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म्यांमार की सेना को लगा बड़ा झटका, लोकल रेजिस्टेंस फोर्सेस ने बोला धावा, भारत की चुनौती बढ़ी

भारत के पड़ोसी राज्य म्यांमार में फिर से उथल-पुथल मची हुई है. इस बार लोकल रेजिस्टेंस फोर्सेस ने सत्ताधारी जुंटा सैनिकों को कड़ी टक्कर दी है. सेना के कई संस्थानों पर रेजिस्टेंस फोर्सेस ने कब्जा कर लिया है. आगे क्या होगा, यह कहना मुश्किल है. भारत को ऐसे समय में क्या करना चाहिए, पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइंया की एक रिपोर्ट.

Myanmar
म्यांमार सत्ता संघर्ष
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 14, 2023, 2:19 PM IST

Updated : Nov 14, 2023, 5:16 PM IST

नई दिल्ली : म्यांमार की रेजिस्टेंस फोर्सेस ने जुंटा सैनिकों पर घातक धावा बोला है. उन्होंने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बेस पर भी कब्जा जमा लिया. प्रमुख सैन्य संस्थानों को अपने अधीन कर लिया. ऐसा लगता है कि म्यांमार में सत्ता संघर्ष और गहरा सकता है और संभवतः प्रजातंत्र के समर्थकों को उम्मीद की नई किरण दिख रही है.

एक दिन पहले सोमवार को चिन नेशनल आर्मी ने भारत की सीमा से सटे इलाके व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण रेह खॉ दा (फालम टाउनशिप) को जुंटा के हाथों से छीन लिया. चिन स्टेट पश्चिमी म्यांमार का इलाका है. इसके पूर्व में सैगॉंग डिविजन और मैगवे डिविजन है, जबकि दक्षिण में रखाइन प्रांत है. इसके पश्चिम में बांग्लादेश का चटगांव डिविजन और मिजोरम है, जबकि उत्तर में मणिपुर है.

रेजिस्टेंस फोर्सेस ने एक महीने के भीतर दोनों सीमाओं के महत्वपूर्ण जगहों को अपने अधीन कर लिया है. थ्री ब्रदरहुड अलायंस के ऑपरेशन 1027 के बाद जुंटा के लिए यह सबसे बड़ा झटका है. इस अलायंस में म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस, तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी और अराकान आर्मी शामिल है. इन्होंने चीन से सटे शान प्रांत के कई शहरों पर कब्जा जमा लिया है.

'द इरावदी' मीडिया के मुताबिक अपर सैगॉंग क्षेत्र पर काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी, एए और पीडीएफ रेजिस्टेंस फोर्सेस ने छह नवंबर को कब्जा कर लिया. उनके समर्थन में कारेनी रेजिस्टेंस फोर्सेस ने ऑपरेशन 1107 चलाया और जुंटा के काया स्टेट लोइकॉ, मेसे और शान के मोएबी शहर को अपने अधीन कर लिया. पिछले सप्ताह भारतीय सीमा से सटे खंपत शहर (तमू टाउनशिप) पर चिन नेशलनाइट्स डिफेंस फोर्स, केआईए और पीडीएफ ने मिलकर कब्जा कर लिया. तमू मणिपुर के मोरेह शहर के ठीक सामने है.

क्या है थ्री ब्रदरहुड अलायंस - इसमें एए, एमएनडीएए और टीएनएलए तीन भागीदार हैं. इसका गठन 2019 में किया गया था. हालांकि, इसकी चर्चा इस साल हो रही है, क्योंकि इस साल इन्होंने कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. म्यांमार में 2021 में जुंटा ने प्रजातांत्रिक रूप से चुनी गई राष्ट्रपति आंग सांग सू की सत्ता पलट दी थी. उस समय यह अलांयस मुखर होकर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सका. इसके बाद म्यांमार के सिविल वॉर में इस अलायंस ने राखिने और उत्तरी शान प्रांत में अपनी ताकत का परिचय दिया.

एए मुख्य रूप से रखाइन प्रांत में सक्रिय है. यह एक एथनिक आर्म्ड संगठन (जातीय सशस्त्र संगठन) है. 10 अप्रैल 2009 को इसका गठन किया गया था. इस संगठन का राजनीतिक प्रतिनिधित्व यूनाइटेट लीग ऑफ अराकान करता है. एमएनडीएए कोकांग क्षेत्र में सक्रिय है. यह 1989 से ही अस्तित्व में है. उसी साल इसने उस समय की बर्मा सरकार के साथ सीजफायर एग्रीमेंट में भाग लिया था. उसके बाद अगले 20 सालों तक यह उस समझौते से बंधा रहा. टीएनएलए पलौंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट का आर्म्ड विंग है. यह ड्रग व्यापार और हेरोइन और गांजा की खेती का विरोध करता रहा है. यह उस खेत को भी तबाह कर देता है, जहां पर इसे उपजाया जाता है. संगठन दावा करता है कि वह हफीम की खेती करने वालों को गिरफ्तार भी करता है.

