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पैसे नहीं थे तब खाना पड़ा था फेंका समोसा, आज फूड मैन बनकर गरीबों का भर रहे पेट

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 8, 2023, 10:19 PM IST

अक्सर आपने देखा होगा कि अस्पतालों के बाहर मरीज के परिवार वाले जमीन पर भूखे-प्यासे पड़े रहते हैं. क्योंकि, उनका Lucknow Food Man : ज्यादातर पैसा इलाज में खर्च हो जाता है और खाने के लिए कुछ बचता नहीं है. ऐसी ही समस्या से लखनऊ के फूड मैन को भी गुजरना पड़ा था. तब उन्होंने संकल्प लिया कि अस्पताल के बाहर अब कोई भूखा नहीं रहेगा. इस पर उन्होंने गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की एक मुहिम शुरू की. देखिए, लखनऊ के फूड मैन पर ईटीवी भारत के उत्तर प्रदेश ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी की रिपोर्ट.

Lucknow Food Man
Lucknow Food Man
लखनऊ के फूड मैन की मुहिम ला रही रंग.

लखनऊ : 'आइए मजहब कोई ऐसा चलाएं, कोई भूखा रहे तो मुझसे भी न खाया जाए.' इसी संकल्प से साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक युवा ने डेढ़ दशक पहले गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की एक मुहिम शुरू की थी, जो अब एक बड़ा अभियान बन गई है. फूड मैन के नाम से मशहूर विशाल सिंह ने मुफलिसी का वह दौर भी देखा, जब उन्हें दाने-दाने का मोहताज होना पड़ा.

पिता की अस्पताल में असमय मौत के बाद विशाल ने संकल्प लिया कि वह सरकारी अस्पतालों में आने वाले गरीब और जरूरतमंदों के लिए निशुल्क भोजन का प्रबंध करेंगे. उनकी इच्छाशक्ति और लोगों के सहयोग से यह मुहिम आगे बढ़ी और उन्होंने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया. अब वह प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोगों को भोजन कराते हैं.

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया.

विशाल ने कई रैन बसेरे भी बनवाए हैं, जहां रुकने वालों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. अब विशाल ने भूख मुक्त विश्व सेना नाम से एक मुहिम शुरू की है, जिसके तहत अगले साल उन्हें लंदन में आमंत्रित किया गया है. जहां वह इस अभियान को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाएंगे.

क्या है फूड मैन विशाल की कहानीः फूड मैन के नाम से विख्यात विशाल सिंह कहते हैं कि 2003 में उनके पिता गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे. उस वक्त उन्हें भी भूखा-प्यासा रहना पड़ा. उन्होंने यह दर्द सहा है. विशाल बताते हैं कि जब यह समस्या उनके सामने आई तो उन्हें पता चला कि अस्पताल में वह अकेले नहीं हैं, उनके जैसे कई लोग हैं, जो अपने परिवारीजनों के इलाज के लिए आए हैं और धनाभाव में भूखे रहने को मजबूर हैं.

फूड मैन को खाना पड़ा था फेंका हुआ समोसाः लोगों की सेवा और उनका पेट भरने के संकल्प का अंकुर भी इसी दौरान फूटा. बीमारी से जूझ रहे विशाल के पिता तो नहीं रहे, लेकिन उनके मन में यह संकल्प दृढ़ होता गया कि वह जब भी सक्षम होंगे तब जरूरतमंदों के लिए रसोई जरूर चलाएंगे. वह कहते हैं कि 'मैंने ऐसा दौर भी देखा है कि मुझे फेंका हुआ समोसा भी खाना पड़ा था.

फूड मैन ने बताई भूख की तड़पः विशाल बताते हैं कि जब भूख की तड़प होती है और आपके पास कुछ भी नहीं होता, तब आप जैसे और जो कुछ भी मिल जाए खाने को मजबूर हो जाते हैं. पिता के निधन के बाद विशाल लखनऊ आ गए. साइकिल स्टैंड और चाय की दुकानों पर काम करने लगे. कड़ी मेहनत के बल पर वह स्वरोजगार की दिशा में भी सक्षम हुए और उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर हुई.

