हैदराबाद: नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठन पिछले 19 दिनों से प्रदर्शन कर रहे है. सरकार और किसानों के बीच कई बार बैठकें हुईं, लेकिन नतीजा अभी तक नहीं निकला है. बता दें कि इससे पहले भी देश में आंदोलन हुए हैं. आइये डालते हैं एक नजर...
1. 1965 में तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन
हालांकि, तमिलनाडु में दशकों से हिंदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था, लेकिन यह उस समय एक ज्वलनशील मुद्दा बन गया, जब 1963 में आधिकारिक भाषा अधिनियम के तहत हिंदी को अंग्रेजी के साथ-साथ एक आधिकारिक भाषा बना दिया था. इसको लेकर राज्यभर में बड़ी संख्या में छात्रों ने विरोध-प्रदर्शन शुरू किया था. वहीं, संसद में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के विरोध के बावजूद भी यह कानून पारित किया गया, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह आश्वासन दिया था कि अंग्रेजी ही यहां कि आधिकारिक भाषा बनी रहेगी. 1964 में नेहरूजी की मृत्यु के बाद राज्य की कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु विधानसभा में एक तीन-भाषा का फार्मूला पेश किया, इसको लेकर भी छात्रों ने प्रदर्शन किए. यहां तक कई छात्रों ने आत्मदाह के भी प्रयास किए. इस हिंसा में लगभग 70 लोगों की मौत भी हो गई थी. यह आंदोलन उस समय समाप्त हुआ जब पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने आश्वासन दिया कि नेहरूजी के वादा को बरकरार रखा जाएगा. वहीं, 1965 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और डीएमके सत्ता पर काबिज हो गई.
2. नव निर्माण आंदोलन (पुनर्निर्माण आंदोलन), 1974
20 दिसंबर, 1973 को अहमदाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने छात्रावास के भोजन में 20% शुल्क वृद्धि के खिलाफ आंदोलन किया था. 3 जनवरी, 1974 को भी गुजरात विश्वविद्यालय में इसी तरह की हड़ताल हुई थी, जब पुलिस और छात्रों के बीच झड़पें हुईं. प्रदर्शनकारी छात्र तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के इस्तीफे की मांग कर रहे थे. 25 जनवरी को एक राज्यव्यापी हड़ताल की गई थी, जो पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद समाप्त हुई थी. हिंसा को देखते हुए 44 शहरों-कस्बों में कर्फ्यू लगाया गया और अहमदाबाद में शांति बहाली के लिए सेना को बुलाया गया था. वहीं केंद्र की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने राज्य की पटेल सरकार को इस्तीफा देने के लिए कहा. आंदोलन की वजह से राज्य सरकार को भंग कर दिया गया.
3. जेपी आंदोलन-1974-75
18 मार्च, 1974 को बिहार से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इस छात्र आंदोलन की नींव पड़ी थी. ये आंदोलन पूरे देश में ऐसा फैला कि देखते ही देखते राजनीति का पूरा चेहरा ही बदल गया. यह जेपी आंदोलन के नाम से मशहूर हुआ और करीब एक साल चला. देश ने इस आंदोलन के साथ आपातकाल का बुरा दौर भी देखा था. पुलिस ने आंदोलन के दौरान हुई हिंसा का करारा जवाब दिया. छात्र नेताओं ने इस आंदोलन को धार देने के लिए वृद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से संपर्क किया.
बता दें कि उस समय जयप्रकाश नारायण को आंदोलन के लिए जाना जाता था. वह देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के काफी अच्छे दोस्त माने जाते थे. उन्होंने इंदिरा गांधी का विरोध किया. आपातकाल में जेपी की जनता पार्टी देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनने के लिए सत्ता में आई.
4. आसु 1979-85 आसाम का जलना
1979-85 तक असम में गैर-दस्तावेजी अप्रवासियों के खिलाफ आंदोलन चलाया गया था. राज्य के लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए अवैध प्रवासियों के खिलाफ यह आंदोलन था. राज्य की सरकार को मजबूर करने के लिए ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण संग्राम परिषद के नेतृत्व में अवैध प्रवासियों की पहचान और निष्कासन को मजबूर करने के लिए विरोध और प्रदर्शन शुरू किए गए.
बता दें कि 1978 में हुआ उपचुनाव एक ऐसी चिंगारी बना जिस की लौ काफी साल तक जली. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने मांग की कि चुनाव से पहले मतदाता सूची को शुद्ध किया जाना चाहिए और अवैध प्रवासियों को सूची से हटाया जाए. इसके बाद के वर्षों में सैकड़ों छात्रों की मौत हुई. 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसने 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को निष्कासित करने की मांग की थी. अब भी यह असमिया नेताओं और केंद्र सरकार के बीच संघर्ष का विषय बना हुआ है.
