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SC on Marriage : वकीलों के चैंबर में एक-दूसरे को माला पहनाकर की जा सकती है शादी : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले को रद्द कर दिया है. साथ ही कहा कि एक-दूसरे को माला पहनाना या उंगली पर अंगूठी पहनाना वैध विवाह पूरा करने के लिए पर्याप्त है (SC on Marriage). सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

Marriage by garlanding each other
माला पहनाकर की जा सकती है शादी
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 28, 2023, 10:39 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वकील के चैंबर में उंगली में अंगूठी पहनाकर या एक-दूसरे को माला पहनाकर शादी की जा सकती है.

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कुछ अजनबियों के साथ गुप्त रूप से विवाह किया जाता है तो वह विवाह वैध नहीं होगा. उच्च न्यायालय ने वैध विवाह के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 और 7-ए के तहत आवश्यकता का हवाला दिया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि इनमें से कोई भी समारोह, अर्थात् एक-दूसरे को माला पहनाना या दूसरे की किसी भी उंगली पर अंगूठी डालना या थाली बांधना एक वैध विवाह पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा.

शीर्ष अदालत ने 5 मई, 2023 के मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील की अनुमति दी, जिसके द्वारा उन अधिवक्ताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी, जिनके सामने कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की की शादी हुई थी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जो वकील अदालत के अधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं, लेकिन मित्र/रिश्तेदार/सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अन्य क्षमताओं में कार्य कर रहे हैं, वे हिंदू विवाह अधिनियम (तमिलनाडु राज्य संशोधन अधिनियम) की धारा 7 (ए) के तहत विवाह करा सकते हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'धारा 7-ए रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की मौजूदगी में दो हिंदुओं के बीच होने वाले किसी भी विवाह पर लागू होती है. इस प्रावधान का मुख्य जोर यह है कि किसी वैध समारोह के लिए पुजारी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है.'

मामले से परिचित वकील ए वेलन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने बालकृष्ण पांडियन बनाम पुलिस अधीक्षक (2014) मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है. इस मामले में, उच्च न्यायालय ने माना कि अधिवक्ताओं द्वारा किए गए विवाह वैध नहीं हैं और सुयम्मरियाथाई विवाह (आत्म-सम्मान विवाह) को गुप्त रूप से संपन्न नहीं किया जा सकता है.

हाई कोर्ट ने 2014 के फैसले में कहा था, 'हम अपने मन में बहुत स्पष्ट हैं कि विवाह के सुयम्मरियाथाई/सेरथिरुत्था रूप के नायकों ने भी विवाह को गुप्त रूप से संपन्न करने की कल्पना नहीं की थी. उत्सव के साथ विवाह करने का मूल उद्देश्य पार्टियों की वैवाहिक स्थिति को सार्वजनिक रूप से घोषित करना है. यहां तक कि थानथाई पेरियार सार्वजनिक रूप से सुयमरियाथाई विवाह का आयोजन करते थे ताकि दुनिया जोड़ों की स्थिति को पहचान सके.'

उच्च न्यायालय ने कहा, 'इसलिए, विवाह का उत्सव विवाह के सुयम्मरियाथाई/सेरथिरुत्था रूप के विपरीत नहीं है. इसलिए, हमारी राय है कि कुछ अजनबियों के साथ गुप्त रूप से किया गया विवाह, चाहे वह सुयम्मरियाथाई रूप में हो, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 और 7-ए के तहत आवश्यक नहीं होगा.'

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वकील के चैंबर में उंगली में अंगूठी पहनाकर या एक-दूसरे को माला पहनाकर शादी की जा सकती है.

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कुछ अजनबियों के साथ गुप्त रूप से विवाह किया जाता है तो वह विवाह वैध नहीं होगा. उच्च न्यायालय ने वैध विवाह के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 और 7-ए के तहत आवश्यकता का हवाला दिया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि इनमें से कोई भी समारोह, अर्थात् एक-दूसरे को माला पहनाना या दूसरे की किसी भी उंगली पर अंगूठी डालना या थाली बांधना एक वैध विवाह पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा.

शीर्ष अदालत ने 5 मई, 2023 के मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील की अनुमति दी, जिसके द्वारा उन अधिवक्ताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी, जिनके सामने कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की की शादी हुई थी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जो वकील अदालत के अधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं, लेकिन मित्र/रिश्तेदार/सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अन्य क्षमताओं में कार्य कर रहे हैं, वे हिंदू विवाह अधिनियम (तमिलनाडु राज्य संशोधन अधिनियम) की धारा 7 (ए) के तहत विवाह करा सकते हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा, 'धारा 7-ए रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की मौजूदगी में दो हिंदुओं के बीच होने वाले किसी भी विवाह पर लागू होती है. इस प्रावधान का मुख्य जोर यह है कि किसी वैध समारोह के लिए पुजारी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है.'

मामले से परिचित वकील ए वेलन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने बालकृष्ण पांडियन बनाम पुलिस अधीक्षक (2014) मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है. इस मामले में, उच्च न्यायालय ने माना कि अधिवक्ताओं द्वारा किए गए विवाह वैध नहीं हैं और सुयम्मरियाथाई विवाह (आत्म-सम्मान विवाह) को गुप्त रूप से संपन्न नहीं किया जा सकता है.

हाई कोर्ट ने 2014 के फैसले में कहा था, 'हम अपने मन में बहुत स्पष्ट हैं कि विवाह के सुयम्मरियाथाई/सेरथिरुत्था रूप के नायकों ने भी विवाह को गुप्त रूप से संपन्न करने की कल्पना नहीं की थी. उत्सव के साथ विवाह करने का मूल उद्देश्य पार्टियों की वैवाहिक स्थिति को सार्वजनिक रूप से घोषित करना है. यहां तक कि थानथाई पेरियार सार्वजनिक रूप से सुयमरियाथाई विवाह का आयोजन करते थे ताकि दुनिया जोड़ों की स्थिति को पहचान सके.'

उच्च न्यायालय ने कहा, 'इसलिए, विवाह का उत्सव विवाह के सुयम्मरियाथाई/सेरथिरुत्था रूप के विपरीत नहीं है. इसलिए, हमारी राय है कि कुछ अजनबियों के साथ गुप्त रूप से किया गया विवाह, चाहे वह सुयम्मरियाथाई रूप में हो, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 और 7-ए के तहत आवश्यक नहीं होगा.'

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