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खिलौनों पर क्यों जरूरी है BIS मार्क ? आपके बच्चों की सेहत से जुड़ी है बात

क्या आपके घर में कोई छोटा बच्चा है, जिसके लिए आप खिलौने ले जाते हैं. क्या आप जानते हैं कि कई खिलौने बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं. इसी वजह से सरकार ने खिलौनों के निर्माण और आयात को लेकर बीते साल एक नियम बनाया था. क्या आप उस नियम के बारे में जानते हैं ? क्या आप जानते हैं कि खिलौनों से बच्चों को क्या खतरा हो सकता है ? जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

खिलौने
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Published : Sep 16, 2021, 6:01 AM IST

हैदराबाद: खिलौने बच्चों की पहली पसंद होते हैं लेकिन ये खिलौने बच्चों के लिए हानिकारक भी साबित हो सकते हैं. खिलौने बनाने में कई तरह के खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है. ऐसे में भारत सरकार ने इसके लिए बकायदा नियम तय किए हैं. बीते साल सितंबर महीने से इसे लागू किया गया था.

खिलौनों पर BIS मार्क जरूरी

देश में सभी तरह के खिलौनों के लिए गुणवत्ता मानकों को सरकार ने बीते साल अनिवार्य कर दिया था. इसके लिए बकायादा भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने मानकों के अनुरूप खिलौने बनाने वाली कंपनियों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू की थी. जिसके बाद से खिलौनों पर BIS मार्क लगाना अनिवार्य है. बीआईएस ने खिलौने बनाने वाली कंपनियों को साधारण खिलौनों और बिजली से चलने वाले खिलौनों के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरु की थी.

विदेशी कंपनियों के लिए भी इन मानकों का पालन करना अनिवार्य है. एक सितंबर 2020 के बाद देश में आयात किए जाने वाले खिलौनों पर BIS मार्क अनिवार्य कर दिया गया था. बच्चे सुरक्षित खिलौनों से खेल सकें इसके लिए देश में भारत में BIS या ISI मार्क वाले खिलौने बनाने और बेचने का नियम तय किया था. केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के विभाग ने खिलौना निर्माताओं के लिए भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य किया है. जिसके मुताबिक 1 जनवरी 2021 से वही कंपनियां भारत में खिलौनों का निर्माण कर सकेंगी, जिनके पास BIS सर्टिफिकेट होगा. इसमें निर्माता को हर खिलौने के लिए एक अलग लाइसेंस की आवश्यकता होती है. यह प्रमाण पत्र खिलौनों के परीक्षण के बाद ही जारी किया जाता है.

खिलौनों में होता है खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल

भारत में खिलौनों का कारोबार बहुत बड़ा है. ज्यादातर खिलौने चीन, थाईलैंड और फिलीपींस से आयात होते हैं. इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन की होती है. एक अनुमान के मुताबिक देश में आयात होने वाले खिलौनों का 70 से 75 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से आता है. बीआईएस के मानक अनिवार्य होने के बाद विदेश से आयात किए जाने वाले खिलौनों को भी मानकों पर खरा उतरना होगा. 2020 से पहले खिलौनों के लिए गुणवत्ता के मानक अनिवार्य नहीं थे, ऐसे में कई कंपनियां खिलौनों में खतरनाक केमिकल्स का इस्तेमाल कर रही थीं. जो बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.

मुलायम और लचीले खिलौने बच्चों की पहली पसंद में होते हैं. माता-पिता भी बच्चों को चोट ना लगने के डर से ऐसे खिलौनों को तरजीह देते हैं. पर ऐसे खिलौने ज्यादा खतरनाक होते हैं. मुलायम प्लास्टिक से बने खिलौनों में 'थायलेट' पाया जाता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि थायलेट से बच्चों में कई तरह की बीमारियां होती हैं. इनमें किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ने के साथ बच्चों की हड्डियों के विकास में कमी आती है. आयात किए गए खिलौनों में आर्सेनिक, सीसा और पारा चिंताजनक स्तर से भी काफी अधिक पाया गया है.

भारत और खिलौनों का बाजार

- एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में खिलौनों का कारोबार 90 बिलियन डॉलर का है. इनमें भारतीय खिलौनों का बाजार 500 मिलियन डॉलर का है. आंकड़ों के मुताबिक करीब 80 फीसदी खिलौने चीन से आयात होते हैं.

- दुनिया में दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में लगभग 25 फीसदी आबादी की उम्र 15 साल या उससे कम है. ऐसे में भारत खिलौनों का सबसे बड़ा उपभोक्ता कहा जा सकता है.

