भोपाल। टाइगर स्टेट का तमगा रखने वाले मध्य प्रदेश में महज बाघ और चीता ही नहीं, बल्कि तेंदुआ स्टेट भी है. बाघ आकलन- 2018 में देश में सबसे अधिक 3521 तेंदुआ पाए गए हैं, लेकिन चिंता ये है कि उनकी मौत का आंकड़ा भी उतना ही बढ़ा है. पिछले साल प्रदेश में 66 तेंदुओं की मौत हुई है. इनमें से 21 का शिकार हुआ है. तेंदुओं की मौत का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. विभाग के मुताबिक प्रदेश में इस साल तेंदुओं की संख्या 4 हजार के ऊपर जायेगी, लेकिन इस संख्या में कमी न आए इसके लिए तेंदुआ प्रबंधन रणनीति बनाई जा रही है. जिसमें देश और विदेशों के एक्सपर्ट से सलाह ली जा रही है. प्रदेश के तेंदुओं के शिकार और दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को रोकने के लिए विशेषज्ञों जिसमें पूर्व वन अधिकारी भी शामिल हैं. इनके अनुभव को देखते हुए इनसे सलाह ली जा रही है. बाघों की तुलना में प्रदेश में तेंदुओं की हर साल अधिक मौत होती है.
बाघों की मौतें: पिछले सात सालों में 308 चीतों की मौत हुई है, साल 2021 में 56 की मौत हुई थी, जिसमें से 22 का शिकार हुआ था. 2022 में मौत का आंकड़ा बढ़कर 66 पहुंच गया. इस स्थिति के चलते तेंदुओं की सुरक्षा को लेकर वन अधिकारी सतर्क हुए हैं. बाघ आकलन-2022 की रिपोर्ट में प्रदेश में तेंदुओं की संख्या चार हजार के पार बताई गई है. विधानसभा में कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के सवाल पर वन मंत्री विजय शाह ने जानकारी दी कि राज्य में वर्ष 2014 से2018 की अवधि के बीच 120 बाघ और 209 तेंदुओं की मौत हुई है.
क्या बोले वन मंत्री: वन मंत्री ने कहा कि इनकी सुरक्षा के सरकार विशेषज्ञों की सहायता तो लेती है, लेकिन साथ ही सुरक्षा के लिए टाइगर रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य प्राणी अभ्यारण की स्थापना की गई है. वन क्षेत्र में पदस्थ कर्मचारी पैदल, हाथी और वाहनों से गश्ती करते हैं. वहीं संदिग्ध व्यक्तियों की निगरानी होती है. इसके साथ विद्युत लाइनों का समय-समय पर संयुक्त निरीक्षण, गोपनीय सूचना तंत्र का उपयोग कर बाजार हाट में चेकिंग, जल स्रोतों की निगरानी के काम होते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट: तेंदुआ मित्र बनाए जाएंगे. पूर्व वन अधिकारी सुदेश बाघमारे का कहना है कि ECO सिस्टम को संतुलित रखकर ही तेंदुओं को बचाया जा सकता है. मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यह तेंदुओं के लिए एक तरह से छाते का काम करते हैं. यही कारण है कि प्रदेश में तेंदुओं की संख्या बढ़ रही है. तेंदुओं की सुरक्षा के लिए तेंदुआ मित्र बनाए जा सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि तेंदुआ घने जंगल की बजाए बस्तियों और जंगल के बीच के हिस्से में रहना पसंद करते हैं. तेंदुए आबादी के आसपास नजर आते हैं और आसानी से शिकारियों का शिकार भी बन जाते हैं. तेंदुआ मित्रों को तेंदुओं की सुरक्षा और उनसे सुरक्षित रहने के तरीके सिखाए जाएंगे.
जंगलों के अंदरूनी रास्तों में ब्रिज: जंगलों से गुजरने वाले सड़क और रेल मार्गों में अंडर और ओवरब्रिज बनाने की नीति देश स्तर पर बन चुकी है. अब तेंदुओं, बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों की जान बचाने में मदद मिलेगी. 2022 की बात करें तो मध्य प्रदेश में वाहन और ट्रेन से टकराकर 17 तेंदुओं की मौत हुई है. 2022 में कुओं में गिरने से 10 तेंदुओं की मौत हुई है. शिकार और दुर्घटनाओं के मामले कैसे कम हों, इसके लिए विचार-विमर्श चल रहा है. सेवानिवृत्त वन अधिकारियों से भी सलाह ली जा रही है.
जानवरों के अंग बेचते हैं शिकारी: वहीं पर्यावरण विशेषज्ञ और जानकर अजय दुबे का मानना है कि वन विभाग का अमला शिकार रोकने में नाकाम है. साथ ही जो महकमे का खुफिया तंत्र है, वह भी कमजोर है. एमपी राज्यस्तरीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो सेंट्रल इंडिया ने आरोपियों से पूछताछ और शिकार किए जाने की वजह का विश्लेषण किया तो पाया कि शिकारी तेंदुए के दांत, बाल बाघ का बता कर बेंच रहे हैं. कटनी, जबलपुर और डिंडोरी के आरोपियों को पकड़ा था, जिन्होंने तेंदुए के अवयव बाघ का बताकर बेचे. वाइल्ड लाइफ मुख्यालय द्वारा एनटीसीए को भेजी जानकारी में यह भी खुलासा हुआ था. सबसे ज्यादा मौत सेंचुरी और टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले रेलवे लाइन और हाईवे से गुजरने वाले सड़कों से हुई है.