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अत्यधिक भूजल के प्रयोग से भी प्रभावित होता है मानसून

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Published : Jul 6, 2021, 10:43 PM IST

हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की गति दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों के प्रति संवेदनशील है. दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे अधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक है, जो बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग करता है, और इसकी प्रमुख कृषि गर्मी के मौसम में की जाने वाली फसल है. इसलिए यह अध्ययन करना जरूरी है कि इस तरह की कितनी प्रथाएं मानसून को प्रभावित कर सकती हैं.

मानसून के दिशा परिवर्तन से कृषि को खतरा
मानसून के दिशा परिवर्तन से कृषि को खतरा

हैदराबाद : सिंचाई की पद्धतियों से बारिश प्रभावित होने के साथ जलवायु में बदलाव के कारण कृषि को खतरा बढ़ता जा रहा है. जर्नल 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' (Geophysical Research Letters) में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की गति दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों के प्रति संवेदनशील है. प्रोफेसर सुबिमल घोष ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (Indian Summer Monsoon) पर कृषि जल (agricultural water) के उपयोग के प्रभाव का पता लगाया.

  • जलवायु शोधकर्ताओं (Climate researchers) ने पाया है कि उत्तरी भारत में अतिरिक्त सिंचाई से उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग की ओर सितंबर में होने वाले मानसून (September monsoon) को स्थानांतरित कर दिया है. इससे मध्य भारत में मौसम में व्यापक बदलाव हो रहा है. इन मौसम संबंधी खतरे (meteorological hazards) से कमजोर किसान और उनकी फसलों पर प्रभावित पड़ सकता है. दक्षिण एशिया (South Asia) दुनिया के सबसे अधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक है, जो बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग करता है, और इसकी प्रमुख कृषि गर्मी के मौसम में की जाने वाली फसल है. इसलिए यह अध्ययन करना जरूरी है कि इस तरह की कितनी प्रथाएं मानसून को प्रभावित कर सकती हैं, जो इस कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है.
  • प्रोफेसर सुबिमल घोष ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (Indian Summer Monsoon) पर कृषि जल (agricultural water) के उपयोग के प्रभाव का पता लगाया. प्रो घोष सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर (Department of Civil Engineering) हैं.
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और उनके जलवायु समूह द्वारा समर्थित जलवायु अध्ययन (आईडीपीसीएस) में अंतः विषय कार्यक्रम में जलवायु अध्ययन में अंतः विषय कार्यक्रम (Interdisciplinary Programme in Climate Studies-IDPCS) के संयोजक हैं.
  • जर्नल 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' (Geophysical Research Letters) में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की गति दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों के प्रति संवेदनशील है. एक अन्य अध्ययन में, IDPCS, IIT बॉम्बे के प्रो. शुभंकर कर्मकर और उनके शोधकर्ताओं के समूह ने पहली बार पता लगाया कि चावल और गेहूं के लिए हाल के दशक में खतरा बढ़ गया है.
  • फसलों के प्रति बढ़ते खतरे का मुख्य कारण किसानों की घटती संख्या है. वहीं, गेहूं के प्रति तब खतरा बढ़ता है जब खेती के मौसम में न्यूनतम तापमान में वृद्धि होती है. इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि अत्यधिक वर्षा और सूखे से संबंधी जल-जलवायु खतरे (hydro-climatic hazards) के कारण फसलों का जोखिम भी बढ़ रहा है.
  • इस अध्ययन से एक और बात पता चली कि हाल के दशकों में केंद्रीय भारत में अत्यधिक बारिश में वृद्धि हो रही है, और यह सिंचाई और वाष्पीकरण (evapotranspiration- भूमि की सतह से वाष्पीकरण के साथ पौधों से वाष्पोत्सर्जन) में परिणामी वृद्धि (consequent increase) का कारण होता है.
  • सिंचाई-मानसून फीडबैक (irrigation-monsoon feedbacks) और कृषि-कार्टोग्राफिक उत्पाद (agri-cartographic products) भारत सरकार द्वारा जलवायु लचनशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल (National Initiative on Climate Resilient Agriculture) को सीधे लाभान्वित करेंगे.

