चेन्नई : उच्च न्यायालयों के पास उच्चतम न्यायालय जैसी विशेष शक्ति नहीं होने का जिक्र करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी करार दी गईं नलिनी श्रीहरन और रविचंद्रन की याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी. इस याचिका में तमिलनाडु के राज्यपाल की सहमति के बिना उनकी रिहाई का आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया था. मुख्य न्यायाधीश एम. एन. भंडारी और न्यायमूर्ति एन. माला की प्रथम पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालयों के पास संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसा करने की शक्ति नहीं है, जबकि उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 142 के तहत यह विशेष शक्ति प्राप्त है. पीठ ने नलिनी और रविचंद्रन की दो रिट याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी.
उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त विशेष शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इसी मामले में एक अन्य दोषी ए. जी. पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया था. नलिनी और रविचंद्रन ने दलील दी कि उच्च न्यायालय द्वारा भी यही मापदंड अपनाया जाना चाहिए. पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक मंत्रिमंडल ने मामले के सभी सातों आरोपियों को सितंबर 2018 में समय से पहले रिहा करने की सिफारिश की थी और इसी सिलसिले में राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को एक सिफारिश भेजी गई थी.
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चूंकि राज्यपाल की ओर से कोई जवाब नहीं आया, इसलिए दोषियों ने अपनी रिहाई के लिए राज्यपाल को निर्देश जारी कराने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया था. हालांकि, उनकी याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने राज्यपाल की सहमति के बगैर रिहाई के लिए मौजूदा याचिकाएं दायर की थी. उन्होंने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि राज्यपाल, राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिशें मानने के लिए आबद्ध हैं. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के मामले में पेरारिवलन के अलावा, मुरूगन, संतन, रॉबर्ट पायस, रविचंद्रन, जयकुमार और नलिनी को दोषी करार दिया गया था. मामले में पेरारिवलन को छोड़कर अन्य छह दोषी वर्तमान में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.