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सुप्रीम कोर्ट में 70 हजार से भी ज्यादा केस लंबित - सुप्रीम कोर्ट में केस लंबित

सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) में 70 हजार से भी ज्यादा मामले लंबित हैं. अदालतों का बोझ कम करने के लिए सीजेआई बराबर सहमति से मामलों का निपटान करने की बात करते रहे हैं, लेकिन हर कोई न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहता है. 'ईटीवी भारत' संवाददाता मैत्री झा की रिपोर्ट.

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Published : Jul 16, 2022, 3:57 PM IST

Updated : Jul 16, 2022, 5:09 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में 1 जुलाई 2022 तक कुल 70,062 मामले लंबित हैं. इनमें 492 संविधान पीठ के मामले शामिल हैं. पिछले 6 महीनों की बात की जाए तो लंबित मामलों की संख्या में मामूली अंतर आया है, लेकिन अभी भी यह संख्या 70,000 से ऊपर बनी हुई है. संविधान पीठ के मामले जनवरी में 422 थे जो जुलाई तक बढ़कर 492 हो गए हैं. संविधान पीठ के मामले वे केस हैं जो कानून के सवाल से निपटते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता आदित्य परोलिया (Aditya Parolia) ने लंबित मामलों के बारे 'ईटीवी भारत' को बताया कि 'पूरे देश और हर अदालत से मामले सुप्रीम कोर्ट में आते हैं. हर कोई सुप्रीम कोर्ट आना चाहता है.' उन्होंने कहा कि 'हर दिन बड़ी संख्या में नए मामले दर्ज किए जाते हैं और हर मामले में समय लगता है. एक निश्चित प्रक्रिया है जिसका पालन करना पड़ता है, कानून चाहता है कि न्यायाधीश और वकील मामले को अपना उचित समय दें. सुनवाई के बाद सभी पार्टियों को न्याय मिले.'

50 से ज्यादा मामले सूचीबद्ध होते हैं : उन्होंने कहा कि 'अदालत में न्यायाधीशों की पर्याप्त संख्या नहीं है. न्यायाधीश के लिए अधिक समय तक और ज्यादा मामलों की सुनवाई करना मानवीय रूप से संभव नहीं है. जिन मामलों को सूचीबद्ध किया जाता है उनको फाइनल करने में एक से दो घंटे का समय लग जाता है. न्यायाधीश मुश्किल से 7 से 8 मामले सुन पाते हैं.' गौरतलब है कि आमतौर पर प्रत्येक अदालत में 50 से अधिक मामले सूचीबद्ध होते हैं.

CJI एनवी रमना ने अदालत के बोझ को कम करने के लिए कई बार आपसी निपटारे के लिए वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) के बारे में बात की है. अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि 'यह हमारे देश में बहुत प्रभावी नहीं है क्योंकि लोग बातचीत करने को तैयार नहीं हैं. वह बस अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहते हैं. कोई भी ऐसी समझदारी नहीं दिखाना चाहता. जबकि दूसरे देशों में लोग अदालतों से दूर रहने की कोशिश करते हैं लेकिन यहां उल्टा लोग अदालतों का रुख करते हैं.'

अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि एडीआर के मामले में मध्यस्थों को उचित वेतनमान भी एक मुद्दा है. इसके पक्षकारों को मध्यस्थों को भुगतान करना पड़ता है लेकिन मध्यस्थों को उनकी विशेषज्ञता के अनुसार भुगतान नहीं किया जाता है यही वजह है कि वे मामले निपटने में अनिच्छुक हैं. उन्होंने कहा कि 'इन दिनों सरकार जजों की नियुक्ति नहीं कर रही है. SC केवल सिफारिश कर सकता है लेकिन नियुक्ति सरकार को करनी होगी.'

लंबित मामलों से निपटने के उपाय सुझाते हुए अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि विधि आयोग और शीर्ष अदालत द्वारा अनुशंसित चार अपील अदालत ही एकमात्र रास्ता है. सिफारिश के अनुसार अपील की चार अदालतें होनी चाहिए जो अलग-अलग क्षेत्राधिकार वाले विभिन्न अदालतों से अपील सुनने के लिए क्षेत्रीय रूप से विभाजित होंगी. परोलिया ने कहा, ' एक तो न्यायाधीशों की संख्या बढ़ानी चाहिए, दूसरे अपील की अदालत का पता लगाया जाना चाहिए. उसके बाद ही कुछ होगा. हमने विशिष्ट शिकायतों के लिए एनसीएलएटी जैसे ट्रिब्यूनल पहले ही बनाए हैं लेकिन यह नाकाफी है, क्योंकि न्यायाधीश नहीं हैं. जब तक न्यायाधीश नियुक्त नहीं किए जाते, तब तक कोई भी कुछ नहीं कर सकता.'

इसके अलावा उन्होंने सुझाव दिया कि वैवाहिक विवाद, जमानत मामले, भूमि विवाद, 138 के तहत जैसे केसों को वरिष्ठ मध्यस्थों द्वारा निपटाया जा सकता है. सर्वोच्च न्यायालय को केवल संवैधानिक मामलों या कानूनों के गंभीर प्रश्नों से संबंधित मामलों की सुनवाई करनी चाहिए.