ऑपरेशन 1027 - म्यांमार के उत्तरी शान में रेजिस्टेंस फोर्सेस ने मिलकर जुंटा पर हमला बोला. म्यांमार की सेना, पुलिस और उनके समर्थक संस्थानों पर हमला किया. कुटकाई, क्यौक्मे, म्यूज, नम्हकम, नवांघकिओ, लैशियो, और चिनश्वेहौ स्थित सैन्य संस्थानों को अपने अधीन कर लिया. इसके बाद वे सैंगॉंग क्षेत्र की ओर बढ़े. यहां पर मोगोक, मांडले और हटिगयांग और कावलिन पर कब्जा कर लिया. छह नवंबर तक अलायंस ने आर्मी के 125 आउटपोस्ट को अपने अधीन कर लिया. बाद में पीडीएफ भी इनके मुहिम के साथ जुड़ गया.

27 अक्टूबर को थ्री ब्रदरहुड अलायंस ने ऑपरेशन 1027 की घोषणा की. उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य- नागरिकों की जिंदगी सुरक्षित करना, आत्मरक्षा के अधिकार को बहाल करना, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसल द्वारा जारी एयर स्ट्राइक और जमीन पर किए जा रहे हमले को नियंत्रित करना, निरकुंश सैन्य शासन को खत्म करना, ऑनलाइन गैंबलिंग फ्रॉड को रोकना है.

ऑपरेशन 1107 - सात नवंबर 2023 को कारेनी नेशनल पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट, कारेनी आर्मी और कारेनी नेशनलाइट्स डिफेंस फोर्स ने जुंटा के खिलाफ ऑपरेशन की शुरुआत की. यह ऑपरेशन 1027 के समर्थन में किया गया था.

केएनपीएलएफ वामपंथी विचारधारा का समर्थक है. यह काया प्रांत में सक्रिय है. चीन और थाइलैंड सीमा पर सक्रिय है. 2009 में यह सरकार की ओर सीमा रक्षक बनने को तैयार हो गया था. 13 जून 2023 को इसने कारेनी नेशनल लिबरेशन आर्मी, केए और केएनडीएफ का साथ देने का फैसला किया. यह नेशनल यूनिटी गवर्मेंट का सपोर्ट करता है. यह कमेटी रेप्रेजेंटिंग प्यांगडुगसु हलुटॉ (गवर्मेंट इन एक्साइल) का समर्थन करता है.

आठ नवंबर को म्यांमार के राष्ट्रपति मायिंट स्वी ने नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी काउंसल की बैठक में देश के सामने आई नई चुनौतियों को लेकर चेतावनी दी. उन्होंने ऑपरेशन 1027 को देश के लिए खतरा बताया. यहां आपको बता दें कि राष्ट्रपति खुद जुंटा द्वारा नियुक्त किए गए हैं. उन्होंने कहा कि सीमाई इलाकों पर सुरक्षा का खतरा बढ़ गया है, जिसकी वजह से देश का विभाजन हो सकता है. इसलिए आम लोगों से अपील की जाती है कि वे सेना का समर्थन करें.

यह सच है कि अमेरिका और यूरोप जुंटा शासन के खिलाफ हैं, लेकिन रूस और चीन खुलकर इनके साथ हैं. भारत रचनात्मक एनगेजमेंट चाहता है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ - एशियन कॉन्फ्लूयेंस थिंक टैंक के के. योम के अनुसार अगर म्यांमार के राष्ट्रपति की बात सच साबित हुई, तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी. उन्होंने कहा कि भारत की जो भी रणनीति और नीति बनती है, वह सीमा को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता है. भारत हमेशा से म्यांमार में प्रजातंत्र को पुनः स्थापित करने का पक्षधर रहा है और इसके लिए सबसे अच्छा तरीका निष्पक्ष चुनाव करवाना है

योम के अनुसार भारत चाहता है कि एक सेंट्रल ऑथरिटी का होना बहुत जरूरी है, ताकि वह देश को बांध कर रख सके. यह चाहता है कि सेना की निगरानी में पूरी प्रक्रिया पूरी हो ताकि हर राज्य अलग-अलग हिस्सों में विभाजित न हो. और अगर ऐसा हुआ, तो बहुत ही बुरा हगा. मीडिया रिपोर्ट बता रहा है कि सेना को फिर से सफलता मिल रही है. हाालंकि, अभी अंत बहुत ही अनिश्चित है.

