चेन्नई : मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि शादी करने के झूठे वादे के बहाने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध तब नहीं बनता है, जब शिकायतकर्ता स्वेच्छा से यौन कृत्य में शामिल होत है (वो भी यह जानते हुए कि उसकी अपनी वैवाहिक स्थिति के कारण इच्छित विवाह बिल्कुल भी नहीं हो सकता है). अदालत ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर यह फैसला सुनाया है, जिसमें आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.
न्यायमूर्ति एम. निर्मल कुमार ने कहा कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता की पहल का विरोध नहीं किया. इस प्रकार उसने प्रतिरोध और सहमति के बीच एक विकल्प का स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया. वह अपने कृत्य के परिणामों को जानती थी, खासकर जब उसे पता था कि उसकी वैवाहिक स्थिति के कारण उनका विवाह बिल्कुल नहीं हो सकता है. उसके बावजूद उसने कई अवसरों पर यौन संबंध बनाए.
इस मामले में दोनों के बीच पांच साल तक यौन संबंध रहे हैं,जिसे रेप नहीं कहा जा सकता है. मामले के तथ्य और उनके बीच बने शारीरिक संबंध के लिए प्रतिवादी की स्वीकृति को देखते हुए आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध का गठन नहीं होता है.
इस मामले में शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों ही मद्रास हाईकोर्ट और चेन्नई के आसपास की अन्य अदालतों में वकालत कर रहे हैं. शिकायतकर्ता ने वर्ष 2009 में एक टीएन विश्वनाथ से शादी की थी. इसके बाद, शिकायतकर्ता और आरोपी पहली बार 5 अप्रैल, 2015 को मिले थे, जिसके बाद उनके बीच एक रिश्ता बन गया ,जो जुलाई 2020 तक लगभग 5 साल की अवधि तक चला.
सभी दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने माना कि पक्षकारों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने हैं और आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध नहीं बनता है.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर भरोसा किया और तदनुसार फैसला सुनाया कि कोई सहमति थी या नहीं, यह सभी प्रासंगिक परिस्थितियों के सावधानीपूर्वक अध्ययन पर ही पता लगाया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि बलात्कार और सहमति से यौन संबंध बनाने के बीच के अंतर को प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर देखा जाना चाहिए. जब शिकायत को रद्द करने की मांग की जाती है, तो यह आकलन करने के लिए सामग्री को देखने की अनुमति है कि शिकायतकर्ता ने क्या आरोप लगाया है और अगर आरोपों को पूरी तरह से स्वीकार किया जाता है तो क्या कोई अपराध बनता है?
कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत अगर शिकायतकर्ता द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर सहमति दी जाती है, तो यह विकृत है.
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कोर्ट ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 375 के तहत सहमति के लिए न केवल कृत्य के महत्व और नैतिक गुणवत्ता के ज्ञान के आधार पर बुद्धि का प्रयोग करने के बाद स्वैच्छिक भागीदारी की आवश्यकता होती है, बल्कि प्रतिरोध और सहमति के बीच का चुनाव भी अच्छे से किया गया हो. सहमति थी या नहीं,इसका पता सभी प्रासंगिक परिस्थितियों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद ही लगाया जा सकता है.