- साल 2024 तक भारत में खिलौनों का बाजार 3.3 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

- भारत में आर्थिक विकास के साथ लोगों की आय और खर्च में बढ़ोतरी हुई है. जिसका असर खिलौनों के बाजार पर भी दिखता है. अब पारंपरिक खिलौनों की जगह बैटरी या रिमोट से चलने वाले खिलौनों का चलन बढ़ा है. -भारत में ई-कॉमर्स की तेजी ने भी एक भूमिका निभाई है, जिसमें ग्राहक अपने घरों में आराम से खिलौनों की खरीदारी करने लगे हैं. खिलौनों के व्यापार में भी ई-कॉमर्स अहम भूमिका निभा रहा है.

खिलौने खरीदते समय रखें ध्यान

आप मानें या ना मानें खिलौने सीधे-सीधे बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि खिलौने बच्चों का मनोरंजन करते हैं और उन्हें लंबे समय तक व्यस्त रखते हैं, उनका मनोरंजन करते हैं. इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सतर्क रहें और केवल सुरक्षित खिलौने ही खरीदें. नेशनल सेफ किड्स प्रोग्राम के अनुसार, 2020 में 4 साल से कम उम्र के 1,00,000 से अधिक बच्चे खिलौनों की वजह से अस्पताल पहुंचे.

BIS मार्क की जरूरत क्यों ?

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बेचे जाने वाले लगभग 67 फीसदी खिलौने सभी सुरक्षा और मानक परीक्षणों में फेल रहे. जबकि लगभग 30 फीसदी प्लास्टिक के खिलौने भारी धातुओं के तय स्तरों के सुरक्षा मानकों को पूरा करने में विफल रहे.

खिलौने बनाने को लेकर तय मानक ना होने के कारण हमारे उत्पादों की गुणवत्ता में गिरावट आई थी और अंतरराष्ट्रीय मानकों को बनाए रखने के भी कई असफल कोशिशें होती रहीं. क्योंकि ज्यादातर खिलौने चीन जैसे देशों से आयात होते थे तो उनमें रसायनों या उनका बच्चों के लिए खतरनाक होने की संभावना हमेशा बनी रहती है. विनियमन की कमी के कारण धड़ल्ले से रसायन युक्त खिलौने देश के बच्चों तक पहुंच रहे थे.

खिलौनों को लेकर नियम

डीपीआईआईटी, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी खिलौने (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 के अनुसार 01/09/2020 से खिलौनों की सुरक्षा को अनिवार्य बीआईएस प्रमाणीकरण के तहत लाया गया है.

यह आदेश केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित खिलौनों और/या बच्चों द्वारा खेलने में उपयोग की जाने वाली सामग्री, या अन्य उत्पादों के नियमन पर एक सख्त मानक आवश्यकता को लागू करता है. ये आदेश 1 सितंबर, 2020 से लागू हो गया था.

ये भी पढ़ें: iPhone 13: फोन के फीचर्स और कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश, इस बार बहुत कुछ है खास

हैदराबाद: खिलौने बच्चों की पहली पसंद होते हैं लेकिन ये खिलौने बच्चों के लिए हानिकारक भी साबित हो सकते हैं. खिलौने बनाने में कई तरह के खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है. ऐसे में भारत सरकार ने इसके लिए बकायदा नियम तय किए हैं. बीते साल सितंबर महीने से इसे लागू किया गया था.

खिलौनों पर BIS मार्क जरूरी

देश में सभी तरह के खिलौनों के लिए गुणवत्ता मानकों को सरकार ने बीते साल अनिवार्य कर दिया था. इसके लिए बकायादा भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) ने मानकों के अनुरूप खिलौने बनाने वाली कंपनियों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू की थी. जिसके बाद से खिलौनों पर BIS मार्क लगाना अनिवार्य है. बीआईएस ने खिलौने बनाने वाली कंपनियों को साधारण खिलौनों और बिजली से चलने वाले खिलौनों के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरु की थी.

विदेशी कंपनियों के लिए भी इन मानकों का पालन करना अनिवार्य है. एक सितंबर 2020 के बाद देश में आयात किए जाने वाले खिलौनों पर BIS मार्क अनिवार्य कर दिया गया था. बच्चे सुरक्षित खिलौनों से खेल सकें इसके लिए देश में भारत में BIS या ISI मार्क वाले खिलौने बनाने और बेचने का नियम तय किया था. केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के विभाग ने खिलौना निर्माताओं के लिए भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य किया है. जिसके मुताबिक 1 जनवरी 2021 से वही कंपनियां भारत में खिलौनों का निर्माण कर सकेंगी, जिनके पास BIS सर्टिफिकेट होगा. इसमें निर्माता को हर खिलौने के लिए एक अलग लाइसेंस की आवश्यकता होती है. यह प्रमाण पत्र खिलौनों के परीक्षण के बाद ही जारी किया जाता है.

