कोट्टायम: हर साल सबरीमाला में तीर्थयात्रा शुरू होने से कुछ दिन पहले से ही एरुमेली में मट्टानूर्ककारा लक्षमविदु कॉलोनी में चहल-पहल शुरू हो जाती है. लाल रंग में रंगे मुर्गियों के पंख, काले रंग में रंगे धागे और विशिष्ट रूप से नक्काशीदार लकड़ी के टुकड़े यहां की गलियों में बिकते नजर आते हैं.
बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों के कारण कॉलोनी सबरीमला से संबंधित सामग्री बनाने का एकमात्र केंद्र बन गया है. यहां मौसमी दुकानों के माध्यम से बेचे जाने वाले तीर, तलवार, गदा और काली डोरी जैसे अन्य सामानों का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा इस कॉलोनी से आता है, जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र है.
इस कॉलोनी में रहने वाले 78 वर्षीय कोया थेंगमुट्टिल को इस व्यवसाय में सबसे वरिष्ठ शिल्पकार माना जाता है. उनका कहना है कि वह लगभग पाँच दशकों से सबरीमला से संबंधित सामग्री बनाते हैं. पिछले दो साल विशेष रूप से निराशाजनक थे. हालांकि, इस साल अब तक का कारोबार असाधारण रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि जल्द ही हमारा सामान बिक जाएगा.
पिछले दो दशकों में कारोबार तेजी से बढ़ा. उनका कहना है कि इस अवधि के दौरान विशेष रूप से पड़ोसी राज्यों से एरुमेली आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी वृद्धि दर्ज की गई है. दो महीने तक चलने वाले मंडलम-मकरविलक्कू सीजन के दौरान यहां के घरों में बने सामान दुकानों को बेचे जाते हैं.
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बागान में काम करने वाले मजदूर हर साल तीर्थयात्रा के मौसम के दौरान सामग्री बनाने में जुट जाते हैं. इस दौरान भारी मात्रा में कॉलोनी में शारकोल, लकड़ी के तीर और तलवारें बनाई जाती हैं. यहां सभी परिवार, चाहे उनका धर्म या उम्र कुछ भी हो इस सीजन में चौबीसों घंटे सबरीमला से संबंधित सामग्री बनाने का काम करते हैं.