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SC On Media Briefing : SC ने गृह मंत्रालय को पुलिसकर्मियों की मीडिया ब्रीफिंग पर व्यापक मैनुअल तैयार करने का दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गृह मंत्रालय को पुलिसकर्मियों की मीडिया ब्रीफिंग पर व्यापक मैनुअल तैयार करने का दिया निर्देश है. उक्त निर्देश भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायाधीशों ने पीठ ने दिए. अमित सक्सेना की रिपोर्ट...

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 13, 2023, 4:36 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय को मीडिया ब्रीफिंग में खुलासे की प्रकृति के संबंध में तीन महीने में एक व्यापक नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया है. साथ ही सभी पुलिस महानिदेशक (DGP) को अपने सुझाव गृह मंत्रालय को बताने का भी निर्देश दिया है. इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है.

पीठ ने पुलिस अधिकारियों की संवेदनशीलता पर जोर देने के साथ ही कहा कि जांच के विवरण किस स्तर पर सामने आ सकते हैं, इसकी जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पुलिस द्वारा किया गया खुलासा वस्तुनिष्ठ प्रकृति का होना चाहिए न कि व्यक्तिपरक प्रकृति का जिसका आरोपी के अपराध पर असर हो. पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल एक अहम मुद्दा है क्योंकि इसमें पीड़ितों के हित के अलावा मामले में एकक्ष किए गए सबूत शामिल होते हैं.

वहीं आरोपी के संबंध में भी निर्दोषता का अनुमान लगाया जाता है कि जब तक कि वह दोषी साबित नहीं हो जाए, मीडिया रिपोर्ट से आरोपी की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग भी सार्वजनिक संदेह को जन्म देती है और कुछ मामलों में पीड़िता नाबालिग हो सकती है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि पीड़िता की गोपनीयता प्रभावित नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों और पीड़ितों के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक महत्वपूर्ण पहलू मीडिया ब्रीफिंग के लिए पुलिस कर्मियों द्वारा अपनाई जाने वाली औचित्य और प्रक्रिया भी है. कोर्ट ने कहा कि अपराधों से जुड़े मामलों पर मीडिया रिपोर्टिंग में सार्वजनिक हित के कई पहलू शामिल होते हैं और बुनियादी स्तर पर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार सीधे तौर पर शामिल होता है. इसमें मीडिया के विचारों को चित्रित करने और प्रसारित करने का अधिकार भी शामिल है.

इसके अलावा जहां किसी कथित अपराध के लिए आपराधिक जांच चल रही हो वहां मीडिया ब्रीफिंग आयोजित करने में पुलिस द्वारा तौर-तरीकों का पालन किया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने गृह मंत्रालय के लिए मुद्दों को चिह्नित करते हुए कहा कि इसके अलावा जहां किसी कथित अपराध के लिए आपराधिक जांच चल रही हो वहां मीडिया ब्रीफिंग आयोजित करने में पुलिस द्वारा तौर-तरीकों का पालन किया जाना चाहिए. इस मामले में कोर्ट को सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को भी पक्षकार बनाया गया है. शीर्ष अदालत का यह आदेश एनजीओ, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की अगुवाई वाली याचिकाओं पर आया है. वहीं पीयूसीएल ने आपराधिक मामलों की मीडिया कवरेज के लिए दिशानिर्देश मांगे हैं. मामले में न्याय मित्र गोपाल शंकरनारायण अदालत की सहायता कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें - सपा विधायक इरफान सोलंकी को सुप्रीम कोर्ट से लगा तगड़ा झटका, जमानत याचिका खारिज

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय को मीडिया ब्रीफिंग में खुलासे की प्रकृति के संबंध में तीन महीने में एक व्यापक नियमावली तैयार करने का निर्देश दिया है. साथ ही सभी पुलिस महानिदेशक (DGP) को अपने सुझाव गृह मंत्रालय को बताने का भी निर्देश दिया है. इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है.

पीठ ने पुलिस अधिकारियों की संवेदनशीलता पर जोर देने के साथ ही कहा कि जांच के विवरण किस स्तर पर सामने आ सकते हैं, इसकी जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया ब्रीफिंग के दौरान पुलिस द्वारा किया गया खुलासा वस्तुनिष्ठ प्रकृति का होना चाहिए न कि व्यक्तिपरक प्रकृति का जिसका आरोपी के अपराध पर असर हो. पीठ ने कहा कि मीडिया ट्रायल एक अहम मुद्दा है क्योंकि इसमें पीड़ितों के हित के अलावा मामले में एकक्ष किए गए सबूत शामिल होते हैं.

वहीं आरोपी के संबंध में भी निर्दोषता का अनुमान लगाया जाता है कि जब तक कि वह दोषी साबित नहीं हो जाए, मीडिया रिपोर्ट से आरोपी की प्रतिष्ठा पर आंच नहीं आनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग भी सार्वजनिक संदेह को जन्म देती है और कुछ मामलों में पीड़िता नाबालिग हो सकती है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि पीड़िता की गोपनीयता प्रभावित नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों और पीड़ितों के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक महत्वपूर्ण पहलू मीडिया ब्रीफिंग के लिए पुलिस कर्मियों द्वारा अपनाई जाने वाली औचित्य और प्रक्रिया भी है. कोर्ट ने कहा कि अपराधों से जुड़े मामलों पर मीडिया रिपोर्टिंग में सार्वजनिक हित के कई पहलू शामिल होते हैं और बुनियादी स्तर पर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार सीधे तौर पर शामिल होता है. इसमें मीडिया के विचारों को चित्रित करने और प्रसारित करने का अधिकार भी शामिल है.

इसके अलावा जहां किसी कथित अपराध के लिए आपराधिक जांच चल रही हो वहां मीडिया ब्रीफिंग आयोजित करने में पुलिस द्वारा तौर-तरीकों का पालन किया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने गृह मंत्रालय के लिए मुद्दों को चिह्नित करते हुए कहा कि इसके अलावा जहां किसी कथित अपराध के लिए आपराधिक जांच चल रही हो वहां मीडिया ब्रीफिंग आयोजित करने में पुलिस द्वारा तौर-तरीकों का पालन किया जाना चाहिए. इस मामले में कोर्ट को सहायता प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को भी पक्षकार बनाया गया है. शीर्ष अदालत का यह आदेश एनजीओ, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की अगुवाई वाली याचिकाओं पर आया है. वहीं पीयूसीएल ने आपराधिक मामलों की मीडिया कवरेज के लिए दिशानिर्देश मांगे हैं. मामले में न्याय मित्र गोपाल शंकरनारायण अदालत की सहायता कर रहे हैं.

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