फूड मैन ने कब शुरू की प्रसादम सेवाः विशाल बताते हैं कि 'हमें जब आर्थिक क्षेत्र में सफलता मिली, तो हमें लगा कि अब समय आ गया है कि अपने संकल्प को भी पूरा किया जाए. इस तरह 2007 में मैंने इस मिशन की शुरुआत की. पहले हम मेडिकल कॉलेज के बाहर जरूरतमंद लोगों को भोजन बांटा करते थे. हमारी सेवा भावना को देखते हुए चिकित्सा विश्वविद्यालय प्रशासन में 2015 में हमें न्यूरोलॉजी विभाग के सामने जगह उपलब्ध कराई और हमने यहां 'प्रसादम् सेवा' के नाम से सेवा के इस मंदिर का शुभारंभ किया.

रोजगार छोड़कर सेवा को बनाया जीवन का संकल्पः विशाल ने बताया कि मैंने रोजगार छोड़कर सेवा को ही अपने जीवन का संकल्प बनाने का निश्चय किया, तो सबसे पहले हमारे परिवार के लोगों ने ही विरोध शुरू कर दिया. मुझे पागल कहा गया.' अपने संघर्ष की कहानी बताते हुए विशाल कई बार भावुक हुए. वह कहते हैं कि जब आपके किसी काम के विरोधी होते हैं, तो कई समर्थन करने वाले भी मिल जाते हैं. वह कहते हैं कि हमारी सेवा भावना को देखते हुए चिकित्सा विश्वविद्यालय के वीसी और मेरे बड़े भाई जैसे राजीव सिंह ने इस लक्ष्य को पाने में मेरी पूरी मदद की. धीरे-धीरे यह सेवा का मंदिर फलता-फूलता गया.

गरीबों के साथ जन्मदिन मनाने भी आते हैं लोगः विशाल सिंह कहते हैं 'जब आप सेवा के मार्ग में जाते हैं, तो आपके पास कितना ही धन क्यों न हो, वह छोटी राशि ही रहती है. जब पैसे कम पड़ने लगे, तो हमने लोगों से आह्वान किया कि वह यहां आकर अपना जन्मदिन मनाएं और गरीबों को भोजन कराने में हमारे सहयोगी बनें. धीरे-धीरे लोग हमसे जुड़ने लगे. कोई जन्मदिन मनाने के बहाने आता, तो कोई विवाह की वर्षगांठ की खुशियां लोगों से साझा करता.

कई अस्पतालों में शुरू हुई प्रसादम सेवाः अब स्थिति यह है कि यह मिशन मैं नहीं, बल्कि समाज चला रहा है. कई बार हमारे पास अगले दिन के लिए राशन की व्यवस्था नहीं होती है. ऐसी स्थिति में मैं मां अन्नपूर्णा के आगे प्रार्थना करता हूं और लोग भगवान का रूप धरकर हमारे पास आते हैं और भोजन की व्यवस्था हो जाती है. इसी तरह से यह मुहिम आगे बढ़ रही है. अब मुझे और अस्पतालों में बुलाया जाता है. अब हम केजीएमयू, बलरामपुर अस्पताल और लोहिया अस्पताल में गरीब और जरूरतमंद लोगों का पेट भरने का काम करते हैं. हम रोज एक हजार से भी ज्यादा लोगों को भोजन कराते हैं.

अब विश्व को भूख मुक्त बनाने की शुरू की मुहिमः फूड मैन विशाल सिंह कहते हैं 'प्रसादम् सेवा का विस्तार करते हुए हमने हंगर फ्री वर्ल्ड या भूख मुक्त विश्व की मुहिम शुरू की है. हंगर इंडेक्स में हमारा देश लगातार गिर रहा है. इसे लेकर मैंने लोगों से निवेदन किया कि क्या हम भारत के साथ-साथ पूरे विश्व को भूख मुक्त बना सकते हैं. मैं ज्योतिष का विद्यार्थी भी हूं और हिंदू ग्रंथों में लिखा है कि अन्न दान से बड़ा कोई दान नहीं है. मृत्यु पर जय पाने वाला यदि कोई दान है, तो वह अन्न दान है. हम नर में नारायण का विचार मानते हैं. यह नारायण अस्पतालों में अपनों का इलाज कराने आते हैं और खुद कष्ट सहते हैं.

प्रतिदिन एक थाल भोजन लोगों से निकालने की अपीलः मैंने लोगों से आग्रह किया है कि वह अपने परिवार से यदि प्रतिदिन एक भोजन थाल का अनाज निकाल दें, तो दुनिया में कोई भी भूखा नहीं रह जाएगा. यदि एक परिवार तीस दिन रोज एक थाल राशन का बचाता है, तो महीने में वह डेढ़ हजार रुपये के राशन का प्रबंध करता है. यदि लोग प्रतिमाह इतना राशन गरीबों के लिए देने लग जाएं, तो कोई भूखा नहीं रह जाएगा.

