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Maharashtra MLC Nomination : राज्यपाल की ओर से देरी के खिलाफ दायर याचिका पर उच्च न्यायालय का फैसला सुरक्षित - एमएलसी नोमिनेशन

MLC नामांकन को लेकर राज्यपाल की ओर से देरी के खिलाफ दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा महाराष्ट्र विधान परिषद (एमएलसी) में व्यक्तियों को नामित करने के लिए भेजे प्रस्ताव को स्वीकार करना या वापस भेजना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है और वह इस कर्तव्य से बच नहीं सकते हैं.

बंबई उच्च न्यायालय
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Published : Jul 19, 2021, 8:48 PM IST

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा महाराष्ट्र विधान परिषद (एमएलसी) में व्यक्तियों को नामित करने के लिए भेजे प्रस्ताव को स्वीकार करना या वापस भेजना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है और वह इस कर्तव्य से बच नहीं सकते हैं.

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने पूछा कि अगर मुख्यमंत्री ने एमएलसी पदों पर व्यक्तियों के नामांकन के लिए राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से प्रस्ताव भेजा है तो क्या यह राज्यपाल का कर्तव्य नहीं है कि वह उसपर निर्णय लें.

पीठ नासिक निवासी रतन सोलि लूथ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में उच्च न्यायालय से राज्यपाल को यह निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि वह उन 12 नामों पर निर्णय करें जिनकी सिफारिश पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र सरकार ने एमएलसी पद के लिए की थी.

अदालत ने याचिकाकर्ता, राज्य सरकार और केंद्र की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. पीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह से जानना चाहा कि क्या राज्यपाल का कार्य करने और बोलने का कर्तव्य नहीं है?

मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, प्रस्ताव भेजा गया है और नवंबर 2020 से लंबित है. राज्यपाल इसे स्वीकार कर सकते हैं या वापस भेज सकते हैं, लेकिन क्या राज्यपाल का बोलने या कार्य करने का कर्तव्य नहीं है? क्या संविधान में किसी समय प्रावधान रहा है जो कहता है कि राज्यपाल बिल्कुल भी कार्य नहीं कर सकते है?

पढ़ें : महाराष्ट्र : विधान परिषद में नियुक्ति के लिए 12 सदस्यों की सूची राजभवन में है

पीठ ने कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल पर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर व्यक्तियों को एमएलसी के पद पर नामित करने का कर्तव्य है, इसलिए प्रस्ताव स्वीकार करना या वापस भेजना उनका कर्तव्य है.

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा महाराष्ट्र विधान परिषद (एमएलसी) में व्यक्तियों को नामित करने के लिए भेजे प्रस्ताव को स्वीकार करना या वापस भेजना राज्यपाल का संवैधानिक कर्तव्य है और वह इस कर्तव्य से बच नहीं सकते हैं.

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने पूछा कि अगर मुख्यमंत्री ने एमएलसी पदों पर व्यक्तियों के नामांकन के लिए राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से प्रस्ताव भेजा है तो क्या यह राज्यपाल का कर्तव्य नहीं है कि वह उसपर निर्णय लें.

पीठ नासिक निवासी रतन सोलि लूथ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में उच्च न्यायालय से राज्यपाल को यह निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि वह उन 12 नामों पर निर्णय करें जिनकी सिफारिश पिछले साल नवंबर में महाराष्ट्र सरकार ने एमएलसी पद के लिए की थी.

अदालत ने याचिकाकर्ता, राज्य सरकार और केंद्र की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. पीठ ने सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह से जानना चाहा कि क्या राज्यपाल का कार्य करने और बोलने का कर्तव्य नहीं है?

मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, प्रस्ताव भेजा गया है और नवंबर 2020 से लंबित है. राज्यपाल इसे स्वीकार कर सकते हैं या वापस भेज सकते हैं, लेकिन क्या राज्यपाल का बोलने या कार्य करने का कर्तव्य नहीं है? क्या संविधान में किसी समय प्रावधान रहा है जो कहता है कि राज्यपाल बिल्कुल भी कार्य नहीं कर सकते है?

पढ़ें : महाराष्ट्र : विधान परिषद में नियुक्ति के लिए 12 सदस्यों की सूची राजभवन में है

पीठ ने कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल पर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर व्यक्तियों को एमएलसी के पद पर नामित करने का कर्तव्य है, इसलिए प्रस्ताव स्वीकार करना या वापस भेजना उनका कर्तव्य है.

(पीटीआई-भाषा)

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