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बढ़ रही फर्जी आईडी के जरिए ट्रेन टिकट का कारोबार करने वालों की संख्या

ट्रेन का आरक्षित टिकट पाने के लिए लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है. त्योहार के समय बर्थ मिल जाए तो समझिए आप सौभाग्यशाली हैं. आरक्षित ट्रेन टिकट न मिलने की बड़ी वजह अवैध आईडी के जरिए इनका कारोबार करने वाले हैं. इनकी संख्या बराबर बढ़ रही है (illegal business of railway ticket booking). ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

railway irctc anti fraud system
फर्जी आईडी के जरिए ट्रेन टिकट का कारोबार
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Published : Oct 15, 2022, 9:10 PM IST

नई दिल्ली: रेल मंत्रालय ने आरक्षित रेलवे टिकटों के अवैध कारोबार को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, बावजूद इसके सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि ऐसी व्यक्तिगत उपयोगकर्ता आईडी की संख्या हर साल बढ़ रही है (illegal business of railway ticket booking). 'ईटीवी भारत' के पास उपलब्ध सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान निष्क्रिय किए गए व्यक्तिगत उपयोगकर्ता आईडी की कुल संख्या 1120236 थी जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 1162493 हो गई.

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आईआरसीटीसी, क्रिस और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के समन्वय से जांच और विश्लेषण के आधार पर संदिग्ध उपयोगकर्ताओं की पहचान कर उन्हें ऐसा करने से रोकता है. सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि निष्क्रिय आईडी की संख्या 2018-19 में 114737 थी, जो 2019-20 में 1120236 और 2020-21 में 1162493 हो गई.

अधिकारी ने बताया कि क्रिस और रेलवे सुरक्षा बल के समन्वय में किए गए विभिन्न जांच और विश्लेषण के आधार पर संदिग्ध पर्सनल यूजर आईडी को डिएक्टिवेट कर दिया जाता है. अधिकारी ने कहा, 'उन सभी यूजर आईडी की भी चेकिंग की जाती है जो एक या दो दिन में सभी 6 टिकट बुक कर रहे हैं और फिर समान दिखने वाले आईडी की पहचान की जाती है.'

अधिकारी ने कहा कि जो यूजर आईडी लगातार 3 महीने से तत्काल में सभी छह टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं, उनकी पहचान की जाती है. यूजर आईडी और यात्री के नाम से बुक किए गए टिकटों की तुलना की जाती है और फिर इसी तरह की श्रृंखला का पता लगाया जाता है और निष्क्रिय कर दिया जाता है. अपराधियों पर रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है.

यात्री आरक्षण प्रणाली (पीआरएस) के माध्यम से लोग अपनी सीटें ऑनलाइन आरक्षित करवाते हैं. पीआरएस एक राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन यात्री आरक्षण और टिकट प्रणाली है. पीआरएस के तहत आरक्षण, संशोधन, रद्दीकरण और धनवापसी की प्रक्रिया होती है. ये 1.6 मिलियन से अधिक सीटों और बर्थों को आरक्षित करता है और प्रति दिन कुल 10 करोड़ से अधिक लेनदेन को संभालता है.

इस मुद्दे के बारे में जागरूक होने के कारण, रेल मंत्रालय की एक संसदीय समिति ने अधिकारियों से सुधारात्मक उपाय करने और दुर्भावनापूर्ण उपयोगकर्ताओं की आईडी की बढ़ती संख्या से बचने के लिए पीआरएस प्रणाली को अपग्रेड करने के लिए कहा है. भाकपा के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने कहा, 'यह एक गंभीर मुद्दा है. आम नागरिक इस कारण अपना टिकट आरक्षित नहीं करवा पाते हैं. धोखाधड़ी करने वाले पहले से ही ज्यादातर टिकट बुक करा चुके होते हैं.' विश्वम संसदीय समिति के सदस्य भी हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो इस तरह के अवैध कारोबार में शामिल हैं.

पढ़ें- Google Feature : अब गूगल सर्च पर खरीद सकेंगे ट्रेन टिकट !

नई दिल्ली: रेल मंत्रालय ने आरक्षित रेलवे टिकटों के अवैध कारोबार को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, बावजूद इसके सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि ऐसी व्यक्तिगत उपयोगकर्ता आईडी की संख्या हर साल बढ़ रही है (illegal business of railway ticket booking). 'ईटीवी भारत' के पास उपलब्ध सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान निष्क्रिय किए गए व्यक्तिगत उपयोगकर्ता आईडी की कुल संख्या 1120236 थी जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 1162493 हो गई.

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आईआरसीटीसी, क्रिस और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के समन्वय से जांच और विश्लेषण के आधार पर संदिग्ध उपयोगकर्ताओं की पहचान कर उन्हें ऐसा करने से रोकता है. सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि निष्क्रिय आईडी की संख्या 2018-19 में 114737 थी, जो 2019-20 में 1120236 और 2020-21 में 1162493 हो गई.

अधिकारी ने बताया कि क्रिस और रेलवे सुरक्षा बल के समन्वय में किए गए विभिन्न जांच और विश्लेषण के आधार पर संदिग्ध पर्सनल यूजर आईडी को डिएक्टिवेट कर दिया जाता है. अधिकारी ने कहा, 'उन सभी यूजर आईडी की भी चेकिंग की जाती है जो एक या दो दिन में सभी 6 टिकट बुक कर रहे हैं और फिर समान दिखने वाले आईडी की पहचान की जाती है.'

अधिकारी ने कहा कि जो यूजर आईडी लगातार 3 महीने से तत्काल में सभी छह टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं, उनकी पहचान की जाती है. यूजर आईडी और यात्री के नाम से बुक किए गए टिकटों की तुलना की जाती है और फिर इसी तरह की श्रृंखला का पता लगाया जाता है और निष्क्रिय कर दिया जाता है. अपराधियों पर रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है.

यात्री आरक्षण प्रणाली (पीआरएस) के माध्यम से लोग अपनी सीटें ऑनलाइन आरक्षित करवाते हैं. पीआरएस एक राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन यात्री आरक्षण और टिकट प्रणाली है. पीआरएस के तहत आरक्षण, संशोधन, रद्दीकरण और धनवापसी की प्रक्रिया होती है. ये 1.6 मिलियन से अधिक सीटों और बर्थों को आरक्षित करता है और प्रति दिन कुल 10 करोड़ से अधिक लेनदेन को संभालता है.

इस मुद्दे के बारे में जागरूक होने के कारण, रेल मंत्रालय की एक संसदीय समिति ने अधिकारियों से सुधारात्मक उपाय करने और दुर्भावनापूर्ण उपयोगकर्ताओं की आईडी की बढ़ती संख्या से बचने के लिए पीआरएस प्रणाली को अपग्रेड करने के लिए कहा है. भाकपा के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने कहा, 'यह एक गंभीर मुद्दा है. आम नागरिक इस कारण अपना टिकट आरक्षित नहीं करवा पाते हैं. धोखाधड़ी करने वाले पहले से ही ज्यादातर टिकट बुक करा चुके होते हैं.' विश्वम संसदीय समिति के सदस्य भी हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को उन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो इस तरह के अवैध कारोबार में शामिल हैं.

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