देहरादून: पूरे देश में जहां एक तरफ हाई स्पीड 5G इंटरनेट की बात हो रही है. वहीं उत्तराखंड आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां संचार सेवा तक नहीं है, जिससे लोगों को आए दिन परेशानियों से जूझना पड़ता है. हकीकत ये है उत्तराखंड में कई क्षेत्रों में आज भी मोबाइल की घंटी नहीं बजती, लोगों को अपनों से बात करने के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है. सरकार एक तरफ लोगों को हर सुविधा मुहैया कराने का वादा और दावा करती है, लेकिन संचार विहीन गांव आइना दिखाते दिखाई देते हैं.
5G की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा: ऐसे में देहरादून इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एजेंसी (ITDA) द्वारा बीते दिन उत्तराखंड में 5G की संभावनाओं और चुनौतियों को लेकर वर्कशॉप की गयी. वहीं उत्तराखंड के डार्क विलेज जहां मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है, उनके हालात पर भी जवाब तलाशने की कोशिश हुई. देहरादून सर्वे चौक स्थित आईआरडीए सभागार में उत्तराखंड सूचना प्रौद्योगिकी विभाग यानी आईटीडीए द्वारा 5G इंटरनेट पर कैपेसिटी बिल्डिंग को लेकर एक बड़ी वर्कशॉप का आयोजन किया.
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जिसमें भारत सरकार के अधिकारियों के अलावा प्रदेश में नये इनोवेशन के साथ आईटी सेक्टर में 5G के साथ काम कर रहे स्टार्टअप व्यवसायियों को भी बुलाया गया था. इस वर्कशॉप में मल्टी जीपीएस, डेटा स्पीड, अल्ट्रा लो लेटेंसी, अधिक सुरक्षा, विशाल नेटवर्क क्षमता को बढ़ाने एवं अधिक से अधिक अधिक उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाना है.
नई तकनीक का इस्तेमाल और संभावनाएं: इस वर्कशॉप में भारत सरकार से आये अधिकारियों ने देश में इंटरनेट सेवाओं को बढ़ावा देने और 5G सेक्टर में नये आयाम स्थापित करने को लेकर ROW Policy 2022 की खूबियां बताई. वहीं उत्तराखंड राज्य इस पॉलिसी को अडॉप्ट करने वाले पहले तीन राज्यों में से एक है लिहाजा प्रदेश में 5G को लेकर युद्धस्तर पर कार्य चल रहा है.
वहीं सचिव आईटी शैलेश बगोली ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि आने वाले समय में अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड राज्य में भी 5G तकनीक का विस्तार होगा और 5G टेक्नोलॉजी को लेकर विभागीय स्तर पर छोटे-छोटे समूह बनाकर वर्कशॉप की जाएंगी, ताकि सभी विभाग इन नई तकनीक का इस्तेमाल कर अपनी सेवाओं में विस्तार गुणवत्ता को बेहतर कर पाए. 5G तकनीक के जरिए पुलिस, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि आदि क्षेत्रों में अपार संभावनाएं देखी जा रही है.
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उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थिति: वहीं इस पूरे विषय के इतर यदि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इन हिमालयी राज्य उत्तराखंड की धरातलीय हकीकत की बात की जाए तो ग्राउंड पर हालात बिल्कुल उलट हैं. उन्होंने कहा कि सर्व कराने से पता चला कि बारह सौ गांव ऐसे थे, जिनमें 4G कनेक्शन नहीं था. अफसोस की बात तो यह है कि कनेक्टिविटी से वंचित ये डार्क विलेज केवल सुदूर पर्वतीय इलाकों में ही नही राजधानी देहरादून के आस-पास के इलाकों में भी हैं. मसूरी-धनौल्टी सड़क मार्ग जहां पर्यटन सीजन में पर्यटकों का भारी दबाव होता है, यहां आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं. लेकिन मोबाइल कनेक्टिविटी ना होने की वजह से घंटों रिस्पांस को पहुंचने में लग जाते हैं.
सिग्नल ना आने से मोबाइल बने शोपीस: इस क्षेत्र में कई ऐसे गांव हैं, जहां सरकार की तमाम योजनाएं इसलिए धरातल पर नहीं उतर पा रही है. क्यों कि आज ज्यादातर योजनाओं में ऑनलाइन प्रक्रिया अनिवार्य है, कई योजनाओं में जीपीएस लोकेशन की भी अनिवार्यता है. मसूरी-धनौल्टी मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों में गूगल-पे और फोन-पे की सुविधा भी कनेक्टिविटी ना होने की वजह से ठप हैं. आईटी सचिव शैलेश बगौली ने बताया कि सरकार ने भारत नेट योजना के तहत पहले चरण का सौ फीसदी लक्ष्य पूरा कर लिया है. विभाग द्वारा जानकारी दी गई है कि उत्तराखंड के 13 जिलों के 95 ब्लॉकों में मौजूद 7789 ग्राम पंचायतों में से भारत नेट के तहत पहले चरण में 30 ब्लॉक की 1861 ग्राम पंचायतों में काम किया गया है और शेष बाकी में भी भारत नेट योजना के दूसरे चरण में प्रस्तावित है.