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कोरोना महामारी : अर्थव्यवस्था को फिर 'आत्म निर्भर पैकेज' की जरूरत - second wave of corona india

कोरोना की पहली लहर के दौरान अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो गई थी. इसे संभालने के लिए सरकार को आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा करनी पड़ी थी. देश इस वक्त फिर से कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. इसकी तीव्रता पहली लहर के मुकालबे कहीं अधिक है. ऐसे में सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह अर्थव्यवस्था में नई जान डालने के लिए फिर से किसी पैकेज की घोषणा जल्द से जल्द करे, ताकि देश के आर्थिक विकास की रफ्तार फिर से सामान्य हो सके. एक विश्लेषण आर्थिक विशेषज्ञ डॉ महेंद्र बाबू कुरुवा का.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण
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Published : May 13, 2021, 6:26 PM IST

Updated : May 14, 2021, 3:37 PM IST

हैदराबाद : पिछले साल कोरोना की वजह से बहुत अधिक नुकसान हुआ था. हजारों लोगों की जानें चली गईं. उनकी आजीविका प्रभावित हुई. लाखों लोग बेरोजगार हो गए. उत्पादकता का स्तर काफी नीचे चला गया था. हालांकि, महंगाई दर बढ़ती रही. आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए सरकार ने 13 मई 2020 को 20 लाख करोड़ के 'आत्म निर्भर पैकेज' की घोषणा की थी. पैकेज का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग व्यवस्था में पर्याप्त नकदी को बरकरार रखने के साथ-साथ छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों से लेकर स्ट्रीट हॉकर तक को लोन के मामले में राहत पहुंचाना था. कृषि ढांचा को मजबूत करने पर जोर दिया गया. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को प्राथमिकता दी गई. सार्वजनिक बैंकिंग में निजी क्षेत्रों की एंट्री की घोषणा से राहत की उम्मीद जगी थी.

घोषणा के तुरंत बाद पैकेज का लाभ मिलता हुआ भी दिखाई दिया. लेकिन उम्मीदें बहुत जल्द ही खत्म हो गईं. और अब कोरोना की दूसरी लहर का आवेग इतना अधिक है, कि किसी को कुछ नहीं सूझ रहा है. अप्रत्याशित गति से संक्रमण ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया. 1952 के बाद आर्थिक गतिविधि में सबसे अधिक गिरावट देखी जा रही है. देश के आर्थिक विकास के अनुमानों की पुनः समीक्षा की जाने लगी है. स्टैंडर्ड एंड पुअर ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत के विकास का आकलन 11 फीसदी से घटाकर 9.8 फीसदी कर दिया है. फिच ने 9.5 फीसदी का अनुमान लगाया है. ब्लूमबर्ग ने पहले 11 फीसदी का अनुमान लगाया था. अनुमान कम होने की असली वजह बढ़ती बेरोजगारी और घटती बचर दर है. अभी तो दूसरे लहर के असर का ठीक से आकलन भी नहीं हुआ, कि तीसरी लहर की चेतावनी आ गई. आजाद भारत का यह सबसे कठिन दौर है. एक साल पहले हम जहां पर खड़े थे, एक बार फिर से हम वहीं पर खड़े हैं. एक बार जब संक्रमण दर घट जाए, तो उसके बाद आर्थिक गतिविधि को नई जान देने के लिए सरकार को फिर से पैकेज की घोषणा करनी ही पड़ेगी.

इस परिप्रेक्ष्य में फिर से आत्म निर्भर भारत पैकेज पर विचार करने की जरूरत है. देश कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, जल्द से जल्द समाधान खोजना ही होगा. इस पैकेज का मतलब लोन में राहत प्रदान करना होता है, न कि सब्सिडी देकर मदद करना. आपको यह ध्यान रखना होगा कि बिजनेस मुख्य रूप से लोन पर ही निर्भर करता है. अगर उन्हें लगता है कि लोन पर ब्याज आसानी से चुकाया जा सकता है, तो वह रिस्क लेते हैं. ऐसे समय में जबकि अनिश्चितता का माहौल है, वस्तुओं और सेवाओं की खपत कम होनी तय है. इसलिए सरकार को ऐसे समय में अपनी नीति साफ रखनी चाहिए, कि कैसे वह अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाएंगे.

जाहिर है पहली प्राथमिकता खपत बढ़ाने की है. खपत बढ़ने से ही मांग बढ़ेगी. अगर मांग कम होगी, तो आउटपुट कम होगा और इसका सीधा असर बेरोजगारी पर पड़ता है. कोविड की वजह से अधिकांश राज्यों में अभी लॉकडाउन है. इसलिए मांग घटनी तय है. बेरोजगारी भी बढ़ेगी.

