चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के गर्भपात के मामले में अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने 18 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में अजन्मे बच्चे के जैविक पिता के नाम का उल्लेख किए बिना गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी. न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि भले ही नाबालिग लड़की या उसके अभिभावक कानूनी रूप से मामले को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं रखते हों, फिर भी पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए.
मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि गर्भावस्था के लिए जिम्मेदार जैविक पिता के नाम का खुलासा करने पर जोर देता है तो डर के कारण योग्य डॉक्टरों से संपर्क करने की संभावना कम हो जाएगी. इसलिए, उनके अयोग्य डॉक्टरों से संपर्क करने की अधिक संभावना बढ़ेगी. इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर यह भी स्पष्ट किया है कि यौन उत्पीड़न की शिकार नाबालिग लड़की के लिए टू-फिंगर परीक्षण और योनि परीक्षण पूरी तरह से प्रतिबंधित है.
गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश और सुंदर मोहन की पीठ के समक्ष नाबालिगों के बीच सहमति से यौन संबंध और गर्भपात से संबंधित मामलों की सुनवाई हुई. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अगर किसी अधिकृत डॉक्टर को यह पता लगाना है कि गर्भाशय में कोई ट्यूमर या घाव है या नहीं, तो यह केवल एक उपयुक्त उपकरण के साथ ही किया जाना चाहिए.
ये भी पढ़ें- मद्रास हाई कोर्ट ने कहा, कर्मचारियों को प्रबंधन के खिलाफ 'भड़ास निकालने का अधिकार'
मद्रास हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा द्वारा जारी बयान का पालन करने का भी आदेश दिया है कि ऐसी जांच तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि ये चिकित्सा उपचार के लिए आवश्यक न हो. इसके अतिरिक्त सभी यौन अपराध मामलों में नियमित पेनाइल बायोप्सी की आवश्यकता नहीं होती है. यदि कोई नाबालिग पुरुष आरोपी बलात्कार के मामले में खुद को बचाने के लिए नपुंसकता का दावा करता है तो आरोपी को यह साबित करना होगा कि वह नपुंसक है.