ये भी पढे़ं- जुंटा ने सीमाई इलाकों में की कार्रवाई, 2000 से अधिक म्यांमार नागरिक भारत में हुए दाखिल

नई दिल्ली : म्यांमार की रेजिस्टेंस फोर्सेस ने जुंटा सैनिकों पर घातक धावा बोला है. उन्होंने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बेस पर भी कब्जा जमा लिया. प्रमुख सैन्य संस्थानों को अपने अधीन कर लिया. ऐसा लगता है कि म्यांमार में सत्ता संघर्ष और गहरा सकता है और संभवतः प्रजातंत्र के समर्थकों को उम्मीद की नई किरण दिख रही है.

एक दिन पहले सोमवार को चिन नेशनल आर्मी ने भारत की सीमा से सटे इलाके व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण रेह खॉ दा (फालम टाउनशिप) को जुंटा के हाथों से छीन लिया. चिन स्टेट पश्चिमी म्यांमार का इलाका है. इसके पूर्व में सैगॉंग डिविजन और मैगवे डिविजन है, जबकि दक्षिण में रखाइन प्रांत है. इसके पश्चिम में बांग्लादेश का चटगांव डिविजन और मिजोरम है, जबकि उत्तर में मणिपुर है.

रेजिस्टेंस फोर्सेस ने एक महीने के भीतर दोनों सीमाओं के महत्वपूर्ण जगहों को अपने अधीन कर लिया है. थ्री ब्रदरहुड अलायंस के ऑपरेशन 1027 के बाद जुंटा के लिए यह सबसे बड़ा झटका है. इस अलायंस में म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस, तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी और अराकान आर्मी शामिल है. इन्होंने चीन से सटे शान प्रांत के कई शहरों पर कब्जा जमा लिया है.

'द इरावदी' मीडिया के मुताबिक अपर सैगॉंग क्षेत्र पर काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी, एए और पीडीएफ रेजिस्टेंस फोर्सेस ने छह नवंबर को कब्जा कर लिया. उनके समर्थन में कारेनी रेजिस्टेंस फोर्सेस ने ऑपरेशन 1107 चलाया और जुंटा के काया स्टेट लोइकॉ, मेसे और शान के मोएबी शहर को अपने अधीन कर लिया. पिछले सप्ताह भारतीय सीमा से सटे खंपत शहर (तमू टाउनशिप) पर चिन नेशलनाइट्स डिफेंस फोर्स, केआईए और पीडीएफ ने मिलकर कब्जा कर लिया. तमू मणिपुर के मोरेह शहर के ठीक सामने है.

क्या है थ्री ब्रदरहुड अलायंस - इसमें एए, एमएनडीएए और टीएनएलए तीन भागीदार हैं. इसका गठन 2019 में किया गया था. हालांकि, इसकी चर्चा इस साल हो रही है, क्योंकि इस साल इन्होंने कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. म्यांमार में 2021 में जुंटा ने प्रजातांत्रिक रूप से चुनी गई राष्ट्रपति आंग सांग सू की सत्ता पलट दी थी. उस समय यह अलांयस मुखर होकर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सका. इसके बाद म्यांमार के सिविल वॉर में इस अलायंस ने राखिने और उत्तरी शान प्रांत में अपनी ताकत का परिचय दिया.

एए मुख्य रूप से रखाइन प्रांत में सक्रिय है. यह एक एथनिक आर्म्ड संगठन (जातीय सशस्त्र संगठन) है. 10 अप्रैल 2009 को इसका गठन किया गया था. इस संगठन का राजनीतिक प्रतिनिधित्व यूनाइटेट लीग ऑफ अराकान करता है. एमएनडीएए कोकांग क्षेत्र में सक्रिय है. यह 1989 से ही अस्तित्व में है. उसी साल इसने उस समय की बर्मा सरकार के साथ सीजफायर एग्रीमेंट में भाग लिया था. उसके बाद अगले 20 सालों तक यह उस समझौते से बंधा रहा. टीएनएलए पलौंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट का आर्म्ड विंग है. यह ड्रग व्यापार और हेरोइन और गांजा की खेती का विरोध करता रहा है. यह उस खेत को भी तबाह कर देता है, जहां पर इसे उपजाया जाता है. संगठन दावा करता है कि वह हफीम की खेती करने वालों को गिरफ्तार भी करता है.

