सागर। पोल्ट्री व्यवसाय दुनिया का ऐसा व्यावसाय है, जिसके कारण दुनिया भर में बडे़े पैमाने पर मुर्गी के पंख (Chicken Feather Waste) तैयार होते हैं. अब तक देखने में आया है कि मुर्गी के पंख (Chicken Feather Waste) को नष्ट करने के लिए रासायनिक प्रक्रियाएं अपनायी जाती हैं या फिर पानी में बहाकर और जलाकर नष्ट किया जाता है. ऐसे में बडे़ पैमाने पर वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण होता है. डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की होनहार रिसर्चर ईशा शर्मा ने बड़ा कमाल करके दिखाया है. उन्होंने पांच साल की मेहनत के बाद मुर्गी के पंख (Chicken Feather Waste) के अपघटन का ईकोफ्रेंडली तरीका खोजा है.
मुर्गी के पंख अपघटन: यूनिवर्सिटी की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की शोध छात्रा ईशा शर्मा ने ये कमाल विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नवीन कांगो के निर्देशन में किया है. खास बात ये है कि उनके द्वारा ईजाद तरीके से Chicken Feather Waste नष्ट होने के साथ सह उत्पाद (by-product) के रूप में प्रोटीन, पेप्टाइड और अमीनो एसिड का निर्माण करता है. उनके शोध को पूरे देश और दुनिया में सराहना मिली है. ईशा शर्मा को एसोसिएशन ऑफ माइक्रोबायोलॉजी ऑफ इंडिया (एएमआई) द्वारा उनके उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए बेस्ट ओरल प्रेजेंटेशन अवार्ड द्वारा सम्मानित किया गया है.
कितनी बड़ी समस्या है Chicken Feather Waste: वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो दुनिया भर के पोल्ट्री व्यवसाय से बडे़े पैमाने पर Chicken Feather Waste तैयार होता है. अलग-अलग अध्ययनों में इनकी अलग-अलग मात्रा बताई गयी है. कई अध्ययनों में सामने आया है कि दुनिया में हर साल पोल्ट्री व्यवसाय से 6 बिलियन टन Chicken Feather Waste तैयार होता है. विश्व स्तर पर इनके निस्तारण की बड़ी समस्या है. ज्यादातर इनके निस्तारण के लिए वैज्ञानिक तरीके नहीं आजमाए जाते हैं. Chicken Feather Waste को या तो खुले में फेंक दिया जाता है या फिर जलाकर और बहाकर इनको नष्ट किया जाता है. एक अध्ययन के अनुसार हर साल करीब 40 मिलियन टन Chicken Feather Waste तो जलाकर नष्ट किया जाता है. जो वातावरण में बडे़ पैमाने पर सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड उगलते हैं.
पांच साल की मेहनत के बाद खोजा ईकोफ्रेंडली तरीका: प्रदेश की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की शोध छात्रा ईशा शर्मा ने Chicken Feather Waste को अपघटित करने का तरीका खोजा है. खास बात ये है कि ये तरीका पूरी तरह से ईकोफ्रेंडली और मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी प्रोटीन, पेप्टाइड और अमीनो एसिड भी तैयार करता है. अपने शोध के बारे में चर्चा करते हुए ईशा शर्मा बताती है कि ''मेरा लक्ष्य था कि मुर्गी के पंख (Chicken Feather Waste) को अपघटित करने का ऐसा तरीका खोजा जाए. जिससे न तो किसी भी तरह का पर्यावरण का नुकसान हो और ना ही किसी तरह से मानव स्वास्थ्य पर नुकसान हो. इसके लिए मैंने वैक्टीरिया के जरिए मुर्गी के पंख अपघटित करने की तकनीक पर काम किया. कई स्टडीज में सामने आया है कि दुनिया में करीब 85 प्रतिशत कैरेटिन अपशिष्ट पदार्थ मुर्गी के पंख के रूप में उत्पादित हो रहा है.''
ऐसे खोजा ईको फ्रेंडली तरीका: ईशा शर्मा ने बताया ''कई अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में करीब हर साल करीब 10-11 मिलियन टन कैरिटिन पंख के रूप में तैयार हो रहा है. मेरे सुपरवाइजर प्रोफेसर नवीन कांगो के निर्देशन में हमारा लक्ष्य था कि कैसे इस Chicken Feather Waste को अपघटित करने का ईकोफ्रेंडली तरीका खोजा जाए. क्योंकि फिलहाल इसके अपघटन के लिए जो तकनीक अपनायी जा रही है, उनमें घातक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है. बड़े पैमाने पर इन्हें पानी में बहाकर और जलाकर नष्ट किया जा रहा है, जो जल और वायु प्रदूषण का काम कर रहा है.