दूसरी प्रमुख चुनौती आय की असमानता है. कोविड का असर जितना अधिक रहेगा, असमानता बढ़ेगी. क्योंकि अलग-अलग वर्गों के लोगों की आमदनी प्रभावित हो रही है. इसका मतलब है कि सबसे अधिक प्रभावित कम आमदनी वाले लोग होंगे. वर्किंग क्लास की आमदनी घटेगी. इसका मतलब है कि बचत दर घटेगा. बड़े कॉरपोरेट इसे झेल लेंगे. हमने पहली लहर में भी इसे देखा था. दूसरी लहर में भी यही ट्रेंड रहेगा. लेकिन छोटे व्यवसायियों के सामने कठिन चुनौतियां हैं.

तीसरा सबसे अहम बिंदु ग्रामीणों की आमदनी है. ग्रामीण मजदूरी में एक ठहराव आ गया है. ग्रामीण स्तर पर मांग घट रही है. लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के उत्पादों की सबसे अधिक खपत गांवों में होती है. अगर ग्रामीणों की आमदनी कम होगी, तो इसका असर सीधे तौर पर लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योगों पर पड़ेगा. कृषि और लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योग में देश की श्रम शक्ति की अस्सी फीसदी भागीदारी है. उनका रिवाइवल होगा, तभी अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी.

मांग को बढ़ाने के लिए लोन के बजाए राजकोषीय राहत की जरूरत होगी. सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी (इसकी वजह से रोजगार बढ़ता है), किसानों को इनपुट में सब्सिडी, राजकोषीय प्रोत्साहन और छोटे एवं खुदरा दुकानदारों को मदद देनी होगी. मनरेगा और कृषि क्षेत्र में बड़े निवेश की जरूरत है, तभी मांग में तेजी आएगी. आय की असमानताओं को कम करने के लिए, मौजूदा कर्मचारियों के लिए नियोक्ताओं को वेतन सब्सिडी प्रदान करने की नीति और नई भर्तियों को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए माना जा सकता है. इस तरह की पहल से रोजगार के नुकसान से बचा जा सकता है और महामारी के दौरान कार्यबल में स्थिर आय सुनिश्चित होती है, जिससे आय असमानताओं को बढ़ने से रोका जा सकता है.

दूसरी ओर गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों को नकदी की मदद चाहिए होगी. क्योंकि ये लोग हर दिन कमाते हैं, तभी इन्हें खाना मिल पाता है. और यह उपभोक्ता स्तर पर मांग बढ़ाने में मदद करते हैं. इसकी वजह से कृषि और मध्य दर्जे के उद्योगों को मदद मिलेगी. इस चक्र की वजह से उपभोक्ता स्तर पर मांग बढ़ेगी. राजकोषीय घाटे की समस्या पैदा होगी, तो भी चलेगा. क्योंकि आप बहुसंख्यक भारतीयों के जीवन और आजीविका से संबंधित समस्याओं का समाधान कर रहे हैं. इससे बड़ी मदद और क्या हो सकती है. देश को लाइफलाइन की जरूरत है. एक बार जब यह ठीक हो जाएगा, तो हम आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं.

(लेखक- डॉ महेंद्र बाबू कुरुवा, सहायक प्रोफेसर, एनएनबी गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी, श्रीनगर, उत्तराखंड)

हैदराबाद : पिछले साल कोरोना की वजह से बहुत अधिक नुकसान हुआ था. हजारों लोगों की जानें चली गईं. उनकी आजीविका प्रभावित हुई. लाखों लोग बेरोजगार हो गए. उत्पादकता का स्तर काफी नीचे चला गया था. हालांकि, महंगाई दर बढ़ती रही. आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए सरकार ने 13 मई 2020 को 20 लाख करोड़ के 'आत्म निर्भर पैकेज' की घोषणा की थी. पैकेज का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग व्यवस्था में पर्याप्त नकदी को बरकरार रखने के साथ-साथ छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों से लेकर स्ट्रीट हॉकर तक को लोन के मामले में राहत पहुंचाना था. कृषि ढांचा को मजबूत करने पर जोर दिया गया. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को प्राथमिकता दी गई. सार्वजनिक बैंकिंग में निजी क्षेत्रों की एंट्री की घोषणा से राहत की उम्मीद जगी थी.

घोषणा के तुरंत बाद पैकेज का लाभ मिलता हुआ भी दिखाई दिया. लेकिन उम्मीदें बहुत जल्द ही खत्म हो गईं. और अब कोरोना की दूसरी लहर का आवेग इतना अधिक है, कि किसी को कुछ नहीं सूझ रहा है. अप्रत्याशित गति से संक्रमण ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया. 1952 के बाद आर्थिक गतिविधि में सबसे अधिक गिरावट देखी जा रही है. देश के आर्थिक विकास के अनुमानों की पुनः समीक्षा की जाने लगी है. स्टैंडर्ड एंड पुअर ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत के विकास का आकलन 11 फीसदी से घटाकर 9.8 फीसदी कर दिया है. फिच ने 9.5 फीसदी का अनुमान लगाया है. ब्लूमबर्ग ने पहले 11 फीसदी का अनुमान लगाया था. अनुमान कम होने की असली वजह बढ़ती बेरोजगारी और घटती बचर दर है. अभी तो दूसरे लहर के असर का ठीक से आकलन भी नहीं हुआ, कि तीसरी लहर की चेतावनी आ गई. आजाद भारत का यह सबसे कठिन दौर है. एक साल पहले हम जहां पर खड़े थे, एक बार फिर से हम वहीं पर खड़े हैं. एक बार जब संक्रमण दर घट जाए, तो उसके बाद आर्थिक गतिविधि को नई जान देने के लिए सरकार को फिर से पैकेज की घोषणा करनी ही पड़ेगी.

