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आस्था या अंधविश्वास : जमशेदपुर में महिलाएं अंगारों पर चलकर, कोड़े खाकर करती हैं मां मंगला की पूजा - कोड़े खाकर करती हैं

जमशेदपुर में हर साल मां मंगला की पूजा की जाती है. पूजा स्थल से कुछ दूरी पर एक गहरा गड्ढा किया जाता है, जिसमें कोयले को जलाकर रखा जाता है. इस दौरान महिलाओं को मां मंगला को मूर्ति तक पहुंचने से पहले उस आग पर चलकर गुजरना पड़ता है.

जमशेदपुर
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Published : Apr 22, 2021, 3:18 PM IST

जमशेदपुर: आधुनिकता व विज्ञान के इस दौर में भी समाज में आज भी कई ऐसी परम्पराएं हैं, जिस पर आस्था के लिए लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं. कुछ ऐसा ही मंजर देश की प्रमुख औद्योगिक नगरी जमशेदपुर में मां मंगला की पूजा के दौरान देखने को मिला. यहां पर पूजा के दौरान भक्त न केवल आग पर नंगे पांव चलते हैं बल्कि कोड़े खाकर पूजा में शामिल होते हैं. इस पूजा में किन्नर भी शामिल होते हैं. पूजा करने वाले मुख्य पुजारी का कहना है कि सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्त को मां कष्ट सहने की शक्ति देती हैं.

एक रिपोर्ट

जमशेदपुर में प्रतिवर्ष मां मंगला की पूजा की जाती है. मूर्ति स्थापित कर पूजा करने वाली महिलाएं नदी से कलश में जल भरकर अपने सिर पर लेकर नृत्य करते हुए पूजा स्थल पहुंचती हैं. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह सिर पर कलश लेकर आती महिलाओं का भक्त स्वागत करते हैं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं.

पूजा स्थल से कुछ दूरी पर 10 फीट लंबा व 1 फीट चौड़ा गड्ढा किया जाता है, जिसमें लकड़ी के कोयले को जलाकर रखा जाता है. फिर सिर पर कलश लेकर आने वाली महिलाओं को मां मंगला की मूर्ति तक पहुंचने से पहले उस आग पर से गुजरना पड़ता है.

सिर पर कलश लेकर झूमती हैं महिलाएं

मां मंगला की पूजा करने वाले भक्तों में एक किन्नर अपनी जीभ में चांदी का त्रिशूल आर पार करके सबसे आगे चलता है, जबकि आस-पास चलने वालों की आंखे बिना पलक झपकाए खुली रहती हैं. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में सिर पर कलश लिए महिलाएं झूमती हुईं बेखौफ आग से गुजरती हैं. इस पूजा में किन्नरों भी सिर पर जल भरे कलश को लेकर आग पर चलकर आगे बढ़ते हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर सभी महिलाएं मां मंगला की मूर्ति की परिक्रमा कर अपने-अपने कलश को पूजा स्थल पर रखती हैं.

महिलाओं पर बरसाए जाते हैं कोड़े

कुछ महिलाएं जब पूजा स्थल के पास पहुंचती है तो उनके दोनों हाथों और पैरों पर कोड़े बरसाए जाते हैं, जो काफी दर्दनाक होता है. हालांकि कोड़े खाने के दौरान महिलाएं उफ तक नहीं करतीं, जबकि कोड़े मारने वाला कोड़े मारने के बाद उस महिला के पैर छूकर प्रणाम करता है. इस दौरान महिला भक्त झूमती रहती हैं. इसके बाद महिलाओं पर पानी डाला जाता है जिससे उनका झूमना बंद होता है.

पढ़ें - दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का चुनाव स्थगित, एलजी ने दी सहमति

जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता

पूजा करने वाले मुख्य पुजारी संदीप बताते हैं कि यह वर्षों पुरानी परंपरा है. चैत माह में मां मंगला की पूजा में जंगल के जितने भी फल फूल होते हैं उन्हें चढ़ाया जाता है. पुजारी बताते हैं कि जो भी बड़ा कष्ट आने वाला होता है उसे दूर करने के लिए जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता है. इसे कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता.

जिस भक्त पर मां सवार होती हैं उसकी जीभ में त्रिशूल में गाड़ा जाता है जिस पर कोई जख्म या दर्द नहीं होता. मां मंगला को सती की देवी भी कहते हैं, जिन्हें आग पसंद है. इसलिए आग पर चलने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और पैर जख्मी नहीं होता. लोगों का ऐसा मानना कि कोड़ा खाने से जादू टोना सब दूर हो जाता है.

किन्नरों की कुल देवी हैं मां मंगला

सोनी किन्नर बताती हैं कि जीभ में त्रिशूल गाड़ने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. सब मां की कृपा रहती है. पूर्व में किन्नरों की ओर से मां बहुचरा की पूजा की जाती थी, जो उनकी कुल देवी हैं. उन्हें अब मां मंगला के नाम से पूजा जाता है. इस बार पूजा में मां से यही मांगा है कि कोरोना काल जल्द से जल्द खत्म हो सभी सुरक्षित रहें. वे बताती हैं कि इस पूजा को पूरे चैत माह में किया जाता है.

