अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court ) ने मंगलवार को कहा कि अब इस पर विचार करने का समय आ गया है कि क्या वैवाहिक बलात्कार(marital rape ) को दी गई छूट 'स्पष्टत: मनमानी' है और उसने इस प्रकार की छूट की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य एवं केंद्र सरकारों को नोटिस(Notice to state and central governments on public interest litigation ) जारी किए.
अदालत ने इस नोटिस का जवाब 19 जनवरी तक देने को कहा है. उसने कहा, 'अब समय आ गया है कि कोई रिट अदालत इस बात पर विचार करने की कवायद करे कि क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद -दो को स्पष्ट रूप से मनमाना करार दिया जा सकता है और क्या यह एक महिला के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की मर्जी के अधीन बनाता है.'
भारतीय दंड संहता की धारा 375(Section 375 of the Indian Penal Code ) (बलात्कार) के अपवाद -दो में प्रावधान है कि एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ बनाए गए शारीरिक संबंध 'बलात्कार' नहीं हैं, भले ही उसने इसके लिए अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना मजबूर किया हो. नतीजतन, पति को बलात्कार के लिए दंडित नहीं किया जा सकता.
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याचिकाकर्ता जयदीप वर्मा (Petitioner Jaideep Verma ) ने इसकी संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी कि यह 'मनमाना, अनुचित, असंवैधानिक, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन, भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों का उल्लंघन और संवैधानिक नैतिकता एवं सिद्धांतों का उल्लंघन' है.
उन्होंने तर्क दिया कि यह अपवाद एक महिला को जबरन शारीरिक संबंध बनाने के खिलाफ कानून द्वारा दी गई सुरक्षा को वापस ले लेता है. याचिका में कहा गया है, 'अपवाद-दो महिला के यौन स्वायत्तता के मौलिक अधिकार को उसके पति की मर्जी के अधीन बना देता है.'
(पीटीआई-भाषा)