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तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी को मद्रास उच्च न्यायालय ने बताया वैध - डीएमके मंत्री वी सेंथिल बालाजी

जेल में बंद डीएमके मंत्री वी सेंथिल बालाजी की पत्नी मेगाला की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (एचसीपी) को खारिज करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि मंत्री को गिरफ्त में लेने का अधिकार प्रवर्तन निदेशालय के पास है.

Minister Senthil Balaji arrested
मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी
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Published : Jul 14, 2023, 9:20 PM IST

चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी और इसके बाद एक सत्र अदालत की ओर से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजे जाने को शुक्रवार को वैध बताया है. मंत्री की गिरफ्तारी से संबंधित याचिका पर खंडपीठ के खंडित फैसले के बाद मामले की सुनवाई करने वाले तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीवी कार्तिकेयन ने गिरफ्तारी और न्यायिक हिरासत को वैध बताया है.

पीठ के तीसरे न्यायाधीश ने माना कि आरोपी मंत्री को जांच को पटरी से उतारने का कोई अधिकार नहीं है. जब उन्हें गिरफ्तारी का कारण बताया गया तो उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा कि बाद में बेगुनाही का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता.

न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने रजिस्ट्री को निर्देश दिए कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश एसवी गंगापुरवाला के सामने रखा जाए, जिससे इसे उसी खंडपीठ के समक्ष भेजा जा सके और वह तारीख निर्धारित की जा सके, जिस दिन ईडी सेंथिल बालाजी को हिरासत में ले सके और उन्हें अस्पताल से स्थानांतरित कर सके.

सेंथिल बालाजी की पत्नी मेगाला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उनके पति ईडी की अवैध हिरासत में हैं और उन्होंने अनुरोध किया कि अधिकारियों को उन्हें अदालत में पेश करने और उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया जाए. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति निशा बानू और न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने मेगाला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (एचसीपी) पर खंडित फैसला सुनाया था.

न्यायमूर्ति निशा बानू का कहना था कि प्रवर्तन निदेशालय के पास हिरासत मांगने का कोई अधिकार नहीं है और कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विचारणीय है. हालांकि न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती इस तर्क से सहमत नहीं थे. न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता के अनुसार उसने 2.40 लाख रुपये (राज्य संचालित परिवहन निगम में नौकरी हासिल करने के संबंध में) दिए थे.

आदेश में कहा गया है कि यह रिश्वतखोरी का अपराध था, जिसके लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई और इसके बाद ईडी ने प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट दर्ज की थी. ईडी ने पिछले महीने राज्य के परिवहन विभाग में हुए नौकरी के बदले नकदी घोटाले के सिलसिले में सेंथिल बालाजी को गिरफ्तार किया था और वह अब भी बिना विभाग के मंत्री बने हुए हैं. न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने कहा कि पैसा कब दिया गया, इसका कहां इस्तेमाल किया गया और इसे कानूनी रूप से कैसे परिवर्तित किया गया इससे संबंधित सवालों की विस्तृत जांच जरूरी है.

न्यायाधीश ने मौजूदा मामले में कहा कि जिस दिन सत्र न्यायाधीश ने उन्हें हिरासत में भेजा था, उस दिन सेंथिल बालाजी की चिकित्सा स्थिति खराब थी. न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह ईडी उन्हें प्रभावी ढंग से हिरासत में नहीं ले सकी थी. न्यायाधीश ने कहा कि इसलिए, अस्पताल में भर्ती होने की अवधि को हिरासत अवधि से बाहर रखा जाना चाहिए.

चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी और इसके बाद एक सत्र अदालत की ओर से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजे जाने को शुक्रवार को वैध बताया है. मंत्री की गिरफ्तारी से संबंधित याचिका पर खंडपीठ के खंडित फैसले के बाद मामले की सुनवाई करने वाले तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीवी कार्तिकेयन ने गिरफ्तारी और न्यायिक हिरासत को वैध बताया है.

पीठ के तीसरे न्यायाधीश ने माना कि आरोपी मंत्री को जांच को पटरी से उतारने का कोई अधिकार नहीं है. जब उन्हें गिरफ्तारी का कारण बताया गया तो उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा कि बाद में बेगुनाही का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता.

न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने रजिस्ट्री को निर्देश दिए कि इस मामले को मुख्य न्यायाधीश एसवी गंगापुरवाला के सामने रखा जाए, जिससे इसे उसी खंडपीठ के समक्ष भेजा जा सके और वह तारीख निर्धारित की जा सके, जिस दिन ईडी सेंथिल बालाजी को हिरासत में ले सके और उन्हें अस्पताल से स्थानांतरित कर सके.

सेंथिल बालाजी की पत्नी मेगाला ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि उनके पति ईडी की अवैध हिरासत में हैं और उन्होंने अनुरोध किया कि अधिकारियों को उन्हें अदालत में पेश करने और उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया जाए. गौरतलब है कि न्यायमूर्ति निशा बानू और न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती की खंडपीठ ने मेगाला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (एचसीपी) पर खंडित फैसला सुनाया था.

न्यायमूर्ति निशा बानू का कहना था कि प्रवर्तन निदेशालय के पास हिरासत मांगने का कोई अधिकार नहीं है और कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विचारणीय है. हालांकि न्यायमूर्ति भरत चक्रवर्ती इस तर्क से सहमत नहीं थे. न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता के अनुसार उसने 2.40 लाख रुपये (राज्य संचालित परिवहन निगम में नौकरी हासिल करने के संबंध में) दिए थे.

आदेश में कहा गया है कि यह रिश्वतखोरी का अपराध था, जिसके लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई और इसके बाद ईडी ने प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट दर्ज की थी. ईडी ने पिछले महीने राज्य के परिवहन विभाग में हुए नौकरी के बदले नकदी घोटाले के सिलसिले में सेंथिल बालाजी को गिरफ्तार किया था और वह अब भी बिना विभाग के मंत्री बने हुए हैं. न्यायमूर्ति कार्तिकेयन ने कहा कि पैसा कब दिया गया, इसका कहां इस्तेमाल किया गया और इसे कानूनी रूप से कैसे परिवर्तित किया गया इससे संबंधित सवालों की विस्तृत जांच जरूरी है.

न्यायाधीश ने मौजूदा मामले में कहा कि जिस दिन सत्र न्यायाधीश ने उन्हें हिरासत में भेजा था, उस दिन सेंथिल बालाजी की चिकित्सा स्थिति खराब थी. न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह ईडी उन्हें प्रभावी ढंग से हिरासत में नहीं ले सकी थी. न्यायाधीश ने कहा कि इसलिए, अस्पताल में भर्ती होने की अवधि को हिरासत अवधि से बाहर रखा जाना चाहिए.

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