इस परिप्रेक्ष्य में फिर से आत्म निर्भर भारत पैकेज पर विचार करने की जरूरत है. देश कठिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, जल्द से जल्द समाधान खोजना ही होगा. इस पैकेज का मतलब लोन में राहत प्रदान करना होता है, न कि सब्सिडी देकर मदद करना. आपको यह ध्यान रखना होगा कि बिजनेस मुख्य रूप से लोन पर ही निर्भर करता है. अगर उन्हें लगता है कि लोन पर ब्याज आसानी से चुकाया जा सकता है, तो वह रिस्क लेते हैं. ऐसे समय में जबकि अनिश्चितता का माहौल है, वस्तुओं और सेवाओं की खपत कम होनी तय है. इसलिए सरकार को ऐसे समय में अपनी नीति साफ रखनी चाहिए, कि कैसे वह अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाएंगे.

जाहिर है पहली प्राथमिकता खपत बढ़ाने की है. खपत बढ़ने से ही मांग बढ़ेगी. अगर मांग कम होगी, तो आउटपुट कम होगा और इसका सीधा असर बेरोजगारी पर पड़ता है. कोविड की वजह से अधिकांश राज्यों में अभी लॉकडाउन है. इसलिए मांग घटनी तय है. बेरोजगारी भी बढ़ेगी.

दूसरी प्रमुख चुनौती आय की असमानता है. कोविड का असर जितना अधिक रहेगा, असमानता बढ़ेगी. क्योंकि अलग-अलग वर्गों के लोगों की आमदनी प्रभावित हो रही है. इसका मतलब है कि सबसे अधिक प्रभावित कम आमदनी वाले लोग होंगे. वर्किंग क्लास की आमदनी घटेगी. इसका मतलब है कि बचत दर घटेगा. बड़े कॉरपोरेट इसे झेल लेंगे. हमने पहली लहर में भी इसे देखा था. दूसरी लहर में भी यही ट्रेंड रहेगा. लेकिन छोटे व्यवसायियों के सामने कठिन चुनौतियां हैं.

तीसरा सबसे अहम बिंदु ग्रामीणों की आमदनी है. ग्रामीण मजदूरी में एक ठहराव आ गया है. ग्रामीण स्तर पर मांग घट रही है. लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के उत्पादों की सबसे अधिक खपत गांवों में होती है. अगर ग्रामीणों की आमदनी कम होगी, तो इसका असर सीधे तौर पर लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योगों पर पड़ेगा. कृषि और लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योग में देश की श्रम शक्ति की अस्सी फीसदी भागीदारी है. उनका रिवाइवल होगा, तभी अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी.

मांग को बढ़ाने के लिए लोन के बजाए राजकोषीय राहत की जरूरत होगी. सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी (इसकी वजह से रोजगार बढ़ता है), किसानों को इनपुट में सब्सिडी, राजकोषीय प्रोत्साहन और छोटे एवं खुदरा दुकानदारों को मदद देनी होगी. मनरेगा और कृषि क्षेत्र में बड़े निवेश की जरूरत है, तभी मांग में तेजी आएगी. आय की असमानताओं को कम करने के लिए, मौजूदा कर्मचारियों के लिए नियोक्ताओं को वेतन सब्सिडी प्रदान करने की नीति और नई भर्तियों को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए माना जा सकता है. इस तरह की पहल से रोजगार के नुकसान से बचा जा सकता है और महामारी के दौरान कार्यबल में स्थिर आय सुनिश्चित होती है, जिससे आय असमानताओं को बढ़ने से रोका जा सकता है.

दूसरी ओर गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों को नकदी की मदद चाहिए होगी. क्योंकि ये लोग हर दिन कमाते हैं, तभी इन्हें खाना मिल पाता है. और यह उपभोक्ता स्तर पर मांग बढ़ाने में मदद करते हैं. इसकी वजह से कृषि और मध्य दर्जे के उद्योगों को मदद मिलेगी. इस चक्र की वजह से उपभोक्ता स्तर पर मांग बढ़ेगी. राजकोषीय घाटे की समस्या पैदा होगी, तो भी चलेगा. क्योंकि आप बहुसंख्यक भारतीयों के जीवन और आजीविका से संबंधित समस्याओं का समाधान कर रहे हैं. इससे बड़ी मदद और क्या हो सकती है. देश को लाइफलाइन की जरूरत है. एक बार जब यह ठीक हो जाएगा, तो हम आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं.

(लेखक- डॉ महेंद्र बाबू कुरुवा, सहायक प्रोफेसर, एनएनबी गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी, श्रीनगर, उत्तराखंड)

Last Updated : May 14, 2021, 3:37 PM IST
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