पढ़ेंः जलवायु वित्त : एमडीबी बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक जानिए गत पांच वर्षों में भारत की स्थिति

हैदराबाद : सिंचाई की पद्धतियों से बारिश प्रभावित होने के साथ जलवायु में बदलाव के कारण कृषि को खतरा बढ़ता जा रहा है. जर्नल 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' (Geophysical Research Letters) में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की गति दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों के प्रति संवेदनशील है. प्रोफेसर सुबिमल घोष ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (Indian Summer Monsoon) पर कृषि जल (agricultural water) के उपयोग के प्रभाव का पता लगाया.

  • जलवायु शोधकर्ताओं (Climate researchers) ने पाया है कि उत्तरी भारत में अतिरिक्त सिंचाई से उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग की ओर सितंबर में होने वाले मानसून (September monsoon) को स्थानांतरित कर दिया है. इससे मध्य भारत में मौसम में व्यापक बदलाव हो रहा है. इन मौसम संबंधी खतरे (meteorological hazards) से कमजोर किसान और उनकी फसलों पर प्रभावित पड़ सकता है. दक्षिण एशिया (South Asia) दुनिया के सबसे अधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक है, जो बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग करता है, और इसकी प्रमुख कृषि गर्मी के मौसम में की जाने वाली फसल है. इसलिए यह अध्ययन करना जरूरी है कि इस तरह की कितनी प्रथाएं मानसून को प्रभावित कर सकती हैं, जो इस कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है.
  • प्रोफेसर सुबिमल घोष ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (Indian Summer Monsoon) पर कृषि जल (agricultural water) के उपयोग के प्रभाव का पता लगाया. प्रो घोष सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर (Department of Civil Engineering) हैं.
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और उनके जलवायु समूह द्वारा समर्थित जलवायु अध्ययन (आईडीपीसीएस) में अंतः विषय कार्यक्रम में जलवायु अध्ययन में अंतः विषय कार्यक्रम (Interdisciplinary Programme in Climate Studies-IDPCS) के संयोजक हैं.
  • जर्नल 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' (Geophysical Research Letters) में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की गति दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों के प्रति संवेदनशील है. एक अन्य अध्ययन में, IDPCS, IIT बॉम्बे के प्रो. शुभंकर कर्मकर और उनके शोधकर्ताओं के समूह ने पहली बार पता लगाया कि चावल और गेहूं के लिए हाल के दशक में खतरा बढ़ गया है.
  • फसलों के प्रति बढ़ते खतरे का मुख्य कारण किसानों की घटती संख्या है. वहीं, गेहूं के प्रति तब खतरा बढ़ता है जब खेती के मौसम में न्यूनतम तापमान में वृद्धि होती है. इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि अत्यधिक वर्षा और सूखे से संबंधी जल-जलवायु खतरे (hydro-climatic hazards) के कारण फसलों का जोखिम भी बढ़ रहा है.
  • इस अध्ययन से एक और बात पता चली कि हाल के दशकों में केंद्रीय भारत में अत्यधिक बारिश में वृद्धि हो रही है, और यह सिंचाई और वाष्पीकरण (evapotranspiration- भूमि की सतह से वाष्पीकरण के साथ पौधों से वाष्पोत्सर्जन) में परिणामी वृद्धि (consequent increase) का कारण होता है.
  • सिंचाई-मानसून फीडबैक (irrigation-monsoon feedbacks) और कृषि-कार्टोग्राफिक उत्पाद (agri-cartographic products) भारत सरकार द्वारा जलवायु लचनशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल (National Initiative on Climate Resilient Agriculture) को सीधे लाभान्वित करेंगे.

पढ़ेंः जलवायु वित्त : एमडीबी बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक जानिए गत पांच वर्षों में भारत की स्थिति

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