भोपाल। मध्यप्रदेश में एक के बाद एक पहले भोपाल और फिर रीवा में हुए सामूहिक आत्महत्या के मामलों के बाद आनंद मंत्रालय बना चुकी सरकार की नींट टूटी है. एमपी आत्महत्या के मामले में देश का दूसरे नंबर का राज्य है और बच्चों की खुदकुशी के मामले में देश में पहले नंबर पर. अब आत्महत्याओं को रोकने सरकार कमेटी बनाने जा रही है जो आत्महत्याओं को रोकने के लिए प्लान तैयार करेगी बच्चों की आत्महत्या कैसे रोकी जाए इससे आयोगों से सुझाव मांगे गए हैं. ऑनलाईन फ्राड किस तरह लोगों को मौत के कगार पर पहुंचाते हैं ये एंगल भी. पिछले एक साल में 55 शिकायतें आई हैं इसमें दो महिलाओं की केस स्टडी भी जो ऐसे लोन स्कैम से बचकर बाहर आईं.
एमपी राष्ट्रीय औसत से 6 फीसदी ज्यादा: मप्र में आत्महत्या के मामलों का औसत 17.8 फीसदी तक है तो वहीं देश का औसत 12 फीसदी है. एमपी के लिए ये चिंता की बात है कि ये राष्ट्रीय औसत से लगभग 6 फीसदी अधिक है, वहीं बीमारी या पारिवारिक कलह से मौत हों तो ये आंकड़े और भी परेशान करने वाले हैं. मप्र में बीमारी या फिर पारिवारिक कलह के लिए आत्महत्या की राह चुनने वालों की संख्या भी ज्यादा है.
मप्र में जितने भी आत्महत्या के मामले सामने आते हैं, उनमें से बीमारी या फिर पारिवारिक कलह से आत्महत्या करने वालों की संख्या करीब 21 फीसदी तक है. पंजाब इस मामले में देश में अव्वल है, जहां जितने भी आत्महत्या के मामले सामने आते हैं, उनमें से पारिवारिक कलह या बीमारी से तंग आकर आत्महत्या करने वालों की संख्या 44.8 फीसदी तक है.
विपक्ष का आरोप: पूर्व मंत्री पी सी शर्मा का आरोप हैं कि चाहे किसान हो, बच्चों की आत्महत्या का मामला हो, चाहे महिला अपराध, सभी में एमपी नंबर 1 है. पिछले 19 साल से बीजेपी सरकार सत्ता में है लेकिन शिवराज सरकार ने सिर्फ कागजों पर वाहवाही लूटने की कोशिश की है, कर्ज की वजह से किसान या आम आदमी आत्महत्या का रहा है.
आत्महत्या रोकने के लिए राज्यों को एडवाइजरी: आत्महत्या मृत्यु दर को 10 फीसदी से कम करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने आत्महत्या रोकथाम रणनीति और वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्युदर को 10 फीसदी से कम करने का टारगेट रखा है. इसके लिए केंद्र सरकार ने 21 नवंबर 2022 को राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति लागू की है.
एमपी में समन्वय समिति का गठन: मप्र ने केंद्र की गतिविधियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मप्र राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण मप्र के तहत मप्र आत्महत्या रोकथाम रणनीति तैयार करने की कवायद शुरू की है. इस कड़ी में विभिन्न विभागों के समन्वय एवं राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति का राज्य स्तर पर तेजी से क्रियान्वयन करने के लिए राज्य स्तरीय समन्वय समिति गठित की है. कमेटी में राज्य सरकार में अपर मुख्य सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग अध्यक्ष शामिल होंगे. समिति में पुलिस महानिदेशक मप्र, प्रमुख सचिव विधि एवं विधायी कार्य विभाग और प्रमुख सचिव जेल विभाग के साथ कुल 20 सदस्य नामित किए गए हैं. मुख्य कार्यपालन अधिकारी राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण मप्र को सदस्य सचिव बनाया गया है.
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने हाल में हुई सामूहिक आत्महत्या के मामले में SIT गठित की है और सरकार ने इस तरह के ऐप पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र को बोला है, जिससे आत्महत्याओ को रोका जा सके.
कमेटी के सुझावों पर अमल करेगी सरकार: राज्य सरकार ने इस कमेटी के लिए काम भी तय कर दिया है. ये कमेटी सदस्यों के सुझाव लेगी. बैठक होंगी और विचारों का आदान-प्रदान कर सुझाव तय करेंगे. सुझाव के मुताबिक कार्रवाई के लिए राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण मप्र द्वारा क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार की जाएगी. कमेटी के सुझावों पर सरकार अमल भी करेगी, अगले 7 साल में 7.8 फीसदी कम करने का टास्क दिया गया है.
2022 में एमपी सरकार ने टास्क फोर्स गठित किया था: दावा किया गया था कि सुसाइड प्रिवेंशन पालिसी वाला एमपी पहला राज्य है. एमपी ने उस वक्त 6 उप समितियां भी बनाई थीं, जिसे आत्महत्या के मामले को रोकने के लिए तैयार किया गया था. जिसमें देश के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक, कानूनी जानकार, समाज के विभिन्न पहलुओं में काम करने वाले विशिष्ट नागरिक शामिल थे. 2016 में सीएम शिवराज सिंह ने विधानसभा में आत्महत्या रोकथाम समिति गठित की जिसमे अलग राज्यो में जाकर अध्ययन किया था, लेकिन समिति आज तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप पाई.
NCRB रिपोर्ट में बच्चो की आत्महत्या के मामले में एमपी नंबर 1: हाल के कुछ महीनों में बच्चो की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. मोबाइल की लत से बच्चो में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग अब इसे लेकर स्कूल और अभिभावक के बीच अवेयरनेस प्रोग्राम चलाने के साथ ही पॉलिसी बनाने पर विचार कर रहा है, जिससे बच्चों के हाथों में बेवजह रहने वाले मोबाइल से निजात पाई जा सके. ये खबर लिखी जाने के दौरान भी एमपी में 12वीं के एक छात्र के सुसाइड की खबर आई है.
बच्चों को मोबाइल लत से दूर करने के उपायों पर जोर: निरीक्षण में सामने आए तथ्य जानकारी के मुताबिक आयोग ने जब विभिन्न स्कूलों में औचक निरीक्षण किए तो मोबाइल के प्रयोग से जुड़ी विसंगतियां सामने आई. बच्चे की सुरक्षा और उनके के लिए स्कूल में मोबाइल प्रतिबंधित होने के बाद भी अभिभावक बच्चों को मोबाइल देते हैं. वहीं, आयोग के पास लगातार ऐसे मामले भी पहुंच रहे हैं, जहां मोबाइल के कारण बच्चे बुलिंग या साइबर क्राइम का शिकार भी हो रहे हैं. इसे देखते हुए आयोग को महसूस हुआ कि मोबाइल इस्तेमाल को लेकर अवेयरनेस लाना बेहद जरूरी है. अब आयोग स्कूल प्रतिनिधियों, स्टूडेंट और अभिभावकों से संवाद कर ऐसा रास्ता निकालने की तैयारी में है.