जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट पेश की गयी. रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला संतानोत्पत्ति नहीं कर सकती है. मामले के अनुसार खंडवा निवासी महिला ने इस बारे में याचिका दायर करते हुए कहा था कि आपराधिक प्रकरण में न्यायालय ने उसके पति को कारावास की सजा से दंडित किया है. वर्तमान में उसका पति इंदौर जेल में कारावास की सजा काट रहा है. याचिका में कहा गया था कि वह मातृत्व सुख चाहती है.
सर्वोच्च न्यायालय का हवाला दिया : महिला ने याचिका में उसके पति को एक माह की अस्थाई जमानत प्रदान करने की मांग की. याचिकाकर्ता के तरफ से सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया कि संतानोत्पत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है. सजा से दंडित दोषी कैदी का विवाह याचिकाकर्ता महिला से हुआ है. शादी के बाद से उन्हें कोई परेशानी नहीं है. वंश के संरक्षण के उद्देश्य से संतान उत्पन्न करना धार्मिक दर्शन, भारतीय संस्कृति और विभिन्न माध्यम से मान्यता प्राप्त है.
रजोनिवृत्ति की उम्र पार कर चुकी महिला : याचिका में हवाला दिया गया कि कैदियों के वैवाहिक अधिकारों और इन्हें प्राप्त करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में दोनों को साथ में रहने के राहत प्रदान की है. याचिकाकर्ता भी प्रजनन का लाभ उठाना चाहती है, चाहे वह प्राकृतिक हो या कृत्रिम. सरकार की तरफ से दलील दी गई कि याचिकाकर्ता रजोनिवृत्ति की उम्र पार कर चुकी है. उसके प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से गर्भधारण की कोई संभावना नहीं है. भारत में 40 से 50 साल के बीच महिलाओं में मासिक धर्म आना बंद हो जाता है.
ALSO READ: |
अब अगली सुनवाई का इंतजार : इसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से हलफनामा प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि वह संतान पैदा करने में सक्षम है. याचिका की सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने मेडिकल कॉलेज की पांच सदस्यीय डॉक्टरों की टीम से याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच करवाने के आदेश दिए थे. डॉक्टर्स की टीम द्वारा की गयी जांच रिपोर्ट में बताया गया कि संतानोत्मत्ति के लिए महिला अयोग्य है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने मेडिकल रिपोर्ट पर पक्ष प्रस्तुत करने समय प्रदान करने का आग्रह किया. एकलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई 18 दिसम्बर को निर्धारित की है.