कोविड के दौर में अपनी मां को खोने वाले और खुद कोरोना वायरस से पीड़ित होने पर भी विशाल सिंह ने एक पल के लिए भी सेवा भाव नहीं छोड़ा. वह बताते हैं 'बहुत मुश्किल दौर था वह. हमें लगा कि यदि हम जैसे लोग भी आगे नहीं आएंगे, तो असहाय और गरीबों का क्या होगा? यही सोचकर सबसे पहले हम लोगों ने प्रवासी मजदूरों की सेवा शुरू की. कानपुर के तत्कालीन कमिश्नर राजशेखर की पहल पर हमने रोडवेज के सहयोग से एक बड़ा सेवा का आयाम स्थापित किया. राहत और आपदा आयोग के लोगों का भी मेरे पास फोन आया. हम लोगों ने उन्हें भी साढ़े सात लाख भोजन के पैकेट उपलब्ध कराए. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने भी बहुत सहयोग किया. हमने प्रदेश सरकार की ओर से डीआरडीओ और हज हाउस के कोविड सेंटर्स की जिम्मेदारी भी संभाली. वहां हजारों लोगों को भोजन कराया. लोगों की सेवा भी हमारी ऊर्जा का स्रोत बनती है.'

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है प्रसादम् सेवा केंद्रः विशाल सिंह कहते हैं 'आप देख सकते हैं कि एक ही छत के नीचे हर धर्म और जाति के लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं. यहां सभी लोग आकर प्रेम से एक-दूसरे के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं. हमारी विजय श्री फाउंडेशन का प्रयास है कि हम ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों की मदद कर पाएं. दूसरों को भोजन कराना पुण्य की फिक्स डिपॉजिट कराने जैसा है. यदि कुछ लोग थोड़ा सा राशन पहुंचाकर गरीबों की सेवा की इस मुहिम से जुड़ना चाहते हैं, तो हम उनका तहे दिल से स्वागत करेंगे. राशन की यह मदद ऑनलाइन भी की जा सकती है. यहां आप अपने परिवार और बच्चों के नाम से भोजन भी करा सकते हैं. यकीन मानिए पुण्य का यह फिक्स डिपॉजिट जन्म जन्मांतर तक हमारे काम आएगा.' विशाल बताते हैं कि वह 'भूख मुक्त विश्व सेना के नाम से हमने एक अभियान शुरू किया है. अगले साल हमें लंदन में बुलाया जा रहा है, जहां कई देशों के प्रतिनिधि हमारे बैनर तले बैठेंगे, जहां हम विश्व को भूख मुक्त करने का संकल्प लेंगे.'

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लखनऊ के फूड मैन की मुहिम ला रही रंग.

लखनऊ : 'आइए मजहब कोई ऐसा चलाएं, कोई भूखा रहे तो मुझसे भी न खाया जाए.' इसी संकल्प से साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक युवा ने डेढ़ दशक पहले गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की एक मुहिम शुरू की थी, जो अब एक बड़ा अभियान बन गई है. फूड मैन के नाम से मशहूर विशाल सिंह ने मुफलिसी का वह दौर भी देखा, जब उन्हें दाने-दाने का मोहताज होना पड़ा.

पिता की अस्पताल में असमय मौत के बाद विशाल ने संकल्प लिया कि वह सरकारी अस्पतालों में आने वाले गरीब और जरूरतमंदों के लिए निशुल्क भोजन का प्रबंध करेंगे. उनकी इच्छाशक्ति और लोगों के सहयोग से यह मुहिम आगे बढ़ी और उन्होंने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया. अब वह प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोगों को भोजन कराते हैं.

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से 'प्रसादम् सेवा' का शुभारंभ किया.

विशाल ने कई रैन बसेरे भी बनवाए हैं, जहां रुकने वालों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. अब विशाल ने भूख मुक्त विश्व सेना नाम से एक मुहिम शुरू की है, जिसके तहत अगले साल उन्हें लंदन में आमंत्रित किया गया है. जहां वह इस अभियान को आगे बढ़ाने की रणनीति बनाएंगे.

क्या है फूड मैन विशाल की कहानीः फूड मैन के नाम से विख्यात विशाल सिंह कहते हैं कि 2003 में उनके पिता गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती थे. उस वक्त उन्हें भी भूखा-प्यासा रहना पड़ा. उन्होंने यह दर्द सहा है. विशाल बताते हैं कि जब यह समस्या उनके सामने आई तो उन्हें पता चला कि अस्पताल में वह अकेले नहीं हैं, उनके जैसे कई लोग हैं, जो अपने परिवारीजनों के इलाज के लिए आए हैं और धनाभाव में भूखे रहने को मजबूर हैं.