खिलौनों में होता है खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल

भारत में खिलौनों का कारोबार बहुत बड़ा है. ज्यादातर खिलौने चीन, थाईलैंड और फिलीपींस से आयात होते हैं. इसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी चीन की होती है. एक अनुमान के मुताबिक देश में आयात होने वाले खिलौनों का 70 से 75 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से आता है. बीआईएस के मानक अनिवार्य होने के बाद विदेश से आयात किए जाने वाले खिलौनों को भी मानकों पर खरा उतरना होगा. 2020 से पहले खिलौनों के लिए गुणवत्ता के मानक अनिवार्य नहीं थे, ऐसे में कई कंपनियां खिलौनों में खतरनाक केमिकल्स का इस्तेमाल कर रही थीं. जो बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.

मुलायम और लचीले खिलौने बच्चों की पहली पसंद में होते हैं. माता-पिता भी बच्चों को चोट ना लगने के डर से ऐसे खिलौनों को तरजीह देते हैं. पर ऐसे खिलौने ज्यादा खतरनाक होते हैं. मुलायम प्लास्टिक से बने खिलौनों में 'थायलेट' पाया जाता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि थायलेट से बच्चों में कई तरह की बीमारियां होती हैं. इनमें किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ने के साथ बच्चों की हड्डियों के विकास में कमी आती है. आयात किए गए खिलौनों में आर्सेनिक, सीसा और पारा चिंताजनक स्तर से भी काफी अधिक पाया गया है.

भारत और खिलौनों का बाजार

- एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में खिलौनों का कारोबार 90 बिलियन डॉलर का है. इनमें भारतीय खिलौनों का बाजार 500 मिलियन डॉलर का है. आंकड़ों के मुताबिक करीब 80 फीसदी खिलौने चीन से आयात होते हैं.

- दुनिया में दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में लगभग 25 फीसदी आबादी की उम्र 15 साल या उससे कम है. ऐसे में भारत खिलौनों का सबसे बड़ा उपभोक्ता कहा जा सकता है.

- साल 2024 तक भारत में खिलौनों का बाजार 3.3 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

- भारत में आर्थिक विकास के साथ लोगों की आय और खर्च में बढ़ोतरी हुई है. जिसका असर खिलौनों के बाजार पर भी दिखता है. अब पारंपरिक खिलौनों की जगह बैटरी या रिमोट से चलने वाले खिलौनों का चलन बढ़ा है. -भारत में ई-कॉमर्स की तेजी ने भी एक भूमिका निभाई है, जिसमें ग्राहक अपने घरों में आराम से खिलौनों की खरीदारी करने लगे हैं. खिलौनों के व्यापार में भी ई-कॉमर्स अहम भूमिका निभा रहा है.

खिलौने खरीदते समय रखें ध्यान

आप मानें या ना मानें खिलौने सीधे-सीधे बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि खिलौने बच्चों का मनोरंजन करते हैं और उन्हें लंबे समय तक व्यस्त रखते हैं, उनका मनोरंजन करते हैं. इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सतर्क रहें और केवल सुरक्षित खिलौने ही खरीदें. नेशनल सेफ किड्स प्रोग्राम के अनुसार, 2020 में 4 साल से कम उम्र के 1,00,000 से अधिक बच्चे खिलौनों की वजह से अस्पताल पहुंचे.

BIS मार्क की जरूरत क्यों ?

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बेचे जाने वाले लगभग 67 फीसदी खिलौने सभी सुरक्षा और मानक परीक्षणों में फेल रहे. जबकि लगभग 30 फीसदी प्लास्टिक के खिलौने भारी धातुओं के तय स्तरों के सुरक्षा मानकों को पूरा करने में विफल रहे.

खिलौने बनाने को लेकर तय मानक ना होने के कारण हमारे उत्पादों की गुणवत्ता में गिरावट आई थी और अंतरराष्ट्रीय मानकों को बनाए रखने के भी कई असफल कोशिशें होती रहीं. क्योंकि ज्यादातर खिलौने चीन जैसे देशों से आयात होते थे तो उनमें रसायनों या उनका बच्चों के लिए खतरनाक होने की संभावना हमेशा बनी रहती है. विनियमन की कमी के कारण धड़ल्ले से रसायन युक्त खिलौने देश के बच्चों तक पहुंच रहे थे.

खिलौनों को लेकर नियम

डीपीआईआईटी, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी खिलौने (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश, 2020 के अनुसार 01/09/2020 से खिलौनों की सुरक्षा को अनिवार्य बीआईएस प्रमाणीकरण के तहत लाया गया है.

यह आदेश केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित खिलौनों और/या बच्चों द्वारा खेलने में उपयोग की जाने वाली सामग्री, या अन्य उत्पादों के नियमन पर एक सख्त मानक आवश्यकता को लागू करता है. ये आदेश 1 सितंबर, 2020 से लागू हो गया था.

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