जबलपुर। विजय कुमार सरस्वत की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि बालाघाट में 0.46 हेक्टेयर जमीन में बना मकान उन्हें मामा हनुमान सिंह राणा ने दिया था. शासकीय अभिलेखों में उक्त मकान उनके नाम पर दर्ज है. नागपुर निवास उनके भाई अशोक कुमार सरस्वत ने साल 1998 में विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस दौरान भाई ने उनके मकान का कुछ हिस्सा कार्यालय के रूप में उपयोग किया था. साल 2016 में पत्नी की मौत के बाद बड़े भाई घर आये थे और वृद्ध होने के कारण बेटे समर्थ सरस्वात को साथ रखने के लिए कहा था.
पुलिस में भी दर्ज हुई रिपोर्ट : याचिका में बताया गया कि इकलौती विवाहित बेटी ने भी उनकी बात का समर्थन किया था. इसके बाद नवम्बर 2019 में बड़े भाई ने उन्हें अपने पास नागपुर बुला लिया. भतीजे ने इस दौरान मकान के दरवाजे बदलकर ताले लगा दिए. जब बेटी व दामाद के साथ वह बालाघाट स्थित अपने मकान में गये तो बड़े भाई व उसके बेटे ने गाली-गलौज करते हुए भगा दिया. इसके बाद उन्होंने कोतवाली थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई. भतीजे के खिलाफ माता- पिता के भारण पोषण और कल्याण तथा वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के एसडीएम के समक्ष आवेदन किया था.
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एसडीएम ने आवेदन खारिज कर दिया था : एसडीएम ने प्रकरण को सिविल प्रकृति का मानते हुए आवेदन को खारिज कर दिया. इसके खिलाफ उक्त याचिका दायर की गयी थी. याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ता की बेटी जिंदा है. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने नागपुर में अपना व्यापार का संचालन कर रखा है और आय के स्त्रोत हैं. अधिनियम में संतान के रहते हुए रिश्तेदारों पर भरण-पोषण का दावा नहीं किया जा सकता है. सुनवाई के बाद एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए उक्त आदेश जारी किये.