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Manipur Violence : मणिपुर में इंटरनेट सेवाओं पर लगा प्रतिबंध 10 जुलाई तक बढ़ाया गया - मणिपुर गृह विभाग

मणिपुर सरकार ने राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध 10 जुलाई तक बढ़ा दिया. मणिपुर गृह विभाग की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि जानमाल के नुकसान, सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान और सार्वजनिक शांति में व्यापक गड़बड़ी के आसन्न खतरे को रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

Manipur Violence
मणिपुर में इंटरनेट सेवाओं पर लगा प्रतिबंध
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Published : Jul 6, 2023, 8:29 AM IST

इंफाल : मणिपुर सरकार ने बुधवार को कहा कि उसने 'शांति और सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए' राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर रोक पांच दिन बढ़ा दी है. अब 10 जुलाई अपराह्न तीन बजे तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक रहेगी. अधिकारियों ने तीन मई को जातीय समुदायों के बीच झड़पें शुरू होने के बाद पहली बार राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाया था. इसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है.

गृह आयुक्त टी. रणजीत सिंह की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाएं भड़काने वाली तस्वीरें, नफरत भरे भाषण और वीडियो संदेश प्रसारित करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसका कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर हो सकता है. आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, यह आदेश तत्काल प्रभाव से 10 जुलाई को दोपहर 3:00 बजे तक लागू होने के समय से अगले पांच दिनों तक लागू रहेगा.

इससे पहले बुधवार को मणिपुर सरकार के शिक्षा विभाग (स्कूल) के तहत स्कूल दो महीने से अधिक समय तक बंद रहने के बाद कक्षा 1-8 के लिए फिर से खुल गए. इनमें सामान्य कक्षाएं फिर से शुरू कर दी गई हैं. सकारात्मक घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह कदम छात्रों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. लंबी गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने से छात्रों के माता-पिता और अभिभावक खुश हैं.

मणिपुर में संघर्ष के कारण कई लोगों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया, जबकि 130 से अधिक लोग मारे गए. राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में करीब 120 लोगों की जान जा चुकी है. जानकारी के मुताबिक, 3,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं.

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पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की, जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में 'जनजातीय एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया था. मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

(एजेंसियां)

इंफाल : मणिपुर सरकार ने बुधवार को कहा कि उसने 'शांति और सार्वजनिक व्यवस्था में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए' राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर रोक पांच दिन बढ़ा दी है. अब 10 जुलाई अपराह्न तीन बजे तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक रहेगी. अधिकारियों ने तीन मई को जातीय समुदायों के बीच झड़पें शुरू होने के बाद पहली बार राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाया था. इसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है.

गृह आयुक्त टी. रणजीत सिंह की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाएं भड़काने वाली तस्वीरें, नफरत भरे भाषण और वीडियो संदेश प्रसारित करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसका कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर हो सकता है. आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, यह आदेश तत्काल प्रभाव से 10 जुलाई को दोपहर 3:00 बजे तक लागू होने के समय से अगले पांच दिनों तक लागू रहेगा.

इससे पहले बुधवार को मणिपुर सरकार के शिक्षा विभाग (स्कूल) के तहत स्कूल दो महीने से अधिक समय तक बंद रहने के बाद कक्षा 1-8 के लिए फिर से खुल गए. इनमें सामान्य कक्षाएं फिर से शुरू कर दी गई हैं. सकारात्मक घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह कदम छात्रों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. लंबी गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने से छात्रों के माता-पिता और अभिभावक खुश हैं.

मणिपुर में संघर्ष के कारण कई लोगों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया, जबकि 130 से अधिक लोग मारे गए. राज्य में मेइती और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में करीब 120 लोगों की जान जा चुकी है. जानकारी के मुताबिक, 3,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं.

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पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की, जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में 'जनजातीय एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया था. मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

(एजेंसियां)

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