फूड मैन को खाना पड़ा था फेंका हुआ समोसाः लोगों की सेवा और उनका पेट भरने के संकल्प का अंकुर भी इसी दौरान फूटा. बीमारी से जूझ रहे विशाल के पिता तो नहीं रहे, लेकिन उनके मन में यह संकल्प दृढ़ होता गया कि वह जब भी सक्षम होंगे तब जरूरतमंदों के लिए रसोई जरूर चलाएंगे. वह कहते हैं कि 'मैंने ऐसा दौर भी देखा है कि मुझे फेंका हुआ समोसा भी खाना पड़ा था.

फूड मैन ने बताई भूख की तड़पः विशाल बताते हैं कि जब भूख की तड़प होती है और आपके पास कुछ भी नहीं होता, तब आप जैसे और जो कुछ भी मिल जाए खाने को मजबूर हो जाते हैं. पिता के निधन के बाद विशाल लखनऊ आ गए. साइकिल स्टैंड और चाय की दुकानों पर काम करने लगे. कड़ी मेहनत के बल पर वह स्वरोजगार की दिशा में भी सक्षम हुए और उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर हुई.

फूड मैन ने कब शुरू की प्रसादम सेवाः विशाल बताते हैं कि 'हमें जब आर्थिक क्षेत्र में सफलता मिली, तो हमें लगा कि अब समय आ गया है कि अपने संकल्प को भी पूरा किया जाए. इस तरह 2007 में मैंने इस मिशन की शुरुआत की. पहले हम मेडिकल कॉलेज के बाहर जरूरतमंद लोगों को भोजन बांटा करते थे. हमारी सेवा भावना को देखते हुए चिकित्सा विश्वविद्यालय प्रशासन में 2015 में हमें न्यूरोलॉजी विभाग के सामने जगह उपलब्ध कराई और हमने यहां 'प्रसादम् सेवा' के नाम से सेवा के इस मंदिर का शुभारंभ किया.

रोजगार छोड़कर सेवा को बनाया जीवन का संकल्पः विशाल ने बताया कि मैंने रोजगार छोड़कर सेवा को ही अपने जीवन का संकल्प बनाने का निश्चय किया, तो सबसे पहले हमारे परिवार के लोगों ने ही विरोध शुरू कर दिया. मुझे पागल कहा गया.' अपने संघर्ष की कहानी बताते हुए विशाल कई बार भावुक हुए. वह कहते हैं कि जब आपके किसी काम के विरोधी होते हैं, तो कई समर्थन करने वाले भी मिल जाते हैं. वह कहते हैं कि हमारी सेवा भावना को देखते हुए चिकित्सा विश्वविद्यालय के वीसी और मेरे बड़े भाई जैसे राजीव सिंह ने इस लक्ष्य को पाने में मेरी पूरी मदद की. धीरे-धीरे यह सेवा का मंदिर फलता-फूलता गया.

गरीबों के साथ जन्मदिन मनाने भी आते हैं लोगः विशाल सिंह कहते हैं 'जब आप सेवा के मार्ग में जाते हैं, तो आपके पास कितना ही धन क्यों न हो, वह छोटी राशि ही रहती है. जब पैसे कम पड़ने लगे, तो हमने लोगों से आह्वान किया कि वह यहां आकर अपना जन्मदिन मनाएं और गरीबों को भोजन कराने में हमारे सहयोगी बनें. धीरे-धीरे लोग हमसे जुड़ने लगे. कोई जन्मदिन मनाने के बहाने आता, तो कोई विवाह की वर्षगांठ की खुशियां लोगों से साझा करता.

कई अस्पतालों में शुरू हुई प्रसादम सेवाः अब स्थिति यह है कि यह मिशन मैं नहीं, बल्कि समाज चला रहा है. कई बार हमारे पास अगले दिन के लिए राशन की व्यवस्था नहीं होती है. ऐसी स्थिति में मैं मां अन्नपूर्णा के आगे प्रार्थना करता हूं और लोग भगवान का रूप धरकर हमारे पास आते हैं और भोजन की व्यवस्था हो जाती है. इसी तरह से यह मुहिम आगे बढ़ रही है. अब मुझे और अस्पतालों में बुलाया जाता है. अब हम केजीएमयू, बलरामपुर अस्पताल और लोहिया अस्पताल में गरीब और जरूरतमंद लोगों का पेट भरने का काम करते हैं. हम रोज एक हजार से भी ज्यादा लोगों को भोजन कराते हैं.