पढ़ें- मौजूदा माननीयों के खिलाफ 4984 मामले लंबित, सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट

पढ़ें- निचली और अधीनस्थ अदालतों में करीब चार करोड़ मामले लंबित: सरकार

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में 1 जुलाई 2022 तक कुल 70,062 मामले लंबित हैं. इनमें 492 संविधान पीठ के मामले शामिल हैं. पिछले 6 महीनों की बात की जाए तो लंबित मामलों की संख्या में मामूली अंतर आया है, लेकिन अभी भी यह संख्या 70,000 से ऊपर बनी हुई है. संविधान पीठ के मामले जनवरी में 422 थे जो जुलाई तक बढ़कर 492 हो गए हैं. संविधान पीठ के मामले वे केस हैं जो कानून के सवाल से निपटते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता आदित्य परोलिया (Aditya Parolia) ने लंबित मामलों के बारे 'ईटीवी भारत' को बताया कि 'पूरे देश और हर अदालत से मामले सुप्रीम कोर्ट में आते हैं. हर कोई सुप्रीम कोर्ट आना चाहता है.' उन्होंने कहा कि 'हर दिन बड़ी संख्या में नए मामले दर्ज किए जाते हैं और हर मामले में समय लगता है. एक निश्चित प्रक्रिया है जिसका पालन करना पड़ता है, कानून चाहता है कि न्यायाधीश और वकील मामले को अपना उचित समय दें. सुनवाई के बाद सभी पार्टियों को न्याय मिले.'

50 से ज्यादा मामले सूचीबद्ध होते हैं : उन्होंने कहा कि 'अदालत में न्यायाधीशों की पर्याप्त संख्या नहीं है. न्यायाधीश के लिए अधिक समय तक और ज्यादा मामलों की सुनवाई करना मानवीय रूप से संभव नहीं है. जिन मामलों को सूचीबद्ध किया जाता है उनको फाइनल करने में एक से दो घंटे का समय लग जाता है. न्यायाधीश मुश्किल से 7 से 8 मामले सुन पाते हैं.' गौरतलब है कि आमतौर पर प्रत्येक अदालत में 50 से अधिक मामले सूचीबद्ध होते हैं.

CJI एनवी रमना ने अदालत के बोझ को कम करने के लिए कई बार आपसी निपटारे के लिए वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) के बारे में बात की है. अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि 'यह हमारे देश में बहुत प्रभावी नहीं है क्योंकि लोग बातचीत करने को तैयार नहीं हैं. वह बस अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहते हैं. कोई भी ऐसी समझदारी नहीं दिखाना चाहता. जबकि दूसरे देशों में लोग अदालतों से दूर रहने की कोशिश करते हैं लेकिन यहां उल्टा लोग अदालतों का रुख करते हैं.'

अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि एडीआर के मामले में मध्यस्थों को उचित वेतनमान भी एक मुद्दा है. इसके पक्षकारों को मध्यस्थों को भुगतान करना पड़ता है लेकिन मध्यस्थों को उनकी विशेषज्ञता के अनुसार भुगतान नहीं किया जाता है यही वजह है कि वे मामले निपटने में अनिच्छुक हैं. उन्होंने कहा कि 'इन दिनों सरकार जजों की नियुक्ति नहीं कर रही है. SC केवल सिफारिश कर सकता है लेकिन नियुक्ति सरकार को करनी होगी.'

लंबित मामलों से निपटने के उपाय सुझाते हुए अधिवक्ता परोलिया ने कहा कि विधि आयोग और शीर्ष अदालत द्वारा अनुशंसित चार अपील अदालत ही एकमात्र रास्ता है. सिफारिश के अनुसार अपील की चार अदालतें होनी चाहिए जो अलग-अलग क्षेत्राधिकार वाले विभिन्न अदालतों से अपील सुनने के लिए क्षेत्रीय रूप से विभाजित होंगी. परोलिया ने कहा, ' एक तो न्यायाधीशों की संख्या बढ़ानी चाहिए, दूसरे अपील की अदालत का पता लगाया जाना चाहिए. उसके बाद ही कुछ होगा. हमने विशिष्ट शिकायतों के लिए एनसीएलएटी जैसे ट्रिब्यूनल पहले ही बनाए हैं लेकिन यह नाकाफी है, क्योंकि न्यायाधीश नहीं हैं. जब तक न्यायाधीश नियुक्त नहीं किए जाते, तब तक कोई भी कुछ नहीं कर सकता.'

इसके अलावा उन्होंने सुझाव दिया कि वैवाहिक विवाद, जमानत मामले, भूमि विवाद, 138 के तहत जैसे केसों को वरिष्ठ मध्यस्थों द्वारा निपटाया जा सकता है. सर्वोच्च न्यायालय को केवल संवैधानिक मामलों या कानूनों के गंभीर प्रश्नों से संबंधित मामलों की सुनवाई करनी चाहिए.

पढ़ें- मौजूदा माननीयों के खिलाफ 4984 मामले लंबित, सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट

पढ़ें- निचली और अधीनस्थ अदालतों में करीब चार करोड़ मामले लंबित: सरकार

Last Updated : Jul 16, 2022, 5:09 PM IST
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