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कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर बनाने की कवायद तेज, विदेश मंत्रालय करेगा पैरवी

भारत, चीन और नेपाल के संयुक्त 31 हजार 252 वर्ग किलोमीटर वाले कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर बनाने की कोशिश तेज हो गई है. भारत का 7120 वर्ग किलोमीटर हिस्सा भी इस क्षेत्र में शामिल है. कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर में शामिल करने के लिए विदेश मंत्रालय चीन और नेपाल के साथ इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो गया है.

World Heritage status for Mount Kailash
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Published : Apr 21, 2021, 8:39 AM IST

पिथौरागढ़ : कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर बनाने की कवायद फिर से तेज हो गई है. भारतीय वन्यजीव संस्थान की पहल पर विदेश मंत्रालय अब इसके लिए पैरवी करेगा. भारत के साथ ही चीन और नेपाल की इस साझा विरासत को वैश्विक पटल पर संरक्षण प्रदान करने के लिए विदेश मंत्रालय ने अपनी सहमति दे दी है.

गौरतलब है कि पिछले दो साल से यूनेस्को कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने का प्रयास कर रहा है. लेकिन भारत, चीन और नेपाल में सीमा विवाद के चलते ये मामला ठंडे बस्ते में जाता दिखाई दे रहा था. मगर विदेश मंत्रालय तीनों देशों की इस साझा विरासत को विश्व धरोहर बनाने की मुहिम में जुट गया है. इससे उम्मीद जताई जा रही है कि भारत-चीन और नेपाल के सांस्कृतिक रिश्तों के साथ ही राजनीतिक रिश्तों में भी मजबूती आएगी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

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जानकारी के मुताबिक भारत की तर्ज पर ही चीन और नेपाल अपने स्तर पर पवित्र कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं. अगर विदेश मंत्रालय की मुहिम रंग लाती है, तो पर्यावरणीय नजरिए से इस अतिसंवेदनशील क्षेत्र के संरक्षण में मदद मिल सकती है. साथ ही उत्तराखंड के चीन और नेपाल बॉर्डर से सटे इलाकों में पर्यटन की संभावनाएं भी बढ़ सकती है.

पवित्र कैलाश भूक्षेत्र में भारतीय हिस्से में प्रसिद्ध ॐ पर्वत, कैलाश पर्वत, पार्वती ताल और व्यास गुफा भी है. कैलाश भू क्षेत्र के विश्व धरोहर घोषित होने के बाद बॉर्डर इलाकों में भी विकास होगा. भारतीय वन्यजीव संस्थान और विदेश मंत्रालय की इस पहल से बॉर्डर के लोग काफी खुश हैं. सीमांत क्षेत्रवासियों ने बॉर्डर इलाकों में संचार सेवा के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को दुरस्त करने की भी केंद्र सरकार से गुहार लगाई है.

पिथौरागढ़ : कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर बनाने की कवायद फिर से तेज हो गई है. भारतीय वन्यजीव संस्थान की पहल पर विदेश मंत्रालय अब इसके लिए पैरवी करेगा. भारत के साथ ही चीन और नेपाल की इस साझा विरासत को वैश्विक पटल पर संरक्षण प्रदान करने के लिए विदेश मंत्रालय ने अपनी सहमति दे दी है.

गौरतलब है कि पिछले दो साल से यूनेस्को कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने का प्रयास कर रहा है. लेकिन भारत, चीन और नेपाल में सीमा विवाद के चलते ये मामला ठंडे बस्ते में जाता दिखाई दे रहा था. मगर विदेश मंत्रालय तीनों देशों की इस साझा विरासत को विश्व धरोहर बनाने की मुहिम में जुट गया है. इससे उम्मीद जताई जा रही है कि भारत-चीन और नेपाल के सांस्कृतिक रिश्तों के साथ ही राजनीतिक रिश्तों में भी मजबूती आएगी.

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जानकारी के मुताबिक भारत की तर्ज पर ही चीन और नेपाल अपने स्तर पर पवित्र कैलाश भू क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं. अगर विदेश मंत्रालय की मुहिम रंग लाती है, तो पर्यावरणीय नजरिए से इस अतिसंवेदनशील क्षेत्र के संरक्षण में मदद मिल सकती है. साथ ही उत्तराखंड के चीन और नेपाल बॉर्डर से सटे इलाकों में पर्यटन की संभावनाएं भी बढ़ सकती है.

पवित्र कैलाश भूक्षेत्र में भारतीय हिस्से में प्रसिद्ध ॐ पर्वत, कैलाश पर्वत, पार्वती ताल और व्यास गुफा भी है. कैलाश भू क्षेत्र के विश्व धरोहर घोषित होने के बाद बॉर्डर इलाकों में भी विकास होगा. भारतीय वन्यजीव संस्थान और विदेश मंत्रालय की इस पहल से बॉर्डर के लोग काफी खुश हैं. सीमांत क्षेत्रवासियों ने बॉर्डर इलाकों में संचार सेवा के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को दुरस्त करने की भी केंद्र सरकार से गुहार लगाई है.

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