5. मथुरा में रेप के खिलाफ प्रदर्शन- 1980
महिला आंदोलन
महाराष्ट्र में 1972 में एक आदिवासी किशोरी से बलात्कार के आरोपी दो पुलिसकर्मियों को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के विरोध में 1980 में युवा महिलाएं सड़कों पर उतरी थीं. एक निचली अदालत ने कहा कि युवा वादी, जिसे 'मथुरा' के नाम से जाना जाता है, उसे संभोग करने की आदत है, इस वजह से बलात्कार साबित नहीं किया जा सकता. शीर्ष अदालत ने फैसले को बरकरार रखा. इस फैसले के विरोध में कई महिला समूहों का गठन किया गया और सभी ने विरोध भी जताया. आखिरकार, विरोध करने वाली महिलाओं ने भारतीय कानून को बदलने के लिए मजबूर किया.
6. मंडल आंदोलन 1990
आरक्षण नहीं
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1979 में आरक्षण की मांग की जांच करने के लिए मंडल आयोग का गठन किया, जो जातिगत भेदभाव के प्रभाव को रोकने में मदद करने के लिए एक सकारात्मक कार्रवाई थी. अगस्त 1990 में, वीपी सिंह सरकार ने आयोग की सिफारिशों को लागू करने का प्रयास किया. इसका परिणाम बहुत भयंकर था. इस आंदोलन में मुख्य रूप से छात्र शामिल थे, जिन्हें तथाकथित पिछड़ी जाति के छात्रों से एक डर सता रहा था कि उन्हें आगे एडमिशन नहीं मिलेगा. दिल्ली में 200 से अधिक छात्रों ने खुद को आग लगा ली. उत्तर भारत में सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, क्योंकि छात्रों ने विरोध जताते हुए कॉलेज, व्यवसाय और सड़कों को बंद कर दिया था. मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को एक साल के अंदर ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
7. भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन- 2011
5 अप्रैल, 2011 को सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने दिल्ली में जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल शुरू की. जिससे जन लोकपाल बिल को पारित करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा सके और सरकारी भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक स्वतंत्र लोकपाल नियुक्त किया जा सके. हजारे इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के अग्रदूत थे. इस आंदोलन से आम आदमी पार्टी का निर्माण हुआ. एक मायने में आम आदमी पार्टी के कारण आंदोलन का गलत अंत हुआ, क्योंकि हजारे और अरविंद केजरीवाल अलग हो गए.
8. निर्भया मूवमेंट 2012
दिल्ली में दिसंबर 2012 में हुए निर्भया रेप कांड ने देश और समाज को झकझोर कर रख दिया था. घटना के बाद देश के कई हिस्सों में हजारों लोग विरोध के लिए सड़कों पर उतर आए. आंदोलन ने सोशल मीडिया में भी हलचल मचा दी थी. इस आंदोलन के बाद केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए.
9. जल्लीकट्टू के विरोध में आंदोलन 2017
पशु अधिकार संगठन PETA ने जल्लीकट्टू (तमिल खेल) को क्रूर बताते हुए मुकदमा दायर किया था. वहीं, देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पोंगल के शीतकालीन फसल उत्सव के दौरान खेले जाने वाले इस खेल पर प्रतिबंध लगा दिया था. बता दें, यह आदेश 2014 से प्रभावी था, लेकिन जनवरी 2017 में हजारों युवा शांतिपूर्ण विरोध जताते हुए चेन्नई की सड़कों पर उतरे. युवा प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि सांडों को 'प्रदर्शन करने वाले जानवरों' की सूची से हटा दिया जाए, लेकिन पेटा ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया है और एक वीडियो जारी किया है जिसमें जल्लीकट्टू के दौरान सांडों पर क्रूरता दिखाई गई है.
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10. सीएए के विरोध में प्रदर्शन
11 दिसंबर, 2019 को संसद ने नागरिकता अधिनियम में संशोधन पारित किया था. इस कानून और अन्य सरकारी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन हुआ और देशभर के लाखों लोग सड़कों पर उतरे. यह आंदोलन बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों और गांवों तक फैल गया. देश के अधिकांश हिस्सों में इस आंदोलन का नेतृत्व मुसलमानों ने किया था, लेकिन यह आंदोलन किसी विशेष समुदाय तक सीमित नहीं रहा.