इंदौर। देश भर में पंजाब के बाद अब पराली और कृषि उत्पादन जलाने में मध्य प्रदेश का दूसरा स्थान है. जहां धान से लेकर अन्य कृषि उत्पाद फसल लेने के बाद बड़े पैमाने पर जलाए जा रहे हैं. इससे बड़े पैमाने पर हो रही प्रदूषण की समस्या के चलते इंदौर की एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट पूजा दुबे ने अब पराली पर मशरूम की खेती शुरू की है. जिससे कि किसानों को पराली से कमाई का एक नए स्रोत मिल सके. पढ़िए कमाल के इस प्रयोग की पूरी खबर...
यहां तैयार हो रहा है पराली से प्रोटीन: किसानों द्वारा पराली जलाने से बढ़ते भीषण प्रदूषण और बढ़ते तापमान की समस्या से मुक्ति के लिए इंदौर की एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट पूजा दुबे ने खेतों में फसल काटने के बाद बचने वाली पराली पर मशरूम की खेती शुरू की है. इतना ही नहीं बायोटेक्नोलॉजिस्ट पूजा देशभर के पराली जलाने वाले किसानों को पराली पर ही मशरूम उगाकर लाखों की कमाई की ट्रेनिंग भी दे रही हैं. दरअसल मशरूम ही इकलौती ऐसी फसल है जिसमें उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन और पोषक तत्व मौजूद हैं और यह फसल पराली और एग्रीकल्चर के अवशिष्ट पर आसानी से उगती है. जबकि जानकारी नहीं होने के कारण हजारों किसान इसे अनुपयोगी मानकर खेतों में ही जला देते हैं.
किसानों को ट्रेनिंग दे रही पूजा: फिलहाल देश में कुल फसल का 700 से 900 फ़ीसदी अवशेष पराली के नाम पर जला दिया जाता है. जबकि उसका उपयोग 1 से 2 फ़ीसदी ही है. क्योंकि फसल लेने के बाद देश में इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ की फसल के अन्य उत्पाद का बेहतर उपयोग कैसे हो, न ही कभी इसका कोई डेटा जनरेट किया गया. लिहाजा पूजा को यह ख्याल आया कि बड़ी संख्या में किसान पराली पर ही मशरूम की फसल लेकर पैसा बना सकते हैं. लिहाजा किसानों को ट्रेनिंग देने के साथ मशरूम की पैदावार के लिए एक नया स्टार्टअप BETI (Biotech Era Trasforming India) तैयार करके उन्होंने मशरूम की पैदावार लेना शुरू कर दिया है. वहीं, अब पूजा अपने पति प्रदीप पांडे के साथ मिलकर प्रदेश के किसानों को पराली पर मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रही हैं. इसके अलावा फसल के बचे हुए अवशेष से फ्लावर पॉट शोर बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मैटेरियल आदि चीजें बना रहे हैं.
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मशरूम उगाने की तकनीक विकसित की: गौरतलब है पूजा दुबे ने टिशु कल्चर के जरिए पराली पर ओयस्टर किस्म का मशरूम उगाने की तकनीक विकसित की है. इस तकनीक से मशरूम उगाने के लिए 100 बैग लगाने पर 20 दिन में ही मशरूम ऊगकर तैयार हो जाता है. 45 दिन में इसकी तीन फसल ली जा सकती हैं जो एक बार में 80 से 100 किलोग्राम तैयार होता है. बाजार में इसकी कीमत 150 रुपए किलो है. पूजा दुबे बताती हैं कि ''मशरूम उगाने के बाद भी जो हिस्सा बच रहा है, उससे उच्च गुणवत्ता की कंपोस्ट के साथ विभिन्न प्रकार के कलात्मक आर्टिकल और पैकेजिंग मैटेरियल तैयार किया जा रहा है. जिसे उनके स्टार्टअप द्वारा बाजार में बेचा भी जा रहा है.