ग्वालियर। मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव जोरों पर हैं. चुनाव में राजनीतिक पार्टियों से लेकर प्रत्याशी विकास कार्यों को लेकर लोगों के बीच जाकर प्रचार प्रसार करने में जुटे हैं, लेकिन ग्वालियर चंबल चंचल में कुछ अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. बिना लाग लपेट के बोलने वाला ग्वालियर चंबल अंचल में अगर चुनाव की बात की जाए तो यहां का सबसे बड़ा सत्य एक ही है जाति और यही जीत का मंत्र होता है. यहां की जनता वोट डालने से पहले यह देखती है कि कौन सा प्रत्याशी किस जाति से है और किसे वोट डालना है. अंचल के चुनाव में जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक जातियों का समर्थन मिलता है वही जीत कर आता है.
जाति पहले विकास अंत में: ग्वालियर चंबल अंचल में राजनीतिक चर्चा कहीं से भी छेड़े, सबसे पहले जाति फिर व्यक्ति उसके बाद पार्टी और आखिर में विकास की बात आती है. शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे पर बात करने के लिए यहां बहुत कम लोग मिलेंगे जो इस पर चर्चा करते हैं. नेता यह दशकों पहले ही नब्ज पकड़ चुके हैं तभी तो अंदरूनी इलाके में सड़क, पानी, बिजली, अस्पताल और स्कूल कॉलेज जैसी मूलभूत सुविधाएं बदहाल है. हर बार के चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल के प्रत्याशियों का जब पार्टी भी चयन करती है तो वह भी जाति देखकर करती है. किस प्रत्याशी को अधिक से अधिक जातियों का समर्थन मिलेगा उसी प्रत्याशी को उतारा जाता है. यही हाल इस विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है. इस ग्वालियर चंबल अंचल में एक कहावत यह भी है कि यहां मुंह का वोट कभी नहीं होता यहां पेट का वोट होता है. मतलब यहां की जनता मुंह से किसी का भी समर्थन कर सकती है लेकिन जब वोट डालने की बारी आती है तो उसका वोट गोपनीय होता है.
क्षत्रिय और ब्राह्मण वोट निर्णायक: ग्वालियर चंबल अंचल की विधानसभा में अधिकतर सीटों पर क्षत्रिय और ब्राह्मण वोट निर्णायक माना जाता है. इसके अलावा यहां पर ओबीसी जातियों का वोट बैंक भी काफी अहम रोल निभाता है. माना जाता है कि जब उम्मीदवार को ओबीसी समाज का वोट मिल जाता है तो उसकी जीत पक्की हो जाती है. ग्वालियर की अलग-अलग विधानसभाओं में अलग-अलग जातियों का प्रभाव है. जिस विधानसभा में एक तिहाई जाति जिस प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालते हैं जीत उसी की पक्की हो जाती है और यह निर्णय उम्मीदवार पहले ही लगा लेते हैं कि उन्हें किस जाति का वोट मिलना है और किसका नहीं. जिन जातियों का वोट उन्हें नहीं मिलता है उनको ही साधने की कोशिश में जुट जाते हैं.
नरेंद्र सिंह तोमर के सामने रविंद्र सिंह तोमर: मुरैना जिले की दिमनी चंबल की सबसे हॉट सीट है. क्योंकि इस विधानसभा सीट से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस के मौजूदा विधायक रविंद्र सिंह तोमर और बसपा के पूर्व विधायक बलबीर सिंह दंडोतिया है. मतलब इस विधानसभा में तोमर बनाम ब्राह्मण जातीय समीकरण नरेंद्र सिंह तोमर के लिए बड़ी चुनौती है. निर्णायक वोट माने जाने वाली तोमर वोट यहां पर बैठे हुए हैं और ब्राह्मण एकजुट रहे तो दंडोतिया की राह आसान हो सकती है. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को एससी और ओबीसी वोट बैंक भी मिल रहा है. इसलिए यहां मजबूत स्थिति बताई जा रही है. यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि सब जाति देकर ही वोट देंगे. उन्होंने कहा कि यहां पर पार्टियां ज्यादा महत्व नहीं रखती है. अगर उम्मीदवार क्षत्रिय समाज से है तो क्षत्रिय वोट बैंक उनके साथ है और अगर उम्मीदवार ब्राह्मण है तो ब्राह्मण वोट उनका समर्थन करता है. इसके अलावा एससी और ओबीसी वोट बैंक उम्मीदवार को देखकर तय करता है कि इस वोट कहां डालना है. लेकिन अधिकतर इनका वोट बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस को पहुंचता है.