अब विश्व को भूख मुक्त बनाने की शुरू की मुहिमः फूड मैन विशाल सिंह कहते हैं 'प्रसादम् सेवा का विस्तार करते हुए हमने हंगर फ्री वर्ल्ड या भूख मुक्त विश्व की मुहिम शुरू की है. हंगर इंडेक्स में हमारा देश लगातार गिर रहा है. इसे लेकर मैंने लोगों से निवेदन किया कि क्या हम भारत के साथ-साथ पूरे विश्व को भूख मुक्त बना सकते हैं. मैं ज्योतिष का विद्यार्थी भी हूं और हिंदू ग्रंथों में लिखा है कि अन्न दान से बड़ा कोई दान नहीं है. मृत्यु पर जय पाने वाला यदि कोई दान है, तो वह अन्न दान है. हम नर में नारायण का विचार मानते हैं. यह नारायण अस्पतालों में अपनों का इलाज कराने आते हैं और खुद कष्ट सहते हैं.

प्रतिदिन एक थाल भोजन लोगों से निकालने की अपीलः मैंने लोगों से आग्रह किया है कि वह अपने परिवार से यदि प्रतिदिन एक भोजन थाल का अनाज निकाल दें, तो दुनिया में कोई भी भूखा नहीं रह जाएगा. यदि एक परिवार तीस दिन रोज एक थाल राशन का बचाता है, तो महीने में वह डेढ़ हजार रुपये के राशन का प्रबंध करता है. यदि लोग प्रतिमाह इतना राशन गरीबों के लिए देने लग जाएं, तो कोई भूखा नहीं रह जाएगा.

कोविड के दौर में अपनी मां को खोने वाले और खुद कोरोना वायरस से पीड़ित होने पर भी विशाल सिंह ने एक पल के लिए भी सेवा भाव नहीं छोड़ा. वह बताते हैं 'बहुत मुश्किल दौर था वह. हमें लगा कि यदि हम जैसे लोग भी आगे नहीं आएंगे, तो असहाय और गरीबों का क्या होगा? यही सोचकर सबसे पहले हम लोगों ने प्रवासी मजदूरों की सेवा शुरू की. कानपुर के तत्कालीन कमिश्नर राजशेखर की पहल पर हमने रोडवेज के सहयोग से एक बड़ा सेवा का आयाम स्थापित किया. राहत और आपदा आयोग के लोगों का भी मेरे पास फोन आया. हम लोगों ने उन्हें भी साढ़े सात लाख भोजन के पैकेट उपलब्ध कराए. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने भी बहुत सहयोग किया. हमने प्रदेश सरकार की ओर से डीआरडीओ और हज हाउस के कोविड सेंटर्स की जिम्मेदारी भी संभाली. वहां हजारों लोगों को भोजन कराया. लोगों की सेवा भी हमारी ऊर्जा का स्रोत बनती है.'

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है प्रसादम् सेवा केंद्रः विशाल सिंह कहते हैं 'आप देख सकते हैं कि एक ही छत के नीचे हर धर्म और जाति के लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं. यहां सभी लोग आकर प्रेम से एक-दूसरे के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं. हमारी विजय श्री फाउंडेशन का प्रयास है कि हम ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों की मदद कर पाएं. दूसरों को भोजन कराना पुण्य की फिक्स डिपॉजिट कराने जैसा है. यदि कुछ लोग थोड़ा सा राशन पहुंचाकर गरीबों की सेवा की इस मुहिम से जुड़ना चाहते हैं, तो हम उनका तहे दिल से स्वागत करेंगे. राशन की यह मदद ऑनलाइन भी की जा सकती है. यहां आप अपने परिवार और बच्चों के नाम से भोजन भी करा सकते हैं. यकीन मानिए पुण्य का यह फिक्स डिपॉजिट जन्म जन्मांतर तक हमारे काम आएगा.' विशाल बताते हैं कि वह 'भूख मुक्त विश्व सेना के नाम से हमने एक अभियान शुरू किया है. अगले साल हमें लंदन में बुलाया जा रहा है, जहां कई देशों के प्रतिनिधि हमारे बैनर तले बैठेंगे, जहां हम विश्व को भूख मुक्त करने का संकल्प लेंगे.'

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