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गरीबी में बीता बचपन पर नहीं मानी हार, टोक्यो Olympics में कुछ कर गुजरने को तैयार

टोक्यो ओलंपिक में तमिलनाडु की बेटी रेवती वीरामनी अपनी प्रतिभा दिखाने को तैयार हैं. बता दें, रेवती को यहां तक पहुंचने में काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा है. जब वो महज 7 साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया था. अभी इस सदमे से वो उबर ही रही थीं कि एक साल बाद उनकी मां का भी निधन हो गया. ऐसे में अनाथ रेवती और उनकी बहन का पालन पोषण उनकी नानी ने किया.

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Published : Jul 12, 2021, 9:55 PM IST

tokyo olympics, v revathi
एथलीट वी रेवती

नई दिल्ली: पांच साल की उम्र में ही वो अनाथ हो गई, तो मासूम बचपन पर गरीबी की काली छाया में जिंदगी का सफर शुरू हुआ. समय के साथ भले ही लाख कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उसने हार नहीं मानी. मन में जो कुछ कर गुजरने की चाहत थी, उसे सच करने के लिए खूब मेहनत की. नतीजा, आज वो तैयार है टोक्यो ओलंपिक में (Tokyo Olympics 2020) में देश के लिए मेडल जीतने को. जी हां! हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के रेवती एक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती (V Revathi) की.

तमिलनाडु के मदुरै जिले के सकीमंगलम गांव की तेइस साल की रेवती 23 जुलाई से शुरू हो रहे खेलों के महाकुंभ टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही भारत की चार गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले टीम का हिस्सा हैं. रेवती ने जिन मुश्किल हालातों का सामना किया उन्हें याद करते हुए बताती है कि मुझे बताया गया था कि मेरे पिता के पेट में कुछ तकलीफ थी जिसके कारण उनका निधन हो गया, इसके छह महीने बाद दिमागी बुखार से मेरी मां भी चल बसी. जब उनकी मौत हुई तो मैं छह बरस की भी नहीं थी.

मुझ पालने के लिए नानी करती थीं मजदूरी

उन्होंने कहा कि मुझे और मेरी बहन को मेरी नानी के अराम्मल ने पाला. हमें पालने के लिए वह बहुत कम पैसों में भी दूसरों के खेतों और ईंट भट्ठों पर काम करती थी. हमारे रिश्तेदारों ने नानी को कहा कि वह हमें भी काम पर भेजें, लेकिन उन्होंने इंकार करते हुए कहा कि हमें स्कूल जाना चाहिए और पढ़ाई करनी चाहिए.

रेवती और उनकी बहन 76 साल की अपनी नानी के जज्बे के कारण स्कूल जा पाई. कुशल धावक होने के कारण रेवती को रेलवे के मदुरै खंड में टीटीई की नौकरी मिल गई, जबकि उनकी छोटी बहन अब चेन्नई में पुलिस अधिकारी हैं.

कोच ने पहचानी प्रतिभा

तमिलनाडु के खेल विकास प्राधिकरण के कोच के कन्नन ने स्कूल में रेवती की प्रतिभा को पहचाना. रेवती की नानी शुरुआत में उन्हें दौड़ने की स्वीकृति देने से हिचक रही थी, लेकिन कन्नन ने उन्हें मनाया और रेवती को मदुरै के लेडी डोक कॉलेज और छात्रावास में जगह दिलाई.

पढ़ें: गांव से Tokyo Olympics तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती के मुरीद हुए केंद्रीय मंत्री, जानें क्या कहा ?

रेवती बताती है कि मेरी नानी ने कड़ी मेहनत करके हमें पाला. मैं और मेरी बहन उनके कारण बच पाए, लेकिन मेरी सारी खेल गतिविधियां कन्नन सर के कारण हैं. मैं कॉलेज प्रतियोगिताओं में नंगे पैर दौड़ी और 2016 में कोयंबटूर में राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप के दौरान भी. इसके बाद कन्नन सर ने सुनिश्चित किया कि मुझे सभी जरूरी किट, पर्याप्त खान-पान मिले और अन्य जरूरतें पूरी हों.

ओलंपिक में भाग लेने के लिए हूं बेहद खुश

रेवती ने 2016 से 2019 तक कन्नन के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग की और फिर उन्हें पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में राष्ट्रीय शिविर में चुना गया. कन्नन के मार्गदर्शन में 100 मीटर और 200 मीटर में चुनौती पेश करने वाली रेवती को गलीना बुखारिना ने 400 मीटर में हिस्सा लेने को कहा. बुखारिना राष्ट्रीय शिविर में 400 मीटर की कोच थीं. उन्होंने कहा कि गलीना मैडम ने मुझे 400 मीटर में दौड़ने को कहा और कन्नन सर भी राजी हो गए.