जमशेदपुर: आधुनिकता व विज्ञान के इस दौर में भी समाज में आज भी कई ऐसी परम्पराएं हैं, जिस पर आस्था के लिए लोग अपनी जान जोखिम में डालते हैं. कुछ ऐसा ही मंजर देश की प्रमुख औद्योगिक नगरी जमशेदपुर में मां मंगला की पूजा के दौरान देखने को मिला. यहां पर पूजा के दौरान भक्त न केवल आग पर नंगे पांव चलते हैं बल्कि कोड़े खाकर पूजा में शामिल होते हैं. इस पूजा में किन्नर भी शामिल होते हैं. पूजा करने वाले मुख्य पुजारी का कहना है कि सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्त को मां कष्ट सहने की शक्ति देती हैं.

एक रिपोर्ट

जमशेदपुर में प्रतिवर्ष मां मंगला की पूजा की जाती है. मूर्ति स्थापित कर पूजा करने वाली महिलाएं नदी से कलश में जल भरकर अपने सिर पर लेकर नृत्य करते हुए पूजा स्थल पहुंचती हैं. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह सिर पर कलश लेकर आती महिलाओं का भक्त स्वागत करते हैं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं.

पूजा स्थल से कुछ दूरी पर 10 फीट लंबा व 1 फीट चौड़ा गड्ढा किया जाता है, जिसमें लकड़ी के कोयले को जलाकर रखा जाता है. फिर सिर पर कलश लेकर आने वाली महिलाओं को मां मंगला की मूर्ति तक पहुंचने से पहले उस आग पर से गुजरना पड़ता है.

सिर पर कलश लेकर झूमती हैं महिलाएं

मां मंगला की पूजा करने वाले भक्तों में एक किन्नर अपनी जीभ में चांदी का त्रिशूल आर पार करके सबसे आगे चलता है, जबकि आस-पास चलने वालों की आंखे बिना पलक झपकाए खुली रहती हैं. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में सिर पर कलश लिए महिलाएं झूमती हुईं बेखौफ आग से गुजरती हैं. इस पूजा में किन्नरों भी सिर पर जल भरे कलश को लेकर आग पर चलकर आगे बढ़ते हैं. ढोल नगाड़े की धुन पर सभी महिलाएं मां मंगला की मूर्ति की परिक्रमा कर अपने-अपने कलश को पूजा स्थल पर रखती हैं.

महिलाओं पर बरसाए जाते हैं कोड़े

कुछ महिलाएं जब पूजा स्थल के पास पहुंचती है तो उनके दोनों हाथों और पैरों पर कोड़े बरसाए जाते हैं, जो काफी दर्दनाक होता है. हालांकि कोड़े खाने के दौरान महिलाएं उफ तक नहीं करतीं, जबकि कोड़े मारने वाला कोड़े मारने के बाद उस महिला के पैर छूकर प्रणाम करता है. इस दौरान महिला भक्त झूमती रहती हैं. इसके बाद महिलाओं पर पानी डाला जाता है जिससे उनका झूमना बंद होता है.

पढ़ें - दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का चुनाव स्थगित, एलजी ने दी सहमति

जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता

पूजा करने वाले मुख्य पुजारी संदीप बताते हैं कि यह वर्षों पुरानी परंपरा है. चैत माह में मां मंगला की पूजा में जंगल के जितने भी फल फूल होते हैं उन्हें चढ़ाया जाता है. पुजारी बताते हैं कि जो भी बड़ा कष्ट आने वाला होता है उसे दूर करने के लिए जीभ में त्रिशूल गाड़ा जाता है. इसे कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता.

जिस भक्त पर मां सवार होती हैं उसकी जीभ में त्रिशूल में गाड़ा जाता है जिस पर कोई जख्म या दर्द नहीं होता. मां मंगला को सती की देवी भी कहते हैं, जिन्हें आग पसंद है. इसलिए आग पर चलने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और पैर जख्मी नहीं होता. लोगों का ऐसा मानना कि कोड़ा खाने से जादू टोना सब दूर हो जाता है.

किन्नरों की कुल देवी हैं मां मंगला

सोनी किन्नर बताती हैं कि जीभ में त्रिशूल गाड़ने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती. सब मां की कृपा रहती है. पूर्व में किन्नरों की ओर से मां बहुचरा की पूजा की जाती थी, जो उनकी कुल देवी हैं. उन्हें अब मां मंगला के नाम से पूजा जाता है. इस बार पूजा में मां से यही मांगा है कि कोरोना काल जल्द से जल्द खत्म हो सभी सुरक्षित रहें. वे बताती हैं कि इस पूजा को पूरे चैत माह में किया जाता है.

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