यूनिवर्सटी की मिट्टी से खोजे वैक्टीरिया: अपने सुपरवाइजर के मार्गदर्शन में ईशा शर्मा ने तय किया कि किस तरह सूक्ष्मजीव (Microorganism) के जरिए कैसे मुर्गी के पंख के रूप में अपशिष्ट पदार्थ को नष्ट किया जाए. साथ ही ये ध्यान रखना था कि ये अपशिष्ट पदार्थ के साथ-साथ कई तरह के प्रोटीन, पेप्टाइड और एमीनोएसिड को स्त्रोत हैं. जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है. ईशा ने कहा "हमारी सोच ये थी कि अपशिष्ट पदार्थ के अपघटन के अलावा जो इनमें प्रोटीन और अन्य फायदेमंद पदार्थ का स्त्रोत हैं, वो नष्ट न हो." ईशा शर्मा बताती है कि ''इसके लिए हमनें अपने विभाग की मिट्टी से ही वैक्टीरिया आइसोलेट किए गए. जिनमें वेसिलस वेलेन्जिसिस (Bacillus velezensis) वैक्टीरिया को आइसोलेट कर जब मुर्गी के पंख के अपघटन की प्रक्रिया शुरू की गयी, तो देखा गया कि तीन ही दिन में वेसिलस वेलेन्जिसिस ने 99.1 प्रतिशत मुर्गी के पंख के अपशिष्ट को नष्ट कर दिया.''
पंखों के निस्तारण के साथ प्रोटीन के स्त्रोत की खोज: माइक्रोबाॅयलाॅजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नवीन कांगो कहते हैं कि ''दुनिया में पोल्ट्री एक बड़ा व्यवसाय है. जिसमें बडे़ पैमाने पर मुर्गी के पंख के रूप में अपशिष्ट पदार्थ तैयार होते हैं. इनके निस्तारण की समस्या वैश्विक समस्या है. इसके लिए हमने योजना बनायी कि ऐसे सूक्ष्म जीव खोजे जाएं, जो मुर्गी के पंख को ईको फ्रेंडली तरीके से नष्ट करें. इसके लिए ईशा ने पिछले पांच सालों में बहुत अच्छे सूक्ष्म जीव तैयार किए. जिन्हें सागर की मिट्टी से निकाले हैं. जिनमें एक नाम वेसिलस वेलेन्जिसिस और दूसरा आक्रोवेक्टम इंडिकम है. इसको हम माइक्रोबायलाजी में आइसोलेशन कहते हैं. इनको जमीन से निकालकर पंख के साथ रखा गया और देखा गया कि ये पंख को नष्ट करने की अभूतपूर्व क्षमता रखते हैं.''
तकनीक से बना सकते हैं पेप्टाइड व अमीनो एसिड: नवीन कांगो ने कहा कि ''वैसे तो जीवाणुओं में बहुत तरह की क्षमताएं होती है. लेकिन हमारा उद्देश्य है कि हम ऐसें जीवाणु खोजें, जो इकोफ्रेंडली तकनीक को विकसित करने में मदद करें. इससे एक तरफ पंख के निस्तारण की समस्या खत्म हो गयी है. दूसरी तरफ हम इससे ऐसा मावन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी उत्पाद बना सकते हैं, जिनको बनाकर बाजार में उत्पाद के रूप में बेंचा जा सकता है. इनके अपघटन से तैयार होने वाले प्रोटीन की आवश्यकता आज बहुत ज्यादा है. इस तकनीक के जरिए पेप्टाइड और अमीनो एसिड बना सकते हैं.''
एएमआई ने किया पुरस्कृत: इस रिसर्च के लिए ईशा शर्मा को एसोसिएशन ऑफ माइक्रोबायोलॉजी ऑफ इंडिया (एएमआई) ने बेस्ट ओरल प्रेजेंटेशन अवार्ड से सम्मानित किया है. ये सम्मान बुन्देलखंड विश्वविद्यालय झांसी में 1 से 3 दिसम्बर के दौरान आयोजित एएमआई की 64 वीं इंटरनेशनल सेमीनार में बैक्टीरिया के जरिए मुर्गी के पंखों के अपघटन और उपयोगी पदार्थ बनाने पर प्रस्तुत रिसर्च पेपर पर दिया गया है. ईशा पोल्ट्री फेदर्स के जैविक अपघटन पर पिछले पांच सालों से काम कर रही हैं. इस पुरस्कार के साथ उन्हें स्प्रिंगर नेचर इंडिया ने 200 यूरो राशि का गिफ्ट वाउचर भी प्रदान किया है.