मुझे खुशी है कि मैंने 400 मीटर में हिस्सा लिया और मैं अब अपने पहले ओलंपिक में जा रही हूं. कन्नन सर ने मुझे कहा था कि एक दिन मैं ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करूंगी और चीजें काफी तेजी से हुई. यह सपना साकार होने की तरह है, लेकिन मैंने इसके इतनी जल्दी सच होने की उम्मीद नहीं की थी. मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी और मैं यही आश्वासन दे सकती हूं.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: पांच साल की उम्र में ही वो अनाथ हो गई, तो मासूम बचपन पर गरीबी की काली छाया में जिंदगी का सफर शुरू हुआ. समय के साथ भले ही लाख कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उसने हार नहीं मानी. मन में जो कुछ कर गुजरने की चाहत थी, उसे सच करने के लिए खूब मेहनत की. नतीजा, आज वो तैयार है टोक्यो ओलंपिक में (Tokyo Olympics 2020) में देश के लिए मेडल जीतने को. जी हां! हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के रेवती एक छोटे से गांव से टोक्यो ओलंपिक तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती (V Revathi) की.

तमिलनाडु के मदुरै जिले के सकीमंगलम गांव की तेइस साल की रेवती 23 जुलाई से शुरू हो रहे खेलों के महाकुंभ टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही भारत की चार गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले टीम का हिस्सा हैं. रेवती ने जिन मुश्किल हालातों का सामना किया उन्हें याद करते हुए बताती है कि मुझे बताया गया था कि मेरे पिता के पेट में कुछ तकलीफ थी जिसके कारण उनका निधन हो गया, इसके छह महीने बाद दिमागी बुखार से मेरी मां भी चल बसी. जब उनकी मौत हुई तो मैं छह बरस की भी नहीं थी.

मुझ पालने के लिए नानी करती थीं मजदूरी

उन्होंने कहा कि मुझे और मेरी बहन को मेरी नानी के अराम्मल ने पाला. हमें पालने के लिए वह बहुत कम पैसों में भी दूसरों के खेतों और ईंट भट्ठों पर काम करती थी. हमारे रिश्तेदारों ने नानी को कहा कि वह हमें भी काम पर भेजें, लेकिन उन्होंने इंकार करते हुए कहा कि हमें स्कूल जाना चाहिए और पढ़ाई करनी चाहिए.

रेवती और उनकी बहन 76 साल की अपनी नानी के जज्बे के कारण स्कूल जा पाई. कुशल धावक होने के कारण रेवती को रेलवे के मदुरै खंड में टीटीई की नौकरी मिल गई, जबकि उनकी छोटी बहन अब चेन्नई में पुलिस अधिकारी हैं.

कोच ने पहचानी प्रतिभा

तमिलनाडु के खेल विकास प्राधिकरण के कोच के कन्नन ने स्कूल में रेवती की प्रतिभा को पहचाना. रेवती की नानी शुरुआत में उन्हें दौड़ने की स्वीकृति देने से हिचक रही थी, लेकिन कन्नन ने उन्हें मनाया और रेवती को मदुरै के लेडी डोक कॉलेज और छात्रावास में जगह दिलाई.

पढ़ें: गांव से Tokyo Olympics तक पहुंचने वाली एथलीट वी रेवती के मुरीद हुए केंद्रीय मंत्री, जानें क्या कहा ?

रेवती बताती है कि मेरी नानी ने कड़ी मेहनत करके हमें पाला. मैं और मेरी बहन उनके कारण बच पाए, लेकिन मेरी सारी खेल गतिविधियां कन्नन सर के कारण हैं. मैं कॉलेज प्रतियोगिताओं में नंगे पैर दौड़ी और 2016 में कोयंबटूर में राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप के दौरान भी. इसके बाद कन्नन सर ने सुनिश्चित किया कि मुझे सभी जरूरी किट, पर्याप्त खान-पान मिले और अन्य जरूरतें पूरी हों.

ओलंपिक में भाग लेने के लिए हूं बेहद खुश

रेवती ने 2016 से 2019 तक कन्नन के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग की और फिर उन्हें पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) में राष्ट्रीय शिविर में चुना गया. कन्नन के मार्गदर्शन में 100 मीटर और 200 मीटर में चुनौती पेश करने वाली रेवती को गलीना बुखारिना ने 400 मीटर में हिस्सा लेने को कहा. बुखारिना राष्ट्रीय शिविर में 400 मीटर की कोच थीं. उन्होंने कहा कि गलीना मैडम ने मुझे 400 मीटर में दौड़ने को कहा और कन्नन सर भी राजी हो गए.

मुझे खुशी है कि मैंने 400 मीटर में हिस्सा लिया और मैं अब अपने पहले ओलंपिक में जा रही हूं. कन्नन सर ने मुझे कहा था कि एक दिन मैं ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करूंगी और चीजें काफी तेजी से हुई. यह सपना साकार होने की तरह है, लेकिन मैंने इसके इतनी जल्दी सच होने की उम्मीद नहीं की थी. मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी और मैं यही आश्वासन दे सकती हूं.

(पीटीआई-भाषा)

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