पीएम नरेंद्र मोदी नागा लोगों के साथ किए वादे को कैसे पूरा करते हैं. संपादकीय में कहा गया है कि संपादकीय में कहा गया है कि भारत सरकार के साथ एक बाद एक कई समझौते किए गए हैं मगर भारत सरकार की आदत विश्वास तोड़ने की रही है. यह एनएससीएन और नगाओं के लिए चिंता की बात है. नागालिम वॉयस ने कहा कि छह दशक से अधिक के खून, पसीने और आंसुओं के बाद नागा लोग ऐसी खोखली जमीन पर कैसे चल सकते हैं. धमकी और दबाव के बावजूद एनएससीएन कभी भी खुद को भगवान के सामने घृणित कार्य करने और नगा लोगों के लिए द्रोह करने जैसा काम नहीं करेगा.
आरएन रवि के तमिलनाडु ट्रांसफर के बाद अब इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व विशेष निदेशक ए.के. मिश्रा को नगा शांति वार्ता का जिम्मा सौंपा गया है. हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि मिश्रा नगा शांति वार्ता के मुद्दे को सुलझाने के लिए कैसे आगे बढ़ते है, जो पूर्वोत्तर में सबसे लंबे समय तक चलने वाली उग्रवाद समस्याओं में से एक है. पिछले महीने अप्रैल में एक विधानसभा सत्र के दौरान सभी विधायकों ने पार्टी लाइनों से हटकर केंद्र से इस मुद्दे को जल्द से जल्द निपटाने का आग्रह किया था क्योंकि अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. नागालैंड के मुख्यमंत्री नीफू रियो ने भी वार्ता करने वाले दोनों पक्षों से इस मुद्दे को सुलझाने का आग्रह किया था. उन्होंने कहा कि अगर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है, तो नगा राजनीतिक मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए लोगों से एक नया जनादेश लेना चाहिए.
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