ऑपरेशन 1027 - म्यांमार के उत्तरी शान में रेजिस्टेंस फोर्सेस ने मिलकर जुंटा पर हमला बोला. म्यांमार की सेना, पुलिस और उनके समर्थक संस्थानों पर हमला किया. कुटकाई, क्यौक्मे, म्यूज, नम्हकम, नवांघकिओ, लैशियो, और चिनश्वेहौ स्थित सैन्य संस्थानों को अपने अधीन कर लिया. इसके बाद वे सैंगॉंग क्षेत्र की ओर बढ़े. यहां पर मोगोक, मांडले और हटिगयांग और कावलिन पर कब्जा कर लिया. छह नवंबर तक अलायंस ने आर्मी के 125 आउटपोस्ट को अपने अधीन कर लिया. बाद में पीडीएफ भी इनके मुहिम के साथ जुड़ गया.

27 अक्टूबर को थ्री ब्रदरहुड अलायंस ने ऑपरेशन 1027 की घोषणा की. उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य- नागरिकों की जिंदगी सुरक्षित करना, आत्मरक्षा के अधिकार को बहाल करना, स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसल द्वारा जारी एयर स्ट्राइक और जमीन पर किए जा रहे हमले को नियंत्रित करना, निरकुंश सैन्य शासन को खत्म करना, ऑनलाइन गैंबलिंग फ्रॉड को रोकना है.

ऑपरेशन 1107 - सात नवंबर 2023 को कारेनी नेशनल पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट, कारेनी आर्मी और कारेनी नेशनलाइट्स डिफेंस फोर्स ने जुंटा के खिलाफ ऑपरेशन की शुरुआत की. यह ऑपरेशन 1027 के समर्थन में किया गया था.

केएनपीएलएफ वामपंथी विचारधारा का समर्थक है. यह काया प्रांत में सक्रिय है. चीन और थाइलैंड सीमा पर सक्रिय है. 2009 में यह सरकार की ओर सीमा रक्षक बनने को तैयार हो गया था. 13 जून 2023 को इसने कारेनी नेशनल लिबरेशन आर्मी, केए और केएनडीएफ का साथ देने का फैसला किया. यह नेशनल यूनिटी गवर्मेंट का सपोर्ट करता है. यह कमेटी रेप्रेजेंटिंग प्यांगडुगसु हलुटॉ (गवर्मेंट इन एक्साइल) का समर्थन करता है.

आठ नवंबर को म्यांमार के राष्ट्रपति मायिंट स्वी ने नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी काउंसल की बैठक में देश के सामने आई नई चुनौतियों को लेकर चेतावनी दी. उन्होंने ऑपरेशन 1027 को देश के लिए खतरा बताया. यहां आपको बता दें कि राष्ट्रपति खुद जुंटा द्वारा नियुक्त किए गए हैं. उन्होंने कहा कि सीमाई इलाकों पर सुरक्षा का खतरा बढ़ गया है, जिसकी वजह से देश का विभाजन हो सकता है. इसलिए आम लोगों से अपील की जाती है कि वे सेना का समर्थन करें.

यह सच है कि अमेरिका और यूरोप जुंटा शासन के खिलाफ हैं, लेकिन रूस और चीन खुलकर इनके साथ हैं. भारत रचनात्मक एनगेजमेंट चाहता है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ - एशियन कॉन्फ्लूयेंस थिंक टैंक के के. योम के अनुसार अगर म्यांमार के राष्ट्रपति की बात सच साबित हुई, तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी. उन्होंने कहा कि भारत की जो भी रणनीति और नीति बनती है, वह सीमा को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता है. भारत हमेशा से म्यांमार में प्रजातंत्र को पुनः स्थापित करने का पक्षधर रहा है और इसके लिए सबसे अच्छा तरीका निष्पक्ष चुनाव करवाना है

योम के अनुसार भारत चाहता है कि एक सेंट्रल ऑथरिटी का होना बहुत जरूरी है, ताकि वह देश को बांध कर रख सके. यह चाहता है कि सेना की निगरानी में पूरी प्रक्रिया पूरी हो ताकि हर राज्य अलग-अलग हिस्सों में विभाजित न हो. और अगर ऐसा हुआ, तो बहुत ही बुरा हगा. मीडिया रिपोर्ट बता रहा है कि सेना को फिर से सफलता मिल रही है. हाालंकि, अभी अंत बहुत ही अनिश्चित है.

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Last Updated : Nov 14, 2023, 5:16 PM IST
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