चुनावी माहौल पूरी तरह जातिगत समीकरण पर: वहीं, ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा भी जातिगत समीकरण पर ज्यादा घूमती हुई नजर आ रही है. यहां सबसे बड़ी आबादी यादव है और यादव जाति का कोई प्रत्याशी भाजपा, कांग्रेस, बसपा या आप से चुनाव मैदान में नहीं है. फिर भी इस गांव के लोगों के बीच जातिवाद की चर्चा का विषय है. इस ग्रामीण विधानसभा में दर्जनों पर ऐसे गांव हैं, जहां चुनावी माहौल पूरी तरह जातिगत समीकरण में बना हुआ है. ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा में कुशवाहा समाज के करीब 38000, दलित लगभग 32000, गुर्जर करीब 23000, बघेल पाल करीब 17000 और ब्राह्मण, यादव मिलाकर लगभग 25000 वोटर हैं. इस विधानसभा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है. लेकिन यहां दलित, ब्राह्मण, यादव वोट बैंक जिस तरफ जाएगी उसी की जीत पक्की है. यही कारण है कि दोनों उम्मीदवार जातिगत आंकड़ों में जुटे हुए हैं.
भाजपा और कांग्रेस के लिए सिरदर्द: यह जाति और व्यक्ति को मिल रहे महत्व का ही दम है कि, भिंड, अटेर, लहर, मुरैना, सुमावली के अलावा ग्वालियर ग्रामीण ग्वालियर पूर्व में बागी दाम कम से मैदान में डटे हैं. भाजपा और कांग्रेस जैसी बड़ी दलों का सिर दर्द बने हुए हैं. चंबल में आने वाली भिंड, मुरैना और श्योपुर में 13 विधानसभा सीटें हैं. 2018 की चुनाव में इनमें से 10 कांग्रेस की खाते में गई थी. जबकि दो सीटें भाजपा और एक बसपा को मिली थी. 2020 में इन 13 सीटों में से 6 पर दल बदल हो गई है. परिणाम स्वरुप कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरी और भाजपा फिर सत्तारूढ़ हो गई. हालांकि 2020 के उप चुनाव में दो ही जीत पाए थे. इस बार चार दल बदलू टिकट ले बैठे हैं.
प्रत्याशियों का चयन जातियों के आधार पर: वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि ''ग्वालियर चंबल संभाग में कम से कम 34 सीटों में से 20 ऐसी सीटे हैं जहां जातियों का प्रभाव राष्ट्रीय मुद्दे से लेकर प्रदेश के मुद्दों से विकास के मुद्दों से ज्यादा है. खासकर जो उत्तर प्रदेश से लगी हुई सीटे हैं जैसे भिंड, मुरैना. वहीं, ग्वालियर जिले में भी लगभग स्थिति हो गई है की सारी सीटों पर अगर हम देखेंगे तो प्रत्याशियों का चयन की जातियों के आधार पर हो रहा है और जातियों के टकराव से ही यह हो जाता है कि कहां कौन जीतने वाला हैं. जातियों के दो बड़े समूह लड़ते हैं. उनमें जो छोटी-छोटी जातियों के समूह कौन किसके साथ ज्यादा इंटरेक्ट हो जाता है वह जाति जाती है. यहां विकास की कितनी बातें की जाए, मंच पर नेता भी करते लेकिन राजनीतिक दल भी अपने आयोजन करने से लेकर और स्टार प्रचारक तक के चयन करने में जातियों का ही ख्याल रखते हैं कि कहां किस नेता को भेजा जाना चाहिए.''