ETV Bharat / bharat

उत्तराखंड पलायन: 1702 गांव पूरी तरह खाली, लॉकडाउन में लौटे लोगों में से 10 फीसदी ही रुके - people migrated

पलायन उत्तराखंड के लिए नासूर बनता जा रहा है. राज्य के पहाड़ी जिलों के 1702 गांव पूरी तरह खाली यानी घोस्ट विलेज बन चुके हैं. ग्रामीण विकास और पलायन निवारण आयोग (RDMPC) के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि उत्तराखंड के गांवों से करीब सवा लाख लोग अपने गांव छोड़ चुके हैं. लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे लोगों में से भी अब 10 फीसदी ही गांवों में रुके हैं.

Rural Development
उत्तराखंड पलायन
author img

By

Published : Nov 14, 2022, 8:50 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लॉकडाउन के दौरान दूर-दराज के इलाकों से हजारों की संख्या में लोग अपने गांवों को लौट गए थे. शहरों में बेहतर जीवन की उम्मीद धराशायी हो गई थी. उनमें से अधिकांश के पास अपने मूल स्थान पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण अपनी आजीविका कमाने के लिए फिर से घर छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. ग्रामीण विकास और पलायन रोकथाम आयोग (RDMPC) के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने कहा कि उनमें से केवल 5-10 प्रतिशत ही पीछे गांवों में रह गए हैं, जिनके पास शहरों में भरोसेमंद नौकरी नहीं थी.

डेढ़ हजार से ज्यादा गांव हुए खाली: उत्तराखंड ने 9 नवंबर को अपनी स्थापना की 22वीं वर्षगांठ मनाई थी. राज्य अपने गांवों से पलायन की जटिल समस्या से जूझ रहा है. विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए, आजीविका के खराब परिदृश्य और खराब शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के कारण ऐसी समस्या आई है. नेगी ने एक साक्षात्कार में बताया कि सीमावर्ती राज्य में कम से कम 1,702 गांव निर्जन हो गए हैं. क्योंकि निवासियों ने नौकरियों और बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन किया है.
ये भी पढ़ें: पहले रोजगार... अब 'दहशत' की दहाड़, पहाड़ों से पलायन के नए दौर के आगाज की दास्तां

पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से ज्यादा पलायन: पौड़ी और अल्मोड़ा जिले पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांवों से कुल 1.18 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. नेगी ने कहा, "ज्यादातर पलायन बेहतर जीवन जीने की आकांक्षाओं के कारण हुआ है." अधिकांश पलायन बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश के कारण हुआ था.

ये हैं पलायन के कारण: खराब शिक्षा सुविधाओं, खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, कम कृषि उपज या जंगली जानवरों द्वारा खड़ी फसलों को नष्ट करने के कारण भी लोग पलायन कर गए हैं. पहले लोग राज्य से बाहर मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पलायन करते थे. नेगी के अनुसार, हाल के वर्षों में, पलायन स्थानीय प्रकृति का रहा है. क्योंकि लोग गांवों से आसपास के शहरों में जा रहे हैं. कभी-कभी राज्य के भीतर एक ही जिले में भी. उन्होंने कहा, "हम वर्तमान में हरिद्वार जिले के गांवों का दौरा कर रहे हैं. हमने पाया है कि लोग राज्य से बाहर नहीं, बल्कि जिले के विभिन्न शहरों में पलायन कर रहे हैं." एसएस नेगी ने कहा कि हरिद्वार के गांवों के लोग जिले के रुड़की या भगवानपुर की ओर पलायन कर रहे हैं या पौड़ी के ग्रामीण जिले के कोटद्वार, श्रीनगर या सतपुली शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

मैदानी जिलों के गांवों से भी हो रहा है पलायन: यह पलायन उन्हें कस्बों में जीवन यापन करने में मदद करता है और साथ ही, अपनी जड़ों के संपर्क में रहता है. वे सप्ताहांत पर अपने गांवों का दौरा कर सकते हैं, क्योंकि वे बहुत दूर नहीं हैं. उन्होंने कहा, "पलायन जारी है, लेकिन स्थिति उतनी धूमिल नहीं है, जितनी कुछ साल पहले हुआ करती थी. हमारे पास इसे साबित करने के लिए अभी तक कोई ठोस डेटा नहीं है, लेकिन चीजें तेजी से बदल रही हैं."

