नई दिल्ली : भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) की शुरुआत को आज 79 वर्ष पूरे हो गए. आजादी की लड़ाई में यह एक अहम पड़ाव रहा है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से शुरू की गई इस मुहिम से अंग्रजों की चूलें हिल गई थी. भारत छोड़ो आंदोलन की 79वीं वर्षगांठ पर बापू के योगदान को याद किया गया.
राज्य सभा में भारत छोड़ो आंदोलन के लगभग दो वर्ष की अवधि में स्वतंत्रता संग्राम संग्राम में सर्वोच्च बलिदान देने वाले महापुरुषों को याद किया गया. देश के लिए बलिदान देने वाले महापुरुषों की स्मृति में राज्य सभा ने कुछ पल का मौन रखा और देश के सपूतों को श्रद्धांजलि दी.
इसके अलावा लोक सभा में भी स्पीकर ओम बिरला ने भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर आजादी के आंदोलन में शामिल महापुरुषों को श्रद्धांजलि दी.
दरअसल, 8 अगस्त, 1942 भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का टर्निंग पॉइंट (Turning point of Indian Freedom Movement) कहा जाता है. गांधीजी महात्मा के तौर पर पहचान बना चुके थे. अंग्रेज दूसरे विश्व युद्ध से जूझ रहे थे और भारत आजादी के सवेरे का स्वाद चखने की तैयारी कर रहा था. गांधीजी का करो या मरो का आह्वान असर कर गया और भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के बैनर तले लोग जुट गए. ध्येय एक ही था गुलामी की जंजीरों से आजादी.
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इतिहासकारों की नजर में भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) अभूतपूर्व है. 'भारत छोड़ो आंदोलन' द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त, 1942 को आरम्भ किया गया. काफी योजनाबद्ध तरीके से इसे रचा गया. जिसका मकसद भारत मां को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था. टाइमिंग बहुत अहम थी. पता था कि अंग्रेज परेशान हैं और भारतीयों की इस मांग से मुंह नहीं मोड़ पाएंगे. ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से चलाया गया था. बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी. इस मौके पर महात्मा गाधी ने ऐतिहासिक गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से देश को 'करो या मरो' का नारा दिया था.