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कर्नाटक : मैसूर विश्वविद्यालय की शोध टीम ने तैयार की सस्ती कोविड टेस्टिंग किट

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Published : Jun 8, 2021, 2:41 PM IST

मैसूर विश्वविद्यालय ने हैदराबाद स्थित लोरवेन बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से संयुक्त रूप से एक सेल्फ कोविड डिटेक्शन किट विकसित की है.

Mysore University
मैसूर विश्वविद्यालय

मैसूर : मैसूर विश्वविद्यालय (University of Mysore) ने हैदराबाद स्थित लोरवेन बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड (Lorven Biologics Private Limited) के सहयोग से संयुक्त रूप से एक सेल्फ कोविड डिटेक्शन किट विकसित की है.

मैसूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सदस्य के.एस. रंगप्पा (K.S. Rangappa), जो कि शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि नई कोविड डिटेक्शन किट की सटीकता दर 90 प्रतिशत से अधिक है.

आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए ICMR को भेजी नई किट

विश्वविद्यालय के कुलपति जी हेमंत कुमार और रंगप्पा ने संयुक्त रूप से विश्वविद्यालय परिसर के विज्ञान भवन में एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की. किट को एक शोध दल ने तैयार किया, जिसमें मैसूर विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ स्टडीज इन मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Department of Studies in Molecular Biology, University of Mysore) के कोऑर्डिनेटर एस चंद्र नायक और असिसटेंट प्रोफेसर सी.डी. मोहन शामिल हैं.

रंगप्पा ने कहा कि किट सस्ती कीमत पर उपलब्ध होने की उम्मीद है, क्योंकि इसे राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालय ने तैयार किया है. उन्होंने कहा कि शोध टीम Indian Council of Medical Research (ICMR) से आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए नई किट भेज रहा है.

बारकोड करना होगा स्कैन

शोध दल ने एक प्रेस रिलीज में बताया कि किट की अनूठी विशेषता यह है कि एक बारकोड पट्टी एक एप से जुड़ी होती है. जैसे ही बारकोड स्कैन किया जाता है, रोगी की स्वास्थ्य स्थिति (चाहे परीक्षण सकारात्मक या नकारात्मक) सर्वर में अपडेट हो जाती है, जिससे गवर्निंग एजेंसियां तुरंत निगरानी करने में सक्षम होती हैं. किट के विकास में आणविक जीव विज्ञान, नैनो तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में हालिया तकनीकों का उपयोग किया गया है.

रिलीज में आगे कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जिसको कोविड के लक्षण होने का संदेह हैं वह शरीर के तरल पदार्थ यानी की थूक, नाक स्राव और लार में इस किट का उपयोग कर अपने वायरस संक्रमित होने या ना होने की सच्चाई का पता लगा सकता है.

10 मिनट में मिलेगी जानकारी

असिसटेंट प्रोफेसर सी.डी. मोहन ने कहा कि किट का इस्तेमाल घरों में भी किया जा सकता है. यह पता लगाने में 10 मिनट से भी कम समय लगता है कि व्यक्ति संक्रमित है या नहीं.

शोध दल ने कहा कि मौजूदा दूसरी लहर के दौरान, आरटी-पीसीआर परीक्षणों में कुछ कोविड रोगियों में संक्रमण का पता नहीं लगाया जा सका. इसलिए, एक ऐसी किट तैयार करने की आवश्यकता थी, जो वायरस के सभी म्यूटेंट वेरिएंट का पता लगा सके.

रंगप्पा ने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि किट बाद की लहरों के मामले में वायरस के म्यूटेंट का पता लगाने में सक्षम होगी.

पढ़ें : काेराेना से जुड़ी सरकारी आंकड़ाें पर प्रियंका ने पीएम माेदी से पूछा 'इतना फर्क क्यों'

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि हैदराबाद के लोरवेन बायोलॉजिक्स (Lorven Biologics Private Limited) के निदेशक वेंकटरमण (Venkataramana) ने आवश्यक वैज्ञानिक और लॉजिस्टिक सहायता (logistic support) प्रदान करके किट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

मैसूर : मैसूर विश्वविद्यालय (University of Mysore) ने हैदराबाद स्थित लोरवेन बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड (Lorven Biologics Private Limited) के सहयोग से संयुक्त रूप से एक सेल्फ कोविड डिटेक्शन किट विकसित की है.

मैसूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सदस्य के.एस. रंगप्पा (K.S. Rangappa), जो कि शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि नई कोविड डिटेक्शन किट की सटीकता दर 90 प्रतिशत से अधिक है.

आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए ICMR को भेजी नई किट

विश्वविद्यालय के कुलपति जी हेमंत कुमार और रंगप्पा ने संयुक्त रूप से विश्वविद्यालय परिसर के विज्ञान भवन में एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की. किट को एक शोध दल ने तैयार किया, जिसमें मैसूर विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ स्टडीज इन मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Department of Studies in Molecular Biology, University of Mysore) के कोऑर्डिनेटर एस चंद्र नायक और असिसटेंट प्रोफेसर सी.डी. मोहन शामिल हैं.

रंगप्पा ने कहा कि किट सस्ती कीमत पर उपलब्ध होने की उम्मीद है, क्योंकि इसे राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालय ने तैयार किया है. उन्होंने कहा कि शोध टीम Indian Council of Medical Research (ICMR) से आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए नई किट भेज रहा है.

बारकोड करना होगा स्कैन

शोध दल ने एक प्रेस रिलीज में बताया कि किट की अनूठी विशेषता यह है कि एक बारकोड पट्टी एक एप से जुड़ी होती है. जैसे ही बारकोड स्कैन किया जाता है, रोगी की स्वास्थ्य स्थिति (चाहे परीक्षण सकारात्मक या नकारात्मक) सर्वर में अपडेट हो जाती है, जिससे गवर्निंग एजेंसियां तुरंत निगरानी करने में सक्षम होती हैं. किट के विकास में आणविक जीव विज्ञान, नैनो तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में हालिया तकनीकों का उपयोग किया गया है.

रिलीज में आगे कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जिसको कोविड के लक्षण होने का संदेह हैं वह शरीर के तरल पदार्थ यानी की थूक, नाक स्राव और लार में इस किट का उपयोग कर अपने वायरस संक्रमित होने या ना होने की सच्चाई का पता लगा सकता है.

10 मिनट में मिलेगी जानकारी

असिसटेंट प्रोफेसर सी.डी. मोहन ने कहा कि किट का इस्तेमाल घरों में भी किया जा सकता है. यह पता लगाने में 10 मिनट से भी कम समय लगता है कि व्यक्ति संक्रमित है या नहीं.

शोध दल ने कहा कि मौजूदा दूसरी लहर के दौरान, आरटी-पीसीआर परीक्षणों में कुछ कोविड रोगियों में संक्रमण का पता नहीं लगाया जा सका. इसलिए, एक ऐसी किट तैयार करने की आवश्यकता थी, जो वायरस के सभी म्यूटेंट वेरिएंट का पता लगा सके.

रंगप्पा ने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि किट बाद की लहरों के मामले में वायरस के म्यूटेंट का पता लगाने में सक्षम होगी.

पढ़ें : काेराेना से जुड़ी सरकारी आंकड़ाें पर प्रियंका ने पीएम माेदी से पूछा 'इतना फर्क क्यों'

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि हैदराबाद के लोरवेन बायोलॉजिक्स (Lorven Biologics Private Limited) के निदेशक वेंकटरमण (Venkataramana) ने आवश्यक वैज्ञानिक और लॉजिस्टिक सहायता (logistic support) प्रदान करके किट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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