रिवर्स पलायन वाले लोगों का रोजगार चुनौती: एसएस नेगी ने रेखांकित किया कि लॉकडाउन के बाद अपने गांवों में रहने वाले लोगों को काम और सम्मान का जीवन देना राज्य सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने महसूस किया कि पर्यटन जैसे सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना ही प्रवास पर ब्रेक लगाने का एकमात्र तरीका प्रतीत होता है. क्योंकि पहाड़ों में बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण संभव नहीं है. नेगी ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार की हर मौसम में चलने वाली सड़क परियोजना, जो लगभग पूरी होने वाली है, आने वाले वर्षों में पर्यटन को एक बड़ा बढ़ावा देने की उम्मीद की जा सकती है.

चारधाम यात्रा ने बढ़ाई उम्मीद: पलायन रोकथाम आयोग (Rural Development and Migration Prevention Commission) के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने कहा कि यह स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के कई अवसर पैदा कर सकता है और पलायन को नियंत्रित कर सकता है. उन्होंने इस साल चारधाम यात्रा में रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं के आने की ओर इशारा करते हुए कहा कि बेहतर सुविधाओं से और अधिक पर्यटक आ सकते हैं. नेगी ने कहा, "ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के बाकी हिस्सों में भी होगा, जब सभी मौसम में सड़कें चालू हो जाएंगी."

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना रोक सकती है पलायन: आरडीएमपीसी के उपाध्यक्ष ने कहा कि एक और चीज जो पलायन पर लगाम लगाने में मदद कर सकती है, वह है मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, जो लोगों को मुर्गी पालन, डेयरी, आतिथ्य और बागवानी क्षेत्रों में अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए आसान ऋण प्रदान करती है. उन्होंने कहा कि अगर पहाड़ी गांवों में प्रत्येक परिवार प्रति माह 10,000 रुपये कमाने लगे, तो उनका पलायन रुक सकता है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड स्थापना दिवस: राज्य ने 23वें साल में किया प्रवेश, ये है आंदोलन की पूरी कहानी

उन्होंने कहा, "अगर गांवों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, और वहां बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बनाई जाती हैं, तो कोई अपनी जड़ें क्यों छोड़ेगा?"

(पीटीआई)

देहरादून: उत्तराखंड में लॉकडाउन के दौरान दूर-दराज के इलाकों से हजारों की संख्या में लोग अपने गांवों को लौट गए थे. शहरों में बेहतर जीवन की उम्मीद धराशायी हो गई थी. उनमें से अधिकांश के पास अपने मूल स्थान पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण अपनी आजीविका कमाने के लिए फिर से घर छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. ग्रामीण विकास और पलायन रोकथाम आयोग (RDMPC) के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने कहा कि उनमें से केवल 5-10 प्रतिशत ही पीछे गांवों में रह गए हैं, जिनके पास शहरों में भरोसेमंद नौकरी नहीं थी.

डेढ़ हजार से ज्यादा गांव हुए खाली: उत्तराखंड ने 9 नवंबर को अपनी स्थापना की 22वीं वर्षगांठ मनाई थी. राज्य अपने गांवों से पलायन की जटिल समस्या से जूझ रहा है. विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए, आजीविका के खराब परिदृश्य और खराब शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के कारण ऐसी समस्या आई है. नेगी ने एक साक्षात्कार में बताया कि सीमावर्ती राज्य में कम से कम 1,702 गांव निर्जन हो गए हैं. क्योंकि निवासियों ने नौकरियों और बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन किया है.
ये भी पढ़ें: पहले रोजगार... अब 'दहशत' की दहाड़, पहाड़ों से पलायन के नए दौर के आगाज की दास्तां

पौड़ी और अल्मोड़ा जिलों से ज्यादा पलायन: पौड़ी और अल्मोड़ा जिले पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांवों से कुल 1.18 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. नेगी ने कहा, "ज्यादातर पलायन बेहतर जीवन जीने की आकांक्षाओं के कारण हुआ है." अधिकांश पलायन बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश के कारण हुआ था.

ये हैं पलायन के कारण: खराब शिक्षा सुविधाओं, खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, कम कृषि उपज या जंगली जानवरों द्वारा खड़ी फसलों को नष्ट करने के कारण भी लोग पलायन कर गए हैं. पहले लोग राज्य से बाहर मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पलायन करते थे. नेगी के अनुसार, हाल के वर्षों में, पलायन स्थानीय प्रकृति का रहा है. क्योंकि लोग गांवों से आसपास के शहरों में जा रहे हैं. कभी-कभी राज्य के भीतर एक ही जिले में भी. उन्होंने कहा, "हम वर्तमान में हरिद्वार जिले के गांवों का दौरा कर रहे हैं. हमने पाया है कि लोग राज्य से बाहर नहीं, बल्कि जिले के विभिन्न शहरों में पलायन कर रहे हैं." एसएस नेगी ने कहा कि हरिद्वार के गांवों के लोग जिले के रुड़की या भगवानपुर की ओर पलायन कर रहे हैं या पौड़ी के ग्रामीण जिले के कोटद्वार, श्रीनगर या सतपुली शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

मैदानी जिलों के गांवों से भी हो रहा है पलायन: यह पलायन उन्हें कस्बों में जीवन यापन करने में मदद करता है और साथ ही, अपनी जड़ों के संपर्क में रहता है. वे सप्ताहांत पर अपने गांवों का दौरा कर सकते हैं, क्योंकि वे बहुत दूर नहीं हैं. उन्होंने कहा, "पलायन जारी है, लेकिन स्थिति उतनी धूमिल नहीं है, जितनी कुछ साल पहले हुआ करती थी. हमारे पास इसे साबित करने के लिए अभी तक कोई ठोस डेटा नहीं है, लेकिन चीजें तेजी से बदल रही हैं."

रिवर्स पलायन वाले लोगों का रोजगार चुनौती: एसएस नेगी ने रेखांकित किया कि लॉकडाउन के बाद अपने गांवों में रहने वाले लोगों को काम और सम्मान का जीवन देना राज्य सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने महसूस किया कि पर्यटन जैसे सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना ही प्रवास पर ब्रेक लगाने का एकमात्र तरीका प्रतीत होता है. क्योंकि पहाड़ों में बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण संभव नहीं है. नेगी ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार की हर मौसम में चलने वाली सड़क परियोजना, जो लगभग पूरी होने वाली है, आने वाले वर्षों में पर्यटन को एक बड़ा बढ़ावा देने की उम्मीद की जा सकती है.

चारधाम यात्रा ने बढ़ाई उम्मीद: पलायन रोकथाम आयोग (Rural Development and Migration Prevention Commission) के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने कहा कि यह स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के कई अवसर पैदा कर सकता है और पलायन को नियंत्रित कर सकता है. उन्होंने इस साल चारधाम यात्रा में रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालुओं के आने की ओर इशारा करते हुए कहा कि बेहतर सुविधाओं से और अधिक पर्यटक आ सकते हैं. नेगी ने कहा, "ऐसा ही कुछ उत्तराखंड के बाकी हिस्सों में भी होगा, जब सभी मौसम में सड़कें चालू हो जाएंगी."

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना रोक सकती है पलायन: आरडीएमपीसी के उपाध्यक्ष ने कहा कि एक और चीज जो पलायन पर लगाम लगाने में मदद कर सकती है, वह है मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, जो लोगों को मुर्गी पालन, डेयरी, आतिथ्य और बागवानी क्षेत्रों में अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए आसान ऋण प्रदान करती है. उन्होंने कहा कि अगर पहाड़ी गांवों में प्रत्येक परिवार प्रति माह 10,000 रुपये कमाने लगे, तो उनका पलायन रुक सकता है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड स्थापना दिवस: राज्य ने 23वें साल में किया प्रवेश, ये है आंदोलन की पूरी कहानी

उन्होंने कहा, "अगर गांवों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, और वहां बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बनाई जाती हैं, तो कोई अपनी जड़ें क्यों छोड़ेगा